नयी दिल्ली, 18 अगस्त । उच्चतम न्यायालय ने पीएम केयर्स की राशि को राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) में हस्तांतरित करने के निर्देश देने संबंधी याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। न्यायालय ने केंद्र को कोविड-19 से लड़ने के लिए पीएम केयर्स फंड में मिली दान की राशि को राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष (एनडीआरएफ) में स्थानांतरित करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि पीएम केयर्स फंड को एनडीआरएफ में हस्तांतरित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
न्यायालय ने, साथ ही कोरोना महामारी के लिए नयी राष्ट्रीय आपदा योजना बनाये जाने की मांग भी ठुकरा दी।
न्यायालय ने कहा कि कोविड-19 के लिए नयी आपदा राहत योजना की जरूरत नहीं है।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि कोविड-19 से पहले आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत जारी राहत के न्यूनतम मानक आपदा प्रबंधन के लिए काफी हैं।
न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार को यदि लगता है कि पीएम केयर्स फंड को एनडीआरएफ में हस्तांतरित किया जा सकता है तो उसके लिए वह स्वतंत्र है।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि दान करने वाले व्यक्ति एनडीआरएफ में भी दान करने के लिए आजाद हैं।
न्यायालय का पीएम केयर्स में मिली धनराशि एनडीआरएफ में स्थानांतरित करने का निर्देश देने से इंकार:-
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को कोविड-19 से लड़ने के लिए पीएम केयर्स फंड में मिली दान की राशि को राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष (एनडीआरएफ) में स्थानांतरित करने का निर्देश देने से मंगलवार को इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की तीन सदस्यीय पीठ ने एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनाये गये अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष में स्वेच्छा से योगदान किया जा सकता है क्योंकि आपदा प्रबंधन कानून के तहत ऐसा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है।
गैर सरकारी संगठन सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस ने इस जनहित याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया था कि कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए पीएम केयर्स कोष में जमा राशि एनडीआरएफ में स्थानांतरित करने का निर्देश केन्द्र को दिया जाये।
याचिका में कोविड-19 महामारी से निबटने के लिये आपदा प्रबंधन कानून के तहत राष्ट्रीय योजना तैयार करने, इसे अधिसूचित करने और लागू करने का निर्देश सरकार को देने का भी अनुरोध किया गया था।
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन कानून के तहत तैयार की गयी योजना कोविड-19 के लिये पर्याप्त है।
केंद्र ने कोविड-19 महामारी जैसी आपात स्थिति से निबटने और प्रभावित लोगों को राहत उपलब्ध कराने के इरादे से 28 मार्च को प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं राहत (पीएम केयर्स) कोष की स्थापना की थी।
प्रधानमंत्री इस पीएम केयर्स फंड के पदेन अध्यक्ष हैं और रक्षामंत्री, गृहमंत्री और वित्तमंत्री पदेन न्यासी हैं।
इस याचिका पर 27 जुलाई को सुनवाई के दौरान केन्द्र ने पीएम केयर्स कोष का पुरजोर बचाव करते हुये कहा था कि कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिये यह ‘स्वैच्छिक योगदान’ का कोष है और राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष तथा राज्य आपदा मोचन कोष के लिये बजट में किये गये आबंटन को हाथ भी नहीं लगाया गया है।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि पीएम केयर्स फंड एक स्वैच्छिक कोष है जबकि एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के लिये बजट के माध्यम से धन का आबंटन किया जाता है।
याचिकाकर्ता संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा था कि वह इस कोष के सृजन का लेकर सदाशयता पर किसी प्रकार का संदेह नहीं कर रहे हैं लेकिन पीएम केयर्स फंड का सृजन आपदा प्रबंधन कानून के प्रावधानों के खिलाफ है।
दवे का कहना था कि राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा ऑडिट किया जाता है लेकिन सरकार ने बताया है कि पीएम केयर्स फंड का निजी ऑडिटर्स से ऑडिट कराया जायेगा।
उन्होंने इस कोष की वैधता पर भी सवाल उठाया था और कहा कि यह संविधान के साथ धोखा है।
सॉलिसीटर जनरल का कहना था कि 2019 में एक राष्ट्रीय योजना तैयार की गयी थी और इसमें ‘‘जैविक आपदा’’ जैसी स्थिति से निबटने के तरीकों को शामिल किया गया है। मेहता ने कहा था, ‘‘उस समय किसी को भी कोविड के बारे में जानकारी नहीं थी। यह जैविक और जन स्वास्थ्य योजना है जो राष्ट्रीय योजना का हिस्सा है। अत: कोई राष्ट्रीय योजना नहीं होने संबंधी दलील गलत है।’