अयोध्या विवाद की सुनवाई एक दिन पहले ही पूरी करने के संकेत
नई दिल्ली, 04 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या विवाद की सुनवाई 17 अक्टूबर तक पूरी होने के संकेत दिए तथा उस दिन ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ पर बहस के संकेत दिए।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा एस अब्दुल नज़ीर की संविधान पीठ ने आज की सुनवाई के अंत में कहा कि 14 अक्टूबर को मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन की दलील पूरी हो जाएगी।
न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा कि 15 और 16 अक्टूबर को हिन्दू पक्ष जवाब देगा और 17 अक्टूबर को ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ़’ पर बहस होगी।
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का अभिप्राय याचिका में किए गए अनुरोध से इतर वैकल्पिक राहत से है। इस सिद्धांत के तहत यह विचार किया जाता है कि याचिका में की गयी मांग पूर्ण रूप से न माने जाने की स्थिति में वैकल्पिक राहत क्या हो सकती है।शीर्ष अदालत में अगले पूरे हफ्ते अवकाश रहेगा।
कहानियों के सिवाय मंदिर के सबूत हिन्दुओं के पास भी नहीं : मुस्लिम पक्ष
उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद की सुनवाई पूर्व तय तिथि से एक दिन पहले (17 अक्टूबर) को समाप्त होने के संकेत के बीच आज 37वें दिन की जिरह के दौरान मुस्लिम पक्ष ने कहा कि यदि मस्जिद के लिए बाबर द्वारा इमदाद देने के सबूत नहीं हैं, तो सबूत राम मंदिर के दावेदारों के पास भी नहीं है, सिवाय कहानियों के।
मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वकील राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ के समक्ष दलील दी, “उस दौर में इसका कोई सबूत हमारे पास नहीं है, लेकिन सबूत मंदिर के दावेदारों के पास भी नहीं है, सिवाय कहानियों के।”
उन्होंने कहा कि 1855 में एक निहंग वहां आया, उसने वहां गुरु गोविंद सिंह की पूजा की और निशान लगा दिया था। बाद में सारी चीजें हटाई गईं। उसी दौरान बैरागियों ने रातोंरात वहां बाहर एक चबूतरा बना दिया और पूजा करने लगे।
उन्होंने बाबर की इमदाद के संबंध में उक्त बात तब कही जब संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या इस बात का कोई सबूत है कि बाबर ने भी मस्जिद को कोई इमदाद दी हो?
श्री धवन ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत के गवर्नर जनरल और फैज़ाबाद के डिप्टी कमिश्नर ने भी पहले बाबर के फरमान के मुताबिक मस्जिद की देखभाल और रखरखाव के लिए रेंट फ्री गांव दिए, फिर राजस्व वाले गांव दिए। आर्थिक मदद की वजह से ही दूसरे पक्ष का ‘प्रतिकूल कब्जा’ नहीं हो सका। सन् 1934 में मस्जिद पर हमले के बाद नुकसान की भरपाई और मस्जिद की साफ-सफाई के लिए मुस्लिमों को मुआवजा भी दिया गया।
उन्होंने दलील दी कि शीर्ष अदालत अनुच्छेद 142 के तहत मिली अपरिहार्य शक्तियों के तहत दोनों ही पक्षों की गतिविधियों को ध्यान में रखकर इस मामले का निपटारा करे।
उन्होंने कहा कि मस्जिद पर जबरन कब्जा किया गया। लोगों को धर्म के नाम पर उकसाया गया, रथयात्रा निकाली गई, लंबित मामले में दबाव बनाया गया। उन्होंने कहा कि मस्जिद ध्वस्त की गई और तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को अवमानना के चलते एक दिन की जेल भी काटनी पड़ी थी।
न्यायमूर्ति बोबडे ने पूछा कि क्या क्या मस्जिद दैवीय है? इस पर श्री धवन ने जवाब दिया कि यह हमेशा से ही दैवीय रहती है। न्यायालय ने फिर पूछा कि क्या यह अल्लाह को समर्पित होती है? श्री धवन ने जवाब दिया, “हम दिन में पांच बार नमाज पढ़ते हैं। अल्लाह का नाम लेते हैं। यह अल्लाह को समर्पित ही है।’’
मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि कोई भी अयोध्या को राम के जन्म स्थान के रूप में मना नहीं कर रहा है। यह विवाद बहुत पहले ही सुलझ गया होता अगर यह स्वीकार कर लिया जाता कि राम केंद्रीय गुंबद के नीचे पैदा नहीं हुए थे। हिंदुओं ने जोर देकर कहा है कि राम केंद्रीय गुंबद के नीचे पैदा हुए थे। सटीक जन्म स्थान ही मामले का मूल है।