नयी दिल्ली, 29 अगस्त । उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद की गुरुवार को पंद्रहवें दिन की सुनवाई पूरी हुई, जिसमें राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति ने दलील दी कि विवादित ज़मीन पर मस्जिद नहीं बनायी जा सकती।
समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी एन मिश्रा ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि इस्लाम में मस्जिद बनाने का कानून है और एक मस्जिद उसी जगह पर बनाई जा सकती है, जब उसका मालिक मस्जिद बनने की इजाज़त दे। वक़्फ़ को दी गयी जमीन मालिक की होनी चाहिए।
उन्होंने भोजनावकाश के बाद जिरह जारी रखते हुए कहा कि इस्लाम के अनुसार दूसरे के पूजा स्थल को ढहाकर या ध्वस्त करके उस जगह मस्जिद नहीं बनायी जा सकती। ऐसी ज़मीन जिस पर दो लोगों का कब्ज़ा हो और एक मस्जिद बनाने का विरोध करे तो उस जमीन पर भी मस्जिद नहीं बनाई जा सकती।
श्री मिश्रा की दलीलों पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने ऐतराज जताया और कहा कि अब तक 24 बार श्री मिश्रा संदर्भ से बाहर जाकर किस्से सुना चुके हैं।
इस पर श्री मिश्रा ने कहा, “सिर्फ न्यायालय मुझे गाइड कर सकता है, मेरे साथी वकील नहीं।”
न्यायमूर्ति गोगोई ने श्री मिश्रा से कहा कि वह स्वतंत्र हैं अपने तथ्य रखने के लिए।
इससे पहले भोजनावकाश से पहले श्री मिश्रा ने दलील दी थी कि विवादित जमीन मुस्लिम पक्षकार को नहीं दी जा सकती, क्योंकि वह यह साबित नहीं कर पाया है कि बाबर ने ही मस्जिद का निर्माण किया था।
श्री मिश्रा ने दलील दी कि यह तो स्पष्ट है कि मस्जिद को मंदिर के ऊपर बनाया गया था, क्योंकि मंदिर के अवशेष उस जगह से मिले हैं जबकि कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर को ध्वस्त कर के मस्जिद बनाई गई।
उन्होंने दलील दी कि बाबर ने मस्जिद का निर्माण नहीं कराया था और न ही वह विवादित जमीन का मालिक था। जब वह जमीन का मालिक ही नहीं था तो सुन्नी वक्फ बोर्ड का मामले में दावा ही नहीं बनता। मुस्लिम पक्षकार ये साबित नहीं कर पाए थे कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने करवाया था।
श्री मिश्रा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के हवाले से कहा कि यह साबित नहीं हो पाया है कि विवादित जमीन पर मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण बाबर ने कराया था या औरंगजेब ने?
उन्होंने कहा, “ बाबर विवादित जमीन का मालिक नहीं था। ऐसे में मेरा कहना है कि जब कोई सबूत ही नहीं है तो मुस्लिम पक्षकार को विवादित जमीन पर कब्जा या हिस्सेदारी नहीं दी जा सकती।”
समिति की जिरह कल भी जारी रहेगी।