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न्यायाधीश रंजन गोगोई

चीफ जस्टिस गोगोई पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली महिला कर्मी की जमानत रद्द करने की याचिका पुलिस ने दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई दुसरी पीठ के सुपुर्द की attacknews.in

नयी दिल्ली, 20 अप्रैल । दिल्ली की एक अदालत ने उच्चतम न्यायालय की पूर्व महिला कर्मचारी की जमानत रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली पुलिस की ओर से पेश याचिका पर सुनवाई शनिवार को स्थगित कर दी।

उच्चतम न्यायालय में कनिष्ठ न्यायालय सहायक के पद पर कार्यरत रही महिला ने हाल में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन प्रताड़ना का आरोप लगाया था। महिला के खिलाफ रिश्वत लिए जाने का आरोप है।

उधर उच्चतम न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ एक महिला की ओर से लगाया गया यौन प्रताड़ना का मामला शनिवार को सुनवाई के लिए दूसरी पीठ के सुपुर्द कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई दूसरी पीठ में होगी। तीन सदस्यीय पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना थे। न्यायालय ने उन मीडिया रिपोर्टों पर संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई की, जिनमें एक महिला (मुख्य न्यायाधीश की पूर्व सहायक) की ओर से मुख्य न्यायाधीश पर यौन प्रताड़ना के लगाये गये आरोपों का विवरण दिया गया था।

सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में न्यायालय कहा कि यह गंभीर मामला है और सार्वजनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भी है।

शीर्ष अदालत ने संबंधित आरोपों के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया लेकिन मीडिया को न्यायपालिका की स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए संयम बरतने को कहा है।

शिकायतकर्ता महिला उच्चतम न्यायालय में मई 2014 से कनिष्ठ न्यायालय सहायक के पद पर कार्यरत थी और 21 दिसम्बर 2018 को उसकी सेवाएं अनौपचारिक ढंग से समाप्त कर दी गयी। महिला ने अपने शपथ पत्र में काफी आक्रोश जताते हुए आरोप लगाया,“ मुझे काफी यौन प्रताड़ता दी गयी। बहुत प्रताड़ित किया गया। इसके अलावा मेरे पति और उनके भाई को भी दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल के पद से निलंबित कर दिया गया। इसके साथ ही मेरे पति के एक अन्य भाई को उच्चतम न्यायालय की ग्रुप डी की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।”

क्या चीफ जस्टिस सुनवाई कर सकते थे:

क्या प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को उस पीठ में बैठना चाहिए था जिसने उन पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों के संबंध में सुनवाई की?

सीजेआई ने हालांकि सुनवाई के बीचोंबीच खुद को इससे अलग कर लिया और न्यायिक आदेश पारित करने का फैसला उन दो न्यायाधीशों के ऊपर छोड़ दिया जिन्हें पीठ में शामिल होने के लिए नामित किया गया था।

कुछ वरिष्ठ अधिवक्ता इस मुद्दे पर बात करने पर सहमत हुए लेकिन उन्होंने अपने नामों का खुलासा नहीं करने को कहा।

इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ विधि अधिकारी ने कहा कि सीजेआई के तीन न्यायाधीशों की पीठ में बैठने में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि वह पहले ही साफ कर चुके थे कि वह न्यायिक आदेश का हिस्सा नहीं होंगे। यह आदेश पीठ के दो अन्य न्यायाधीशों ने पारित किया।

विधि अधिकारी ने कहा कि चूंकि न्यायाधीश प्रेस के पास नहीं जा सकते और ना ही जनता से संवाद कर सकते, ‘‘सीजेआई अपने बारे में सफाई देना चाहते थे’’ और ‘‘उन्होंने पीठ में बैठकर टिप्पणियां कीं जिन्हें प्रचारित किया जाना चाहिए।’’

एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि सीजेआई को खुद को पीठ से अलग रखना चाहिए क्योंकि उनके खिलाफ आरोप लगे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘आदर्श रूप से, अगर सीजेआई पीठ में खुद को शामिल नहीं करते तो मैं उनके कदम का सम्मान करता।’’

उन्होंने कहा कि इस मामले को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की जरूरत है।

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