नयी दिल्ली 16 अप्रैल । उच्चतम न्यायालय ने मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं को नमाज पढ़ने की इजाजत के लिये दायर याचिका पर मंगलवार को केन्द्र को नोटिस जारी किया।
न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने पुणे निवासी एक दंपति की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी किया। पीठ ने स्पष्ट किया कि वह सबरीमला मंदिर मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले की वजह से ही इस याचिका की सुनवाई करेगी।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, ‘‘हम सिर्फ सबरीमला मंदिर मामले में हमारे फैसले की वजह से ही आपको सुन सकते हैं।’’
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 28 सितंबर, 2018 को 4:1 के बहुमत के फैसले में केरल में स्थित सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। पीठ ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश पर किसी भी प्रकार की पाबंदी लैंगिक भेदभाव के समान है।
मुस्लिम महिलाओं को नमाज पढ़ने के लिये मस्जिद में प्रवेश की अनुमति हेतु याचिका दायर करने वाले दंपति ने मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को ‘‘गैरकानूनी’’ और ‘‘ असंवैधानिक’’ घोषित करने का अनुरोध किया है।
याचिकाकर्ताओं ने संविधान के प्रावधानों का हवाला देते हुये कहा है कि देश के किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, वर्ग, लिंग या जन्म स्थान को लेकर भेदभाव नहीं होना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि गरिमा के साथ जीना और समता सबसे अधिक पवित्र मौलिक अधिकार है और किसी भी मुस्लिम महिला के मस्जिद में प्रवेश करने पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।
याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से जानना चाहा कि क्या विदेशों में मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत है।
इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को पवित्र मक्का की मस्जिद और कनाडा में भी मस्जिद में प्रवेश की अनुमति है।
हालांकि, पीठ ने अधिवक्ता से सवाल किया कि क्या आप संविधान के अनुच्छेद 14 का सहारा लेकर दूसरे व्यक्ति से समानता के व्यवहार का दावा कर सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि भारत में मस्जिदों को सरकार से लाभ और अनुदान मिलते हैं।
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