लखनऊ/ नईदिल्ली , 26 नवम्बर । उच्चतम न्यायालय के पिछले 9 नवम्बर को आये अयोध्या विवाद के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करेगा।
वक्फ बोर्ड की यहां मंगलवार को हुई बैठक में इसका निर्णय नहीं गया । बोर्ड की बैठक में उपस्थित सात में से छह सदस्यों ने पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करने का निर्णय लिया जबकि एक सदस्य अब्दुल रज्जाक खान याचिका दायर करने के पक्ष में थे । बैठक से बाहर आने के बाद रज्जाक खाने ने बोर्ड के फैसले को मजाक बताया ।
बोर्ड के अघ्यक्ष जुफर फारूखी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में जब अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई हो रही थी तब उन्होंने कहा था कि अदालत का जो भी फैसला आये ,उसे बोर्ड स्वीकार करेगा । फैसला भले ही हमारे हक में नहीं हैं लेकिन देश में अमन चैन और भाईचारा कायम रखने के लिये बोर्ड इस फैसले को तहे दिल से मंजूर करता है ।
बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारूकी की अध्यक्षता में मंगलवार को हुयी बैठक में अधिकांश सदस्यों का मानना था कि अयोध्या टाइटिल सूट पर नौ नवम्बर को सुनाये गये उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर पुर्नविचार याचिका का कोई औचित्य नहीं है हालांकि मस्जिद के लिये पांच एकड़ जमीन के बारे में बोर्ड ने विकल्प खुले रखा है।
मस्जिद के लिये जमीन दिये जाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के बारे में फारूकी ने कहा “ अयोध्या में नयी मस्जिद के निर्माण के लिये पांच एकड़ जमीन समेत अन्य मुद्दे बोर्ड के पास विचाराधीन है और इस बारे में अब तक कोई फैसला नहीं हो सका है। पांच एकड़ जमीन के बारे में अपने विचार व्यक्त करने के लिये सदस्यों को और समय दिया गया है। ”
उन्होने कहा “ यदि सरकार मस्जिद की जमीन के लिये कोई प्रस्ताव देती है तो एक बार फिर बोर्ड की बैठक बुलायी जायेगी। ” इससे पहले आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड समेत अन्य मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने दावा किया था कि शरीयत के अनुसार दान दी हुयी जमीन पर मस्जिद का निर्माण नहीं हो सकता है।
श्री फारूखी ने पिछले शुक्रवार को कहा था कि हालांकि उच्चतम न्यायालय के समक्ष पुर्नविचार याचिका दाखिल करने का फैसला लेने के लिये वह अधिकृत है लेकिन 26 तारीख को होने वाली बोर्ड की बैठक में हर सदस्य इस संबंध में अपनी राय बेबाकी से पेश करने के लिये स्वतंत्र है।
उन्होने कहा था कि अयोध्या मामले में पुर्नविचार याचिका को लेकर बोर्ड में कोई मतभेद नहीं है। उनके विचार से पुर्नविचार याचिका दाखिल करने का कोई औचित्य नहीं है लेकिन फिर भी बोर्ड किसी भी मामले में सर्वसम्मति से फैसला लेता है और इस नाते हर सदस्य को इस मसले पर अपना पक्ष रखने का अधिकार है जिस पर विचार करने के बाद बोर्ड अंतिम फैसला करेगा।
दूसरी ओर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की पिछले 17 नवम्बर की बैठक में फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया गया था । पर्सनल ला बोर्ड के पास इसके लिये 8 दिसम्बर तक का समय है ।
ऑल इंडिया यूनाईटेड मुस्लिम मोर्चा ने मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के निर्णय का किया विरोध:
उधर ऑल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा ने अयोध्या भूमि विवाद पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि बोर्ड के सदस्यों और उसके सहयोगियों ने अपनी गिरती हुई साख को बचाने के लिए उद्देश्य से यह कदम उठाया है लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि इससे समाज में गलत संदेश जा रहा है।
ऑल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद डॉ एजाज अली ने मोर्चा की बैठक को संबोधित करते हुए कहा, “मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, जो सुखी संपन्न मुसलमानों की जमात है, अयोध्या पर फैसला आने के पहले हमेशा कहा करता था कि वह न्यायालय के फैसले को सहर्ष स्वीकार करेगा और अब यह यू-टर्न लेने का क्या मतलब है। ”