नयी दिल्ली, 22 नवंबर ।उच्चतम न्यायालय ने आधार कानून में किये गये संशोधनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर शुक्रवार को केन्द्र को नोटिस जारी किया। इन संशोधन के माध्यम से निजी कंपनियों को बैंक खाता खोलने और मोबाइल कनेक्शन के लिये उपभोक्ताओं द्वारा प्रमाणीकरण के रूप में स्वेच्छा से उपलब्ध कराये गये आधार डेटा के इस्तेमाल की अनुमति दी गयी है।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने आधार संशोधन कानून, 2019 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली पूर्व सैन्य अधिकारी एस जी वोम्बटकेरे और सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाडा विल्सन की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को नोटिस जारी किये।
इन याचिकाओं में दलील दी गयी है कि आधार कानून में किये गये संशोधनों से नागरिकों के निजता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का हनन होता है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि आधार कानून में 2019 के संशोधन शीर्ष अदालत के पहले के आदेशों का उल्लंघन हैं।
न्यायालय ने इस जनहित याचिका को इस मामले में पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया है।
इससे पहले पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 4:1 के बहुमत से पिछले साल सितंबर में कुछ प्रतिबंधों के साथ आधार कानून को संवैधानिक करार दिया था। पीठ ने स्पष्ट किया था कि बैंक में खाता खोलने, मोबाइल कनेक्शन या स्कूल में प्रवेश के मामले में आधार अनिवार्य नहीं होगा।
सरकार ने इसके बाद आधार कानून में संशोधन के लिये आठ जुलाई को संसद में विधेयक पेश किया और डाटा चोरी होने की आशंका सहित कई कारणों को गिनाते हुये विपक्ष ने इसका विरोध किया लेकिन सदन ने इसे ध्वनि मत से पारित कर दिया था। इन संशोधन में टेलीग्राफ कानून, 1885 और धन शोधन कानून, 2002 के तहत स्वैच्छिक आधार पर केवाईसी के प्रमाणीकरण के लिये आधार संख्या के उपयोग का प्रावधान किये गये।
ये संशोधन और नियम बैंक खाता खोलने और मोबाइल फोन कनेक्शन हासिल करने के लिए उपभोक्ताओं को पहचान पत्र के रूप में स्वेच्छा से आधार का प्रयोग करने की अनुमति देते हैं।
इस संशोधित विधेयक में आधार डेटा के प्रावधानों का निजी कंपनियों द्वारा उल्लंघन करने पर एक करोड़ रूपए का जुर्माना और जेल की सजा का भी प्रावधान किया गया है।
संशोधित कानून में बच्चों को 18 साल की उम्र होने पर बायोमेट्रिक आईडी कार्यक्रम से निकलने का विकल्प भी प्रदान किया गया है।