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पादरी की ट्रेनिंग लेते समय पादरियों के अन्याय के बाद जार्ज फर्नांडीज ऐसे बने गरीबों के मसीहा और कल हिंदू रीति से होगा उनका अंतिम संस्कार attacknews.in

नयी दिल्ली, 29 जनवरी । भारतीय राजनीति के महारथियों में से एक वरिष्ठ समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस जहां ताकतवर से ताकतवर नेताओं को झुकाने की क्षमता रखते थे वहीं वह गरीबों एवं वंचितों मसीहा भी थे।
भारतीय राजनीति में एक अलग मुकाम रखने वाले जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म तीन जून 1930 को एक ईसाई परिवार में हुआ था। वह अंग्रेजी सहित नौ अन्य भारतीय भाषाओं के जानकार थे। वह हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी में धारा प्रवाह बोलते एवं लिखते तो थे ही, साथ में तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तेलुगू, कोंकणी और लैटिन भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान रखते थे।
वर्ष 2002 में गोधरा दंगों के बाद श्री फर्नांडिस गुजरात की सरकार का बचाव करने वाले प्रमुख लोगों में शामिल थे। श्री नरेंद्र मोदी को जब गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग जोर-शोर से चल रही थी, तब उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेताओं के एक समूह से कहा था कि यह व्यक्ति (श्री मोदी) हिंदुत्व की राजनीति को रोशनी दिखायेगा।
कर्नाटक में मेंगलोर के रहने वाले जॉर्ज फर्नांडिस जब 16 वर्ष के हुए तो उन्हें एक क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने भेज दिया गया हालांकि चर्च में होने वाले तमाम तरह के रीति रिवाजों को देखकर जल्द ही उनका उससे मोहभंग हो गया। आखिरकार 1949 में 18 साल की उम्र में उन्होंने चर्च छोड़ दिया और रोजगार की तलाश में मुंबई (तत्कालीन बंबई) चले गये।
मुंबई में वह सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे जिसके कारण उनकी शुरुआती छवि विद्रोही नेता की बनी। श्री फर्नांडिस उस समय के सबसे मुखर वक्ता राम मनोहर लोहिया को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे। अपने विद्राही तेवर और नेतृत्व के गुण के चलते 1950 तक वह टैक्सी ड्राइवर यूनियन के बेताज बादशाह बन गये थे।
श्री फर्नांडिस बताया करते थे कि जब वह समाजवादी ब्रिगेड में शामिल हुए, उनके पिता ने कहा, “मैं चाहता था कि मेरा बेटा ईश्वर की सेवा करे लेकिन उसने इसकी बजाय शैतानों का साथ देना चुना।”
श्री फर्नांडिस 1967 के लोकसभा चुनाव में बंबई दक्षिण से कद्दावर कांग्रेसी नेता एस. के. पाटिल के खिलाफ उतरे और उन्हें हरा दिया। वर्ष 1973 में वह ‘ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन’ के चेयरमैन चुने गए। भारतीय रेलवे में उस वक्त करीब 14 लाख लोग काम करते थे और सरकार रेलवे कामगारों की कई जरूरी मांगों को कई सालों से दरकिनार कर रही थी। ऐसे में श्री फर्नांडिस ने आठ मई 1974 को देशव्यापी रेल हड़ताल का आह्वान किया और रेल का चक्का जाम हो गया। कई दिनों तक रेल का संचालन ठप रहा।
इसके बाद हरकत में आई सरकार ने पूरी कड़ाई के साथ आंदोलन को कुचलते हुए 30 हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया और हजारों को नौकरी और रेलवे की सरकारी कॉलोनियों से बेदखल कर दिया गया।

ऐसे बने गरीबों के मसीहा:
जार्ज फर्नांडिस कैथोलिक पादरी बनने का प्रशिक्षण ले रहे थे लेकिन यह देखकर उनका खून खौल गया कि शिक्षा संस्थान में छात्रों के मुकाबले पादरियों को बेहतर खाना मिलता है। यहीं से अन्याय के विरूद्ध खड़े होकर फर्नांडिस ने जो आवाज बुलंद की तो वही ताउम्र के लिए उनकी पहचान बन गयी। गरीबों के हक के लिए लड़ने वाले फर्नांडिस को उनके इसी जज्बे के लिए ‘‘गरीबों का मसीहा ’’ कहा जाने लगा।

जार्ज फर्नांडिस भारत के उन तेजतर्रार यूनियन नेताओं में से एक थे जो सड़कों से लेकर सत्ता के गलियारों तक पहुंचने के बावजूद अपनी विचारधारा से अलग नहीं हुए और ताउम्र समाजवादी कार्यकर्ता बने रहे ।

तमाम मुश्किलात के बावजूद सच का दामन नहीं छोड़ने वाले नेता फर्नांडिस ने 1970 के दशक में यूनियन लीडर के तौर पर देश में रेलवे की पहली हड़ताल आहूत की थी लेकिन बाद में उन्होंने स्वयं रेल मंत्री की कमान संभाली। रेलवे की हड़ताल ने जार्ज फर्नांडिस का नाम घर घर तक पहुंचा दिया था । अपनी समाजवादी विचारधारा के बावजूद, वह उद्योग मंत्री बने ।इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रति गहरा अविश्वास और छत्तीस का आंकड़ा होने के बावजूद उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया।

उम्र भर उनकी छवि एक ऐसे नेता की रही जिन्हें भ्रष्टाचार छू तक नहीं गया था लेकिन इसे विधि की विडंबना ही कहा जाएगा कि अपने एक करीबी सहयोगी के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

कर्नाटक के मेंगलुरू में 3 जुलाई 1930 को एक ईसाई परिवार में पैदा हुए फर्नांडिस सही मायनों में एक राष्ट्रीय नेता थे जो पहचान की राजनीति से काफी ऊपर उठ गए थे । मात्र 19 साल की उम्र में उन्होंने ईसाई पादरी प्रशिक्षण केंद्र छोड़ दिया और मुंबई में जाकर यूनियन नेता बन गए । वह साउथ बांबे से संसद के सदस्य रहे और कई सालों तक बिहार के मुजफ्फरपुर और नालंदा से कई बार संसद सदस्य के रूप में चुने गए । फर्नांडिस को अंग्रेजी, हिंदी, कन्नड़, कोंकणी और मराठी पर महारत हासिल थी और लोगों से जुड़ने में उनके भाषाई ज्ञान की विविधता ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

राजनीतिक मतभेदों के बावजूद फर्नांडिस के साथ गहरी दोस्ती रखने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने उनके निधन पर कहा,‘‘ हमने एक ऐसा नेता खो दिया जो एक लड़ाका था, जिसने अपनी पूरी जिंदगी देश के मजदूरों और आम आदमी के हितों के लिए लड़ने में लगा दी।’’

फर्नांडिस को सबसे पहले एक यूनियन लीडर के रूप में पहचान 1974 की रेलवे की हड़ताल ने दी । इस हड़ताल से पूरा देश ठहर गया था। इतना ही नहीं, उद्योग मंत्री के नाते उन्होंने 1977 में कोका कोला और आईबीएम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को हिंदुस्तान से अपना बोरिया बिस्तर समेटने पर मजबूर कर दिया था। रक्षा मंत्री के नाते उन्होंने 1999 में करगिल युद्ध की कमान संभाली और 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किया।

वह एकमात्र ऐसे रक्षा मंत्री थे जिन्होंने संविधान के एक कड़े प्रावधान का इस्तेमाल कर सेवारत नौसेना प्रमुख को पद से हटा दिया था। उन्होंने वाइस एडमिरल हरिन्द्र सिंह को उप नौसेना प्रमुख नियुक्त किए जाने के कैबिनेट के फैसले का सार्वजनिक रूप से विरोध करने के लिए दिसंबर 1998 में एडमिरल विष्णु भागवत को पद से हटा दिया था।

आमतौर पर फर्नांडिस बिना इस्त्री के कुर्ते पायजामे और चप्पल पहने नजर आते थे । उनका व्यक्तित्व बनावट से कितनी दूर था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सत्ता में रहने और महत्वपूर्ण मंत्री पद संभालने के बावजूद उन्होंने अपनी पहचान बन चुके कुर्ते पायजामे को नहीं छोड़ा । सैनिकों के लिए उनके दिल में अथाह सम्मान और कर्तज्ञता की भावना थी और बतौर रक्षा मंत्री उन्होंने 30 से ज्यादा बार सियाचिन का दौरा किया था। अक्सर वह क्रिसमस के दौरान जवानों को बांटने के लिए केक लेकर जाते थे।

उन्होंने बतौर रक्षा मंत्री रक्षा क्षेत्र की पारंपरिक परिभाषा को बदल दिया और अपने पारंपरिक दुश्मन पाकिस्तान से हटाकर अपना ध्यान चीन पर केंद्रित करते हुए उन्होंने चीन को भारत का ‘‘नंबर एक ’’ दुश्मन करार दिया था ।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगा दिया था । फर्नांडिस धुर कांग्रेस विरोधी नेता थे और आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को बहाल करने के लिए उन्होंने जी तोड़ संघर्ष किया और एक महत्वपूर्ण हस्ती बनकर उभरे ।आपातकाल के दौरान हथकड़ी लगे हाथ को ऊपर उठाए हुए उनकी तस्वीर उस जमाने की सच्चाई को बयां कर रही थी और यह तस्वीर बेहद लोकप्रिय हुयी थी।

सालों तक फर्नांडिस के सहयोगी रहे केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान उन्हें याद करते हुए बताते हैं, ‘‘लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता तमाम संदेहों से परे थी, अपने सच को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी हद से गुजर जाने की उनकी इच्छाशक्ति आपातकाल के दौरान, न सिर्फ उनके लिए बल्कि बहुत से अन्य नेताओं के लिए भी प्रेरणास्रोत थी। ’’

श्रीमती गांधी ने जब 1977 में चुनाव कराए तो फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए भारी बहुमत से मुजफ्फरपुर से लोकसभा चुनाव जीता । बड़ौदा डायनामाइट मामले में उनकी भूमिका के लिए उस समय उन्हें जेल की सजा सुनायी गयी थी। कांग्रेस चुनाव हार गयी और फर्नांडिस जेल से रिहा हो गए ।

जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार में उन्हें उद्योग मंत्री बनाया गया और तुरंत ही उन्होंने कोका कोला और आईबीएम के लिए फरमान जारी कर दिया कि वे अपने भारतीय उद्यम में 40 फीसदी से अधिक शेयर अपने नाम पर नहीं रख सकते ।

लेकिन कंपनियों ने इस फरमान को नहीं माना जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें अपना कामकाज बंद कर भारत को अलविदा कहना पड़ा।

केंद्र की गठबंधन सरकार के समय, कई सत्ताधारी घटकों के साथ उनके संबंध मधुर नहीं थे जिनमें भाजपा को भी वह उसकी हिंदू विचारधारा तथा आरएसएस के साथ जुड़ाव के चलते पसंद नहीं करते थे । लेकिन 1990 के दशक में यह जार्ज फर्नांडिस ही थे जिन्होंने भगवा पार्टी से हाथ मिलाया और अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में भाजपा को दो बार सत्तासीन करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। वाजपेयी सरकार में वह रक्षा मंत्री बने ।

उनके राजनीतिक गणित को कुछ लोग राजनीतिक अवसरवाद के रूप में भी देखते हैं ।

40 राजनेताओं के जीवन पर आधारित किताब, ‘‘फेसेस, फोर्टी इन दी फ्रे ’’ में राजनीतिक टिप्पणीकार जनार्दन ठाकुर कहते हैं, ‘‘अस्तित्व की लड़ाई फर्नांडिस की सर्वोच्च प्राथमिकता होती थी ।’’

फर्नांडिस के पाक साफ दामन पर तहलका रक्षा घोटाले का दाग ऐसा लगा कि वह हिल गए । इसमें उनकी करीबी सहयोगी जया जेटली पर आरोप लगा था कि उन्होंने रक्षा बिचौलिये से रिश्वत का लेनदेन किया । हालांकि यह रक्षा बिचौलिया असल में तहलका पत्रिका का खुफिया रिपोर्टर था।इस कांड के चलते फर्नांडिस को रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा ।

फर्नांडिस ने 1967 में बांबे साउथ लोकसभा सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एस के पाटिल को हराकर धमाकेदार तरीके से राजनीति में प्रवेश किया था।

ऐसा भी माना जाता है कि उन्होंने नीतीश कुमार को राज्य में 1995 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन के करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। नीतीश भी फर्नांडिस की तरह ही बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद से किनारा करने लगे थे ।

उनकी निजी जिंदगी विवादों से खाली नहीं रही।समता पार्टी में उनकी सहयोगी जया जेटली उनके साथ आकर रहने लगीं । उस समय उनकी पत्नी लैला कबीर और बेटा अमेरिका में थे । उन्होंने आरोप लगाया कि फर्नांडिस के भाइयों ने जया के साथ मिलकर उनकी संपत्ति और राजनीतिक विरासत को हड़पने की साजिश रची थी।

यह मामला अदालत तक पहुंचा जहां से उनकी पत्नी और बेटे के पक्ष में फैसला अया। दोनों ने फर्नांडिस को अपनी देखरेख में ले लिया । उस समय तक वह अल्जाइमर बीमारी की चपेट में आ चुके थे ।इस बीमारी के चलते वह अपने आसपास की घटनाओं को समझने में नाकाम थे । करीब एक दशक तक वह सार्वजनिक जीवन से दूर रहे ।उनके परिवार के लोग नयी दिल्ली के पंचशील पार्क इलाके में स्थित घर में ही उनकी देखभाल करते थे।

जेटली ने कहा, ‘‘ फर्नांडिस एक बेखौफ नेता थे और हमेशा कुछ न कुछ करने को बेताब रहते थे ।उन्होंने जनता के लिए राजनीति की।’’

लेकिन उनका राजनीतिक कैरियर उसी समय खत्म हो गया था जब उन्होंने जनता दल यू द्वारा टिकट नहीं दिए जाने पर मुजफ्फरपुर से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था। अल्जाइमर बीमारी के कारण जद यू ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया था।

लेकिन उनके निर्वाचन क्षेत्र की जनता ने उन्हें नकार दिया। इसके बावजूद वह राज्यसभा सदस्य के रूप में संसद पहुंच गए । एक साल बाद वह राज्यसभा से भी विदा हो गए । इसके बाद वह कभी सक्रिय राजनीति में नहीं लौटे ।

पहले हिंदु रीति से होगा अंतिम संस्कार:
पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडिस के पार्थिव शरीर का पहले हिंदू रीति से अंतिम संस्कार किया जाएगा और बाद में उनकी अस्थियों को दफनाया जायेगा।
सामाजिक कार्यकर्ता एवं समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली ने मंगलवार को बताया कि पहले श्री फर्नांडिस ने हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार की इच्छा जतायी थी और जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने दफनाने की मंशा जाहिर की थी। सुश्री जेटली ने कहा कि उनकी इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए पहले उनके शव का अंतिम संस्कार किया जायेगा और बाद में अस्थियों को दफनाया जायेगा । ऐसा करने से उनकी दोनों इच्छाओं को पूरा किया जा सकेगा।
श्री फर्नांडिस का मंगलवार सुबह निधन हो गया था । वह 88 वर्ष के थे ।
इससे पहले सुश्री जेटली ने बताया था कि श्री फर्नांडिस का अंतिम संस्कार उनके पुत्र के आने के बाद बुधवार को किया जायेगा। उन्होंने कहा, “श्री फर्नांडिस के पुत्र अमेरिका में रहते हैं। हम उनके आने का इंतजार कर रहे हैं । उनका अंतिम संस्कार कल किया जायेगा।”
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