इलाहाबाद, 30 नवम्बर । गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की पावन धारा पर सात समंदर पार से यहां पहुंचे ‘साइबेरियन पक्षियों’ के कलरव और अठखेलियाें से संगम तट अब गुलजार हाे गया है।
संगम तट पर लगने वाले माघ मेले से पहले गुलाबी ठण्ड शुरू होते ही साइबेरियन पक्षी यहां क्रीडा करते हुए बिताते हैं और फरवरी में अपने अपने गंतब्य की ओर उड़ जाते है। साइबेरिया से अपना आशियाना छोड़कर हजारों किलोमीटर की यात्रा कर ये पक्षी भारत में अक्टूबर महीने से दस्तक देना शुरू कर देते हैं।
साइबेरिया से अफगानिस्तान, मध्य एशिया होते हुए ये पक्षी भरतपुर बर्ड सेंचुरी पहुंचते हैं। ये पक्षी भरतपुर के बाद संगम तट इलाहाबाद, नारायनपुर कालन, देहराऊ और सिरसी पहुंचने से पहले कई जगहों पर अपना डेरा जमाते हैं। यह फरवरी के अन्त या मार्च तक यहां रहते हैं। साइबेरिया में इस दौरान कड़ाके की सर्दी और हिमपात के कारण इनके लिए आहार की समस्या पैदा हाे जाती है। इसलिए ये भारत की तरफ अपना रूख कर देते हैं। ऋतु बदलते ही ये पक्षी अपने मूल ठौर साइबेरिया वापस लौटना शुरू कर देते हैं।
हर साल संगम में आने वाले इन विदेशी मेहमानों का जहां पर्यटकों को बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है, वहीं इन विदेशी मेहमानों को कोई नुकसान न पहुंचे इसके लिए अवैध शिकार पर भी पाबंदी लगाई गई है। इसके साथ ही प्रशासन और वन विभाग भी संगम तट पर विदेशी मेहमानों की सुरक्षा को लेकर सतर्क रहता है।
हजारों की संख्या में इन परिंदों के कलरव से घाट गुलजार हो गए हैं। संगम पहुंचने वाले सैलानियों के लिए यह मेहमान आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। साइबेरियन पक्षियों के समूह के संगम तट पर पहुंचने से यहां के वातावरण में और भी निखर आया है। संगम में आने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही देशी-विदेशी पर्यटक भी इन विदेशी मेहमानों के कलरव का शाम तक आनंद लेते हैं।
संगम तट पर पहुंचने वाले साइबेरियन पक्षियों को श्रद्धालु और पर्यटक नौका विहार करते समय अपने अपने कैमरे में कैद करना नहीं भूलते। इन्हें पर्यटकों से जरा भी डर नहीं लगता। कई बार तो यह दाना चुगाने वालों के साथ नौका पर ही सवार हो जाते हैं।
यूक्रेन की डिमिट्री डामिलोव, जर्मनी की जाहिरा वाकर, मॉस्को की टुप्लिन सगेई ने बताया कि पक्षियों के कलरव और अठखेलियों से प्रभावित होकर उन्होंने नौका विहार किया और उन्हें नजदीक से देखा। उन्होंने इसे “स्ट्रेन्ज और अनफारगेटबल मूमेंट” (अद्भुत और न भूलने वाला पल बताया)। उन्होंने नाव पर सवार होकर बेसन से बनी नमकीन और लाई को गंगा में जैसे ही गिराया तो कलरव के साथ सैकडाें पक्षियों ने गंगा में गिराये गये सेव को चुगने के लिये घेरा बना लिया। जैसे जैसे सेव और लाई बहती जा रही थी पक्षी भी उसी के साथ आगे तैरते जा रहे थे।
ये विदेशी बनारस में संस्कृत सीख रहे हैं। संस्कृत सीखने के दौरान तीनों मित्र बन गये। यह यहां घूमने के लिए आये थे। डामिलोव का कहना है कि वह कई जगह संस्कृत सीखने गई, लेकिन वह ज्ञान नहीं मिल पाया, जो उन्हें बनारस में मिल रहा है। टुप्लिन सगेई ने बताया कि बौद्ध धर्म भारत से विश्व में फैला है। बौद्ध दर्शन को गहराई से समझने के लिए भारतीय दर्शन को जानना जरूरी है। वहीं जाहिरा वाकर भारतीय दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने के लिए संस्कृत सीख रही हैं।
नाव चलाने वाले दीपक मांझी ने बताया कि साइबेरियन पक्षी को देखने के लिए दूर-दराज से लोग यहां आते हैं। वे नाव पर बैठकर नदी की सैर करते हैं और पक्षियों को चारा भी खिलाते हैं। इस लिहाज से ठंड के महीनों में उनके साथ-साथ घाट पर दाना बेचने वाले, चाय-पान की दुकान लगाने वालों की भी अच्छी-खासी कमाई होती है।
दीपक ने बताया कि इन पक्षियों के आने से घाट गुलजार हो गये हैं। यहां सुबह से लेकर शाम तक सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। शाम ढलते-ढलते यहां का नजारा और भी रमणीय हो जाता है। घाट पर लाई और बेसन के सेव बेचने वाली 18 वर्षीय कविता कहती है कि दिन भर में उसे कम से कम 100 से 150 रूपये मिल जाते हैं जबकि इससे पहले 50 रूपये का सामान बेचना मुश्किल हो जाता था। कई बार तो विदेशी पर्यटकों के समूह आने पर उसे 500 रूपये तक की कमाई हो जाती है।
साइबेरियन पक्षियों के डेरा डालने से संगम तट पर बराबर भीड़ बनी रहती है जिससे अब यहां कई चाय और पान की दुकानें खुल गयी हैं। बनवारी चाय वाले का कहना है कि वह एक चाय पांच रूपये में बेचता है। दिन भर में आसानी से 100 चाय बिक जाती है। परिवार का भरण पोषण अच्छा चल रहा है।attacknews.in