नयी दिल्ली 06 अगस्त । अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण कानून को पुराने स्वरूप में लाने वाला विधेयक लोकसभा में आज ध्वनिमत से पारित हो गया।
सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सदन में अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक 2018 पर चर्चा का जवाब देते कहा कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद दलितों पर अत्याचार के मामले दर्ज करने से पहले पुलिस को किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी और मुजरिम को अग्रिम जमानत भी नहीं मिलेगी। प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस जांच की भी जरूरत नहीं होगी और पुलिस को सूचना मिलने पर तुरंत प्राथमिकी दर्ज करनी पड़ेगी।
श्री गेहलोत ने कहा कि मोदी सरकार ने कार्यभार संभालते समय पहले संबोधन में संकल्प लिया था कि उनकी सरकार गरीबों, पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों को समर्पित होगी। इन चार साल के कार्यकाल में ऐसे अनेक अवसर आये हैं जिनमें इस संकल्प की सिद्धि दिखाई दी है। उन्होंने कहा कि सरकार ने उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करके पदोन्नति में आरक्षण भी सुनिश्चित कराया है। उन्होंने कहा कि देश में भ्रम फैलाया जा रहा है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस संकल्प को भी दोहराया कि आरक्षण को कोई नहीं छीन सकता है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने 2015 में इसी कानून में संशोधन करके 22 की बजाय 47 अपराध शामिल कराये थे।
उन्होंने उच्चतम न्यायालय के फैसले को चुनौती देने में सरकार की देरी के आरोप पर सफाई देते हुए कहा कि इस बार भी 20 मार्च को फैसला आने पर 21 मार्च को आदेश की प्रति प्राप्त की और 23 मार्च को पुनर्विचार याचिका दायर करने की घोषणा की थी।
उन्होंने कहा कि अब चालान पेश होने के दो माह के भीतर फैसला आ जाएगा।
उन्होंने यह भी बताया कि 29 राज्यों ने इस प्रकार के मामलों के लिए जिला एवं सत्र न्यायालयों को विशेष न्यायालय अधिसूचित किया है तथा 14 राज्यों ने 195 विशेष अदालतें भी स्थापित करने की बात कही है।
श्री गेहलोत ने कहा कि इससे पीड़ित को न्याय और दोषी को सजा जल्द मिल सकेगी। इसके बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक पारित कर दिया।
प्रस्तावित कानून के माध्यम से 1989 के कानून में एक नयी धारा जोड़ने का प्रावधान किया गया है जिसमें कहा गया है कि कानून के तहत किसी भी आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं होगी।
इसके अलावा जांच अधिकारी को अपने विवेक से आरोपी को गिरफ्तार करने का अधिकार होगा और उसे इसके लिए किसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं हाेगी।
विधेयक में यह भी व्यवस्था की गयी है कि किसी भी न्यायालय के फैसले या आदेश के बावजूद दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के प्रावधान इस कानून के तहत दर्ज मामले में लागू नहीं होंगे।
उच्चतम न्यायालय ने गत 20 मार्च को एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून के कुछ सख्त प्रावधानों को हटा दिया था जिसके कारण इससे जुड़े मामलों में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लग गयी थी और प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच जरूरी हो गयी थी।
न्यायालय के फैसला का विभिन्न राजनीतिक दलों एवं संगठनों ने विरोध किया था और सरकार से कानून को पहले के स्वरूप में लाने की मांग की थी। मंत्रिमंडल की गत बुधवार को हुई बैठक में कानून के पूर्व के प्रावधानों को बहाल करने के लिए संशोधन विधेयक को मंजूरी दी गयी थी।attacknews.in