नागपुर, 25 अक्टूबर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि भारत एक ‘हिंदू राष्ट्र’ है और हिंदुत्व देश की पहचान का सार है।
भागवत ने यहां नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वार्षिक दशहरा रैली को संबोधित करते हुए यह बात कही। कोरोना वायरस महामारी के दिशा निर्देशों के अनुसार संघ ने इस कार्यक्रम का आयोजन इस साल सीमित रूप से किया था। रैली का प्रसारण ऑनलाइन किया गया।
भागवत ने कहा, ‘हिंदुत्व इस राष्ट्र की पहचान का सार है। हम स्पष्ट रूप से देश की पहचान को हिंदू मानते हैं क्योंकि हमारी सभी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाएं इसी के सिद्धांतों से चलती हैं।’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि ‘हिन्दुत्व’ ऐसा शब्द है, जिसके अर्थ को धर्म से जोड़कर संकुचित किया गया है। संघ की भाषा में उस संकुचित अर्थ में उसका प्रयोग नहीं होता।
भागवत ने कहा कि यह शब्द अपने देश की पहचान, अध्यात्म आधारित उसकी परंपरा के सनातन सत्य तथा समस्त मूल्य सम्पदा के साथ अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है।
संघ प्रमुख ने कहा, “संघ मानता है कि ‘हिंदुत्व’ शब्द भारतवर्ष को अपना मानने वाले, उसकी संस्कृति के वैश्विक व सर्वकालिक मूल्यों को आचरण में उतारना चाहने वाले तथा यशस्वी रूप में ऐसा करके दिखाने वाली उसकी पूर्वज परम्परा का गौरव मन में रखने वाले सभी 130 करोड़ समाज बन्धुओं पर लागू होता है।”
उन्होंने कहा कि ‘हिंदू’ शब्द के विस्मरण से हमको एकात्मता के सूत्र में पिरोकर देश व समाज से बाँधने वाला बंधन ढीला होता है।
भागवत ने कहा, ‘इसीलिए इस देश व समाज को तोड़ना चाहने वाले, हमें आपस में लड़ाना चाहने वाले, इस शब्द को, जेा सबको जोड़ता है, अपने तिरस्कार व टीका टिप्पणी का पहला लक्ष्य बनाते हैं।’
संघ प्रमुख ने कहा कि “राजनीतिक स्वार्थ, कट्टरपन व अलगाव की भावना, भारत के प्रति शत्रुता तथा जागतिक वर्चस्व की महत्वाकांक्षा, इनका एक अजीब सम्मिश्रण भारत की राष्ट्रीय एकात्मता के विरुद्ध काम कर रहा है।”
उन्होंने कहा, ‘हिन्दू’ किसी पंथ, सम्प्रदाय का नाम नहीं है, किसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं है, किसी एक जाति की बपौती नहीं है, किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है।
उन्होंने कहा कि ‘हिन्दू’ शब्द की भावना की परिधि में आने व रहने के लिए किसी को अपनी पूजा, प्रान्त, भाषा आदि कोई भी विशेषता छोड़नी नहीं पड़ती। केवल अपना ही वर्चस्व स्थापित करने की इच्छा छोड़नी पड़ती है। स्वयं के मन से अलगाववादी भावना को समाप्त करना पड़ता है।
“भारत की विविधता के मूल में स्थित शाश्वत एकता को तोड़ने का घृणित प्रयास, हमारे तथाकथित अल्पसंख्यक तथा अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को झूठे सपने तथा कपोलकल्पित द्वेष की बातें बता कर चल रहा है। ’भारत तेरे टुकड़े होंगे’ ऐसी घोषणाएँ देने वाले लोग इस षड्यंत्रकारी मंडली में शामिल हैं।”
शक्ति और दायरे में भारत को चीन से बड़ा होना चाहिये : भागवत
सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारत को शक्ति एवं व्याप्ति (ताकत एवं दायरा) के क्षेत्र में चीन से बड़ा होना चाहिये । इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि चीन की विस्तारवादी प्रकृति से पूरी दुनिया अवगत है ।
भागवत ने कहा कि भारत को चीन के खिलाफ बेहतर सैन्य तैयारियां करने की जरूरत है । उन्होंने कहा कि अब कई देश चीन के सामने खड़े हैं ।
उन्होंने कहा, ‘चीनी घुसपैठ पर भारत की प्रतिक्रिया से चीन सकते में है। चीन की अपेक्षा भारत को अपनी शक्ति एवं दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है ।’
संघ प्रमुख ने कहा, ‘चीन ने महामारी के बीच में हमारी सीमाओं का अतिक्रमण किया ।’ उन्होंने कहा कि उस देश (चीन) की विस्तारवादी प्रकृति से पूरी दुनिया अवगत है । उन्होंने ताइवान एवं वियतनाम का उदाहरण चीन की विस्तारवादी योजना के रूप में दिया ।
भागवत ने कहा कि हमारी मंशा सबके साथ मित्रता करने की है और यह हमारी प्रकृति है। उन्होंने कहा कि हमें किसी प्रकार से कमजोर करने अथवा खंडित करने का प्रयास कत्तई स्वीकार्य नहीं है और हमारे विरोधी अब इससे अवगत हो चुके हैं ।
उन्होंने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून किसी खास धार्मिक समुदाय के खिलाफ नहीं है । उन्होंने कहा, ‘कुछ लोग हमारे मुसलमान भाइयों को भ्रमित कर रहे हैं’ और दावा कर रहे हैं कि यह उनकी जनसंख्या को सीमित करने के लिये है ।
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर आगे चर्चा होती, इससे पहले कोरोना वायरस की तरफ ध्यान केंद्रित करना पड़ा । उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के दिमाग में केवल सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ना ही रहता है । कोरोना वायरस के कारण सब मुद्दे पीछे रह गये हैं ।
उन्होंने कहा, ‘हमें कोरोना वायरस से डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन हमें सतर्क एवं सावधान रहना चाहिये । हम जीना नहीं छोड़ सकते हैं । कोरोना वायरस फैल रहा है लेकिन इससे मरने वालों की संख्या कम है । महामारी के कारण हमने फिर से स्वच्छता, सफाई, पर्यावरण और पारिवारिक मूल्यों के महत्व को जानना शुरू कर दिया है ।
भागवत ने कहा, ‘कोरोना वायरस ने बेरोजगारी की चुनौतियों को जन्म दिया है। कई लोगों की नौकरियां चली गयी हैं । श्रमिकों ने अब शहरों में लौटना शुरू कर दिया है लेकिन नौकरियों का अब अभाव हो सकता है । चुनौती अब विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने की है ।’
संघ प्रमुख ने कहा, ‘अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्तत कर दिया गया, राम मंदिर निर्माण के उच्चतम न्यायालय के फैसले को देश ने संयम एवं समझदारी के साथ स्वीकार किया ।
RSS प्रमुख डा मोहन भागवत के संबोधन के अंश:
चीन से निपटने के लिए तैयार रहे भारत: मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को विजयादशमी उत्सव के अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि भारत को चीन से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार रहना चाहिए और देश अपने किसी भी शत्रु के आगे नहीं झुकेगा।
श्री भागवत ने आरएसएस के स्थापना दिवस एवं विजयादशमी के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उक्त बात कही।
चीन तथा भारत सहित अन्य पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को लेकर आरएसएस प्रमुख ने कहा, “इस महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही है, परंतु भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने किया वह तो सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है। भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर खड़े होकर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय एवं वीरता का उज्ज्वल परिचय दिया, इससे चीन को अनपेक्षित धक्का मिला लगता है। इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा।
चीन ने अपनी विस्तारवादी मनोवृत्ति का परिचय इसके पहले भी विश्व को समय-समय पर दिया है। आर्थिक क्षेत्र में, सामरिक क्षेत्र में, अपनी अंतर्गत सुरक्षा तथा सीमा सुरक्षा व्यवस्थाओं में, पड़ोसी देशों के साथ तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चीन से अधिक बड़ा स्थान प्राप्त करना ही उसकी राक्षसी महत्त्वाकांक्षा के नियंत्रण का एकमात्र उपाय है। इस ओर हमारे शासकों की नीति के कदम बढ़ रहे हैं ऐसा दिखाई देता है। श्रीलंका, बंगलादेश, नेपाल ऐसे हमारे पड़ोसी देश, जो हमारे मित्र भी हैं और समान प्रकृति के देश हैं, उनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए। इस कार्य में बाधा उत्पन्न करने वाले मनमुटाव, मतान्तर, विवाद के मुद्दे आदि को शीघ्रतापूर्वक दूर करने का अधिक प्रयास करना पड़ेगा।”
कोरोना और मजबूत भारत:
श्री भागवत ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में समाज के विभिन्न वर्गाें के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा, “शासन-प्रशासन व समाज के सभी अंगों ने मिलकर कोरोना के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों का सामना किया उसके कारण विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारा भारत संकट की इस परिस्थिति में अधिक अच्छे प्रकार से खड़ा हुआ दिखाई देता है।”
उन्होंने कहा कि कोरोना की प्रतिक्रिया के रूप में विश्व में जागृत हुए ‘स्व’ के महत्व, पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन, राष्ट्रीयता एवं अन्य सांस्कृतिक मूल्यों की महत्ता को बनाए रखने के लिए परिवार एक महत्वपूर्ण इकाई है। अपने छोटे-छोटे आचरण की बातों में परिवर्तन लाने का क्रम बनाकर, नित्य इन सब विषयों के प्रबोधन के उपक्रम चलाकर, हम अपनी आदत के इस परिवर्तन को कायम रखकर आगे बढ़ा सकते हैं। प्रत्येक कुटुम्ब इसकी इकाई बन सकता है। उन्होंने कहा कि सौहार्द को बढ़ावा देने हेतु, सभी अपनी सबकी एक बड़ी पहचान ‘हिंदुत्व’ को स्वीकार करें।
स्वदेशी और स्वावलम्बन:
स्वदेशी एवं स्वावलंबन की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा, “ स्वदेशी केवल सामान एउवं सेवा तक सीमित नहीं। इसका अर्थ राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय सम्प्रभुता तथा बराबरी के आधार पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की स्थिति को प्राप्त करना है। स्वावलम्बन में ‘स्व’ का अवलम्बन अभिप्रेत है। ‘स्व’ या आत्मतत्त्व का विचार इस व्यापक परिप्रेक्ष्य में सबको आत्मसात करना होगा, तभी उचित दिशा में चलकर यह यात्रा यशस्वी होगी।”
चिकित्सा और सेवा:
आरएसएस प्रमुख ने स्वास्थ्यकर्मियों, प्रशासन के कर्मचारियों तथा आम नागरिकों की प्रशंसा करते हुए कहा, “प्रशासन के कर्मचारी, विभिन्न उपचार पद्धतियों के चिकित्सक तथा सुरक्षा और सफाई सहित सभी काम करने वाले कर्मचारी उच्चतम कर्त्तव्य बोध के साथ मरीजों की सेवा में जुटे रहे। स्वयं को कोरोना वायरस की बाधा होने की जोखिम उठाकर उन्होंने दिन-रात अपने घर परिवार से दूर रहकर युद्ध स्तर पर सेवा का काम किया। नागरिकों ने भी अपने समाज बंधुओं की सेवा के लिए स्वयंस्फूर्ति के साथ जो भी समय की आवश्यकता थी, उसको पूरा करने में प्रयासों की कमी नहीं होने दी।”
संकट के समय स्वयंसेवकों की भुमिका:
इन परिस्थितियों में संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका के बारे में चर्चा करते हुए श्री भागवत ने कहा, “ संघ के स्वयंसेवक तो मार्च महीने से ही इस संकट के संदर्भ में समाज में आवश्यक सब प्रकार के सेवा की आपूर्ति करने में जुट गए हैं। सेवा के इस नए चरण में भी वे पूरी शक्ति के साथ सक्रिय रहेंगे।”
घटित घटनाओं का उल्लेख:
इस अवसर पर बीते वर्ष की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के विषय में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, “गत मार्च महीने से देश दुनिया में घटने वाली सभी घटनाओं को कोरोना महामारी के प्रभाव की चर्चा ने मानो ढक दिया है। पिछले विजयादशमी से अब तक बीते समय में चर्चा योग्य घटनाएं कम नहीं हुईं। संसदीय प्रक्रिया का अवलंबन करते हुए अनुच्छेद 370 को अप्रभावी करने का निर्णय तो विजयादशमी के पहले ही हो गया था। दीपावली के पश्चात नौ नवंबर को श्रीरामजन्मभूमि के मामले में अपना निर्णय देकर सर्वोच्च न्यायालय ने इतिहास बनाया। भारतीय जनता ने इस निर्णय को संयम और समझदारी का परिचय देते हुए स्वीकार किया। यह मंदिर निर्माण के आरंभ का भूमिपूजन इस वर्ष दिनांक पांच अगस्त को संपन्न हुआ, तब अयोध्या में समारोह स्थल पर हुए कार्यक्रम के तथा देशभर में उस दिन के वातावरण के सात्विक, हर्षोल्लासित परंतु संयमित, पवित्र व स्नेहपूर्ण वातावरण से ध्यान में आया।”
उन्होंने कहा कि देश की संसद में नागरिकता अधिनियम संशोधन कानून (सीएए) पूरी प्रक्रिया को लागू करते हुए पारित किया गया। कुछ पड़ोसी देशों से सांप्रदायिक कारणों से प्रताड़ित होकर विस्थापित किए जाने वाले बन्धु, जो भारत में आएंगे, उनको मानवता के हित में शीघ्र नागरिकता प्रदान करने का यह प्रावधान था। उन देशों में साम्प्रदायिक प्रताड़ना का इतिहास है। भारत के इस नागरिकता अधिनियम संशोधन कानून में किसी संप्रदाय विशेष का विरोध नहीं है। भारत में विदेशों से आने वाले अन्य सभी व्यक्तियों को नागरिकता दिलाने के कानूनी प्रावधान, जो पहले से अस्तित्व में थे, यथावत् रखे गए थे। परन्तु कानून का विरोध करने वाले लोगों ने अपने देश के मुसलमान भाइयों के मन में उनकी संख्या भारत में सीमित करने के लिए यह प्रावधान है ऐसा भर दिया। उसको लेकर जो विरोध प्रदर्शन आदि हुए उनमें ऐसे मामलों का लाभ उठाकर हिंसात्मक तथा उपद्रव पैदा करने वाले तत्त्व घुस गए। देश का वातावरण तनावपूर्ण बन गया। इससे उबरने के उपाय का विचार पूर्ण होने के पहले ही कोरोना की परिस्थिति आ गई, और माध्यमों की व जनता की चर्चा में से यह सारी बातें लुप्त हो गईं। उपद्रवी तत्त्वों द्वारा इन बातों को उभार कर विद्वेष व हिंसा फैलाने के षड्यंत्र पृष्ठभूमि में चल रहे हैं।
श्री भागवत ने कहा, “ यह संशोधन किसी विशेष धार्मिक समुदाय का विरोध नहीं करता। लेकिन, कानून का विरोध करने वालों ने ऐसा वातावरण बनाया कि इस देश में मुसलमानों की संख्या ना बड़े इसलिए ये क़ानून बनाया गया है।”
उन्होंने कहा, “ ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ ऐसी घोषणाएँ देने वाले लोग इस षड्यंत्रकारी मंडली में शामिल हैं, नेतृत्व भी करते हैं। राजनीतिक स्वार्थ, कट्टरपन व अलगाव की भावना, भारत के प्रति शत्रुता तथा वर्चस्व की महत्वाकांक्षा, इनका एक अजीब सम्मिश्रण भारत की राष्ट्रीय एकात्मता के विरुद्ध काम कर रहा है। यह समझकर धैर्य से काम लेना होगा। भड़काने वालों के अधीन ना होते हुए, संविधान व कानून का पालन करते हुए, अहिंसक तरीके से व जोड़ने के ही एकमात्र उद्देश्य से हम सबको कार्यरत रहना पड़ेगा।”
हिंदुत्व और समाज:
आरएसएस प्रमुख ने अपने भाषण में ‘हिंदुत्व’ शब्द पर लंबी चर्चा की और विरोधियों पर इसे लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया।
श्री भागवत ने कहा, “ हिन्दुत्व ऐसा शब्द है, जिसके अर्थ को पूजा से जोड़कर संकुचित किया गया है। यह शब्द अपने देश की पहचान को, आध्यात्म आधारित उसकी परंपरा के सनातन सातत्य और समस्त मूल्य सम्पदा के साथ अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है। हिन्दू किसी पंथ या संप्रदाय का नाम नहीं है। किसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं है, किसी एक जाति की बपौती नहीं है, किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है।”
उन्होंने कहा, “जब हम कहते हैं कि हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है तो इसके पीछे राजनीतिक संकल्पना नहीं है। ऐसा नहीं है कि हिंदुओं के अलावा यहां कोई नहीं रहेगा बल्कि इस शब्द में सभी शामिल हैं। हिंदू शब्द की भावना की परिधि में आने एवं रहने के लिए किसी को अपनी पूजा, प्रान्त, भाषा आदि कोई भी विशेषता छोड़नी नहीं पड़ती. केवल अपना ही वर्चस्व स्थापित करने की इच्छा छोड़नी पड़ती है। स्वयं के मन से अलगाववादी भावना को समाप्त करना पड़ता है।”
संघ प्रमुख ने कहा, “हमारी छोटी-छोटी पहचान भी हैं, हमारी विविधता है, कुछ पहले से थे और कुछ बाहर से आए जो यहीं शामिल हो गए. हिंदू विचार में ऐसी विविधताओं का स्वीकार और सम्मान हैं। लेकिन इस विविधता को कई लोग अलगाव कहते हैं।”
नये कृषि कानून का समर्थन:
श्री भागवत ने अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि बिल का समर्थन भी किया। उन्होंने कहा कि ऐसी नीति चाहिए कि किसान अपने माल का भंडारण, प्रसंस्करण खुद कर सके, सारे मध्यस्थों और दलालों के चंगुल से बचकर अपनी इच्छा से अपना उत्पादन बेच सके, यही स्वदेशी कृषि नीति कहलाती है।।’