Home / State / कोरोना से नहीं जीत सके रालोद नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह का कोविड-19 से निधन;4 दशक के राजनीतिक करियर में एक दूसरे के धुर विरोधी कांग्रेस और भाजपा से हाथ मिलाने में करीब गुरेज नहीं किया attacknews.in

कोरोना से नहीं जीत सके रालोद नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह का कोविड-19 से निधन;4 दशक के राजनीतिक करियर में एक दूसरे के धुर विरोधी कांग्रेस और भाजपा से हाथ मिलाने में करीब गुरेज नहीं किया attacknews.in

नयी दिल्ली, छह मई । राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह का बृहस्पतिवार को गुरुग्राम में कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से निधन हो गया। परिवार ने यह जानकारी दी।

वह 82 साल के थे।

परिवार ने एक बयान में बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह 20 अप्रैल को कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए थे।

उनके बेटे जयंत चौधरी ने ट्वीट कर बताया, ‘‘चौधरी अजित सिंह 20 अप्रैल को कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए थे। उन्होंने आखिर तक इस महामारी से मुकाबला किया और आज सुबह, छह मई 2021 को आखिरी सांस ली।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ अपने पूरे जीवनकाल में चौधरी साहब को आपका भरपूर प्यार और सम्मान मिला। आप सभी के साथ यह संबंध उनके लिए प्रिय थे और उन्होंने आपके कल्याण के बारे में हमेशा सोचा और कोशिश की।’’

जयंत चौधरी ने कहा, ‘‘ हमारा देश भयावह महामारी से गुजर रहा है। इसलिए मेरा उन सभी से अनुरोध है जो उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने को इच्छुक हैं, कृपया अपने घरों में रहें। हम सभी सुरक्षा नियमों का अनुपालन करें ताकि हम खुद और आसपास के सभी लोग स्वस्थ और सुरक्षित रहें। यह चौधरी साहब के प्रति बेहतरीन सम्मान होगा और साथ-साथ कोरोना योद्धाओं के लिए भी, जो दिन रात हमारी रक्षा के लिए काम कर रहे हैं।’’

परिवार की ओर से जारी बयान में जयंत चौधरी ने कहा, ‘‘हम उन सभी परिवारों को सांत्वना देने के लिए प्रार्थना करते हैं जो इस क्रूर बीमारी से प्रभावित हुए हैं।’’

चौधरी अजित सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, समाजवादी पार्टी प्रमुख आखिलेश यादव और अन्य नेताओं ने भी शोक व्यक्त किया है।

वो आसमां था मगर सर झुकाये चलता था

राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के संस्थापक एवं अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह राजनीतिक गलियारे की ऐसी बेमिसाल शख्सियत थे जिन्होेने किसान एवं वंचित वर्ग के उत्थान के साथ उनका हक दिलाने के लिये जीवन पर्यन्त संघर्ष किया।

कोरोना संक्रमित चौधरी अजित सिंह का गुरूवार तड़के गुरूग्राम के एक अस्पताल में निधन हो गया था।

आठ बार लोकसभा अथवा राज्यसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले और चार बार केन्द्रीय मंत्री रह चुके श्री चौधरी ने अपने चार दशक से लंबे राजनीतिक करियर में एक दूसरे के धुर विरोधी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हाथ मिलाने में करीब गुरेज नहीं किया।

किसानो के हित के लिये मृदभाषी नेता समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ भी खड़े हुये।

पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अनिल दुबे श्री चौधरी के साथ बिताये लम्हो की याद करते हुये उनके व्यक्तित्व को एक शायरी में ढालते हैं कि “ लगा सका न कोई उसके कद का अंदाज़ा, वो आसमां था मगर सर झुकाये चलता था।” उन्होने भावुक अंदाज में कहा कि श्री अजित सिंह के निधन के साथ भारतीय राजनीति में एक युग का अंत हो गया।

उन्हें कृषि और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी में गहरी रुचि थी।जनता का दर्द समझने की ताकत तो जैसे उनके खून में थी।

पेशे से कंप्यूटर वैज्ञानिक रहे, चौधरी साहब ने किसान व वंचित वर्ग को उनकी राजनीतिक ताकत का एहसास कराया तथा उन्हें उनके हक़ दिलाने के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष किया।” चौधरी अजित सिंह देश के ग्रामीण विकास केंद्रित मॉडल के एक प्रमुख वकील थे।

उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बढ़े हुए निवेश और कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए स्थायी प्रौद्योगिकियों के प्रसार और किसानों के लिए आर्थिक पैदावार बढ़ाने के उपायों पर जीवनपर्यन्त जोर दिया।
विशेष रूप से 1996 में, उन्होंने चीनी मिलों के बीच की दूरी को 25 किमी से घटाकर 15 किमी कर दी, जिसके परिणामस्वरूप चीनी उद्योग में अधिक निवेश और प्रतिस्पर्धा बढ़ी और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ।

कृषि मंत्री के रूप में, उन्होंने कोल्ड स्टोरेज क्षमता को बढ़ाने के लिए क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना भी शुरू की, जिसने उद्योग में निजी निवेश के लिए आवश्यक प्रवाह को सक्षम किया।

वर्ष 2002 के सूखे के संकट का सामना कर रहे किसानों को राहत देने के लिए कृषि मंत्री चौ अजीत सिंह ने सभी संभव प्रयास किये, जिसके लिए लोग आज भी उन्हें याद करते हैं।

उन्होंने कैलमिटी रिलीफ फंड (सीआरएफ) से सहायता को सभी किसानों को उपलब्ध करवाया, जो उस समय तक दो हेक्टेयर या उससे कम भूमि वाले किसानों तक ही सीमित थी, यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में कृषक समुदायों के लिए महत्वपूर्ण था, जहां औसत भूस्खलन अधिक था लेकिन उत्पादकता कम थी।

उन्होंने देश में पुरातन और असमान भूमि अधिग्रहण कानूनों के खिलाफ जनता के आंदोलन को गति दी थी और दिल्ली में गन्ना किसानों द्वारा एफआरपी संशोधन (2009) के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के खिलाफ सफल आंदोलन भी किया, जिसके फलस्वरूप देश में गन्ना किसानो की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ।

इसी के साथ साथ उन्होंने आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सहित भारत के कुछ बड़े और प्रशासनिक रूप से शासन न करने योग्य राज्यों के पुनर्गठन के लिए आंदोलन किया।

भारतीय राजनीति में उन्हें सदैव एक कुशल वक्ता एवं किसान व वंचित वर्ग को उनका हक़ दिलवाने वाले एक संघर्षशील राजनेता के रूप में याद रखा जाएगा।
उनके जाने से एक ऐसा शून्य पैदा हो गया जो कभी भरा नहीं जा सकता।

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