मुंबई, 22 मई । भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को कोविड-19 संकट के प्रभाव को कम करने के लिए ब्याज दरों में कटौती, कर्ज अदायगी पर ऋण स्थगन को बढ़ाने और कॉरपोरेट को अधिक कर्ज देने के लिए बैंकों को इजाजत देने का फैसला किया।कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से भारतीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत दरों में विशेषकर रेपो दर और रिवर्स रेपो दर में 40 आधार अंकों की शुक्रवार को कटौती करने की घोषणा की जिससे घर, कार और अन्य ऋण के सस्ते होने की उम्मीद बनी है। गौरतलब है कि चार दशकों से अधिक समय में पहली बार अर्थव्यवस्था संकुचन के दौर से गुजर सकती है।
आरबीआई ने प्रमुख उधारी दर को 0.40 प्रतिशत घटा दिया। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अचानक हुई बैठक में वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए रेपो दर में कटौती का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया।
इस कटौती के बाद रेपो दर घटकर चार प्रतिशत हो गई है, जबकि रिवर्स रेपो दर 3.35 प्रतिशत हो गई है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली एमपीसी ने पिछली बार 27 मार्च को रेपो दर (जिस दर पर केंद्रीय बैंक बैंकों को उधार देता है) में 0.75 प्रतिशत की कमी करते हुए इसे 4.44 प्रतिशत कर दिया था।
समिति ने बहुमत के आधार पर यह निर्णय लिया है। समिति के पांच सदस्य नीतिगत दरों में कटौती के पक्ष में मतदान किया जबकि एक ने विरोध में मत दिया।
उन्होंने कहा कि रेपो दर को वर्तमान के 4.40 प्रतिशत से 40 आधार अंक कम कर 4.0 प्रतिशत कर दिया गया है। इसी तरह से रिवर्स रेपो दर 3.75 प्रतिशत से घटकर 3.35 प्रतिशत पर और बैंक दर 4.65 प्रतिशत से कम होकर 4.25 प्रतिशत हो गयी है। इसी तरह से मार्जिनल स्टैंडिंग फैस्लीलिटी (एमएसएफ) भी 40 आधार अंक कम होकर 4.25 प्रतिशत पर आ गयी है।
दास ने कहा कि कोरोना वायरस संकट के कारण कर्ज अदायगी पर ऋण स्थगन को तीन और महीनों के लिए अगस्त तक बढ़ा दिया गया है, ताकि कर्जदारों को राहत मिल सके।
इससे पहले मार्च में केंद्रीय बैंक ने एक मार्च 2020 से 31 मई 2020 के बीच सभी सावधि ऋण के भुगतान पर तीन महीनों की मोहलत दी थी। इसके साथ ही इन तरह के सभी ऋणों की अदायगी को तीन महीने के लिए आगे बढ़ा दिया गया था।
ऋण स्थगन के तहत लोगों से कर्ज के लिए उनके खातों से ईएमआई नहीं ली गई। रिजर्व बैंक की ताजा घोषणा के बाद 31 अगस्त को ऋण स्थगन की अवधि खत्म होने के बाद ही ईएमआई भुगतान शुरू होगा।
दास ने कहा कि छह महीने के ऋण स्थगन को सावधि ऋण में बदला जा सकता है।
आरबीआई ने कहा कि कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते आर्थिक गतिविधियां बाधित होने से भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि वित्त वर्ष 2020-21 में नकारात्मक रहेगी।
दास ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है और मुद्रास्फीति के अनुमान बेहद अनिश्चित हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘दो महीनों के लॉकडाउन से घरेलू आर्थिक गतिविधि बुरी तरह प्रभावित हुई है।’’ साथ ही उन्होंने जोड़ा कि शीर्ष छह औद्योगिक राज्य, जिनका भारत के औद्योगिक उत्पादन में 60 प्रतिशत योगदान है, वे मोटेतौर पर लाल या नारंगी क्षेत्र में हैं।
उन्होंने कहा कि मांग में गिरावट के संकेत मिल रहे हैं और बिजली तथा पेट्रोलियम उत्पादों की मांग घटी है। गवर्नर ने कहा कि सबसे अधिक झटका निजी खपत में लगा है, जिसकी घरेलू मांग में 60 फीसदी हिस्सेदारी है।
दास ने कहा कि मांग में कमी और आपूर्ति में व्यवधान के चलते चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होंगी। उन्होंने कहा कि 2020-21 की दूसरी छमाही में आर्थिक गतिविधियों में कुछ सुधार की उम्मीद है।
दास ने कहा कि मुद्रास्फीति का दृष्टिकोण बेहद अनिश्चित है और दालों की बढ़ी कीमतें चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि कीमतों में नरमी लाने के लिए आयात शुल्क की समीक्षा करने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष की पहली छमाही में प्रमुख मुद्रास्फीति की दर स्थिर रह सकती है और दूसरी छमाही में इसमें कमी आ सकती है। उनके मुताबिक चालू वित्त वर्ष की तीसरी या चौथी तिमाही में मु्द्रास्फीति की दर चार प्रतिशत से नीचे आ सकती है।
इसके अलावा दास ने कहा कि महामारी के बीच आर्थिक गतिविधियों के प्रभावित होने से सरकार का राजस्व बहुत अधिक प्रभावित हुआ है।
इसके अलावा बैंकों द्वारा कॉरपोरेट को दी जाने वाली ऋण राशि को उनकी कुल संपत्ति के 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया है। ऐसे में बैंक कंपनियों को अधिक कर्ज दे सकेंगे।
वर्ष 2020-21 में जी़डीपी वृद्धि नकारात्मक रह सकती है: आरबीआई गवर्नर
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को कहा कि कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते आर्थिक गतिविधियां बाधित होने से भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि वित्त वर्ष 2020-21 में नकारात्मक रहेगी।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है और मुद्रास्फीति के अनुमान बेहद अनिश्चित हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘दो महीनों के लॉकडाउन से घरेलू आर्थिक गतिविधि बुरी तरह प्रभावित हुई है।’’ साथ ही उन्होंने जोड़ा कि शीर्ष छह औद्योगिक राज्य, जिनका भारत के औद्योगिक उत्पादन में 60 प्रतिशत योगदान है, वे मोटेतौर पर लाल या नारंगी क्षेत्र में हैं।
उन्होंने कहा कि मांग में गिरावट के संकेत मिल रहे हैं और बिजली तथा पेट्रोलियम उत्पादों की मांग घटी है।
गवर्नर ने कहा कि सबसे अधिक झटका निजी खपत में लगा है, जिसकी घरेलू मांग में 60 फीसदी हिस्सेदारी है।
दास ने कहा कि मांग में कमी और आपूर्ति में व्यवधान के चलते चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होंगी।
उन्होंने कहा कि 2020-21 की दूसरी छमाही में आर्थिक गतिविधियों में कुछ सुधार की उम्मीद है।
उन्होंने कहा, ‘‘2020-21 में जीडीपी वृद्धि के नकारात्मक रहने का अनुमान है, हालांकि 2020-21 की दूसरी छमाही में कुछ तेजी आएगी।’’
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का संकल्प
20 से 22 मई 2020
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (22 मई 2020) अपनी बैठक में वर्तमान और उभरती समष्टिगत आर्थिक परिस्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया है कि:
चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत नीतिगत रेपो दर को 4.40 प्रतिशत से 40 आधार अंक कम करके तत्काल प्रभाव से 4.0 प्रतिशत कर दिया जाए;
तदनुसार, सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 4.65 प्रतिशत से घटकर 4.25 प्रतिशत हो गई; और
एलएएफ के तहत प्रतिवर्ती रेपो दर 3.75 प्रतिशत से घटकर 3.35 प्रतिशत हो गई ।
यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बनी रहे, एमपीसी ने विकास को पुनर्जीवित करने और अर्थव्यवस्था पर COVID -19 के प्रभाव को कम करने के लिए जब तक आवश्यक हो निभावकारी रुख बनाए रखने का निर्णय लिया।
ये निर्णय वृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति के 4 प्रतिशत के मध्यावधिक लक्ष्य को +/-2 प्रतिशत के दायरे में हासिल करने के उद्देश्य से भी है।
इस निर्णय के समर्थन में प्रमुख विवेचनों को नीचे दिए गए विवरण में वर्णित किया गया है।
आकलन
वैश्विक अर्थव्यवस्था
- मार्च 2020 में एमपीसी की बैठक के बाद से वैश्विक आर्थिक गतिविधि में COVID-19 संबंधित लॉकडाउन और सामाजिक अलगाव की वजह से ठहराव की स्थिति बनी हुई है। 2020 की पहली तिमाही में प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में यूएस, यूरो क्षेत्र, जापान और यूके में आर्थिक गतिविधि संकुचित हो गयी। उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के बीच चीनी अर्थव्यवस्था में स्पष्ट गिरावट देखी गई और उच्च आवृत्ति संकेतकों के आंकड़ों से ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे ईएमई में भी गतिविधि संकुचित हो जाने की संभावनाओं का संकेत मिलता है।
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वैश्विक वित्तीय बाजारों में मार्च में एक अशांत अवधि के बाद शांती छाई हुई है और अस्थिरता में कमी आ गयी क्योंकि तेज और बृहद राजकोषीय और मौद्रिक नीति प्रतिक्रियाओं से मनोभावों को शांत करने में मदद मिली। इक्विटी बाजारों में कुछ हानियों को पुनः वसूल कर लिया गया, जबकि सरकारी बॉन्ड प्रतिफल सीमाबद्ध रहें हालांकि देश-विशिष्ट कारकों के कारण कतिपय ईएमई में कुछ वृद्धि हुई। ईएमई में पोर्टफोलियो प्रवाह अप्रैल में पुनर्जीवित हो गए और उन्हें सुरक्षित पनाहगाह तक पहुंचने में आसानी हुई। अमेरिकी डॉलर कमजोर होने के साथ, प्रमुख ईएमई मुद्राएं, जो लगातार नीचे की ओर दबाव का अनुभव करती थीं, ने एक विकासोन्मुख दृषिकोण के साथ कारोबार किया। कच्चे तेल की कीमतों में मामूली वृद्धि हुई क्योंकि तेल उत्पादक देशों (ओपेक प्लस) ने उत्पादन में कटौती करने के लिए सहमति व्यक्त की और लॉकडाउन के आसन्न सहजता की उम्मीदों ने मांग में पुनरुद्धार की संभावनाओं में सुधार हुआ। सोने की कीमतें हेजिंग मांग के कारण बढ़ गई। मुख्य रूप से तेल की कीमतों में गिरावट और लॉकडाउन के बीच मांग में कमी के कारण सीपीआई मुद्रास्फीति मुख्य एई और ईएमई में मंद रही, जबकि आपूर्ति की गड़बड़ी के कारण खाद्य मुद्रास्फीति में तेजी आई।
घरेलू अर्थव्यवस्था
- पिछले दो महीनों में हुए लॉकडाउन से घरेलू आर्थिक गतिविधि बुरी तरह प्रभावित हुई है। उच्च आवृत्ति संकेतक मार्च 2020 से शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मांग में गिरावट की ओर संकेत करते हैं। बिजली की खपत कम हो गई है, जबकि निवेश की गतिविधि और निजी खपत दोनों में तेज गिरावट का सामना करना पड़ा, जैसा कि मार्च में पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में गिरावट और उपभोक्ता टिकाऊ और गैर-टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में बड़ी छंटनी के रूप में दिखाई दिया। यात्री और वाणिज्यिक वाहन बिक्री, घरेलू हवाई यात्री यातायात और विदेशी पर्यटकों के आगमन जैसे सेवा क्षेत्र की गतिविधि के उच्च आवृत्ति संकेतकों में भी मार्च में भारी संकुचन देखा गया। देश में चावल, दलहन और तिलहन की ग्रीष्म बुवाई से ही कृषि द्वारा एकमात्र उम्मीद की किरण देखी गयी, जिसमें खरीफ ऋतु के तहत बोए गए कुल क्षेत्रफल में 43.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई और रबी की फसल भरपूर होने का अंदाज रिकॉर्ड खरीद में परिलक्षित हो रहा है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति में जनवरी में बढ़ोत्तरी के बाद मार्च 2020 में लगातार दूसरे महीने 5.8 प्रतिशत तक सुधार हुआ। यह मुख्य रूप से दिसंबर 2019 – जनवरी 2020 में खाद्य मुद्रास्फीति के दोहरे अंक से कम हो जाने के कारण था। हालांकि, अप्रैल में आपूर्ति में व्यवधानों ने राहत दी और खाद्य मुद्रास्फीति में सौम्यता को पलट दिया, जो मार्च में 7.8 प्रतिशत से बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई। सब्जियां, अनाज, दूध, दाल और खाद्य तेलों और चीनी की कीमतें दबाव बिंदुओं के रूप में उभरीं1।
रिज़र्व बैंक अपने पारंपरिक और अपरंपरागत दोनों तरह के उपायों की श्रेणी का विस्तार करते हुए अग्र-सक्रिय चलनिधि प्रबंधन मोड में बना रहा,ताकि प्रणाली स्तरीय चलनिधि को बढ़ाया जा सके साथ ही वित्तपोषण की कमी का सामना करने वाले विशिष्ट क्षेत्रों को भी चलनिधि उपलब्ध करया जा सके। चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत औसत दैनिक निवल अवशोषण के साथ प्रणालीगत चलनिधि में बहुतायत बनी रही, जो अप्रैल में ₹4.75 लाख करोड़ से बढ़कर मई 2020 (20 मई तक) में ₹5.66 लाख करोड़ हो गई। 2020-21 (20 मई तक) के दौरान, खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) खरीद के माध्यम से ₹1,20,474 करोड़ और तीन लक्षित दीर्घावधि रेपो परिचालन (टीएलटीआरओ) नीलामी और एक टीएलटीआरओ 2.0 नीलामी के माध्यम से ₹87,891 करोड़ उपलब्ध करवाए गए। प्रतिफल वक्र में समान रूप से अधिक चलनिधि वितरित करने के लिए, रिज़र्व बैंक ने ‘ऑपरेशन ट्विस्ट’ नीलामी आयोजित की जिसमें एक साथ ही 27 अप्रैल 2020 को प्रत्येक के लिए ₹10,000 करोड़ की सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री और खरीद शामिल थे। इसके अलावा, रिज़र्व बैंक ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) और राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) के पुनर्वित्त के रूप में अब तक (21 मई 2020 तक) ₹22,334 करोड़ रुपये और तरलता की कमी को दूर करने तथा वित्तीय बाजारों को दबावरहित बनाने के लिए विशेष चलनिधि सुविधा (एसएलएफ) के माध्यम से म्यूचुअल फंड में ₹2,430 करोड़ उपलब्ध करवाए। 6 फरवरी 2020 के बाद रिजर्व बैंक ने ₹9.42 लाख करोड़ (जीडीपी का 4.6 प्रतिशत) की चलनिधि बढ़ाने के उपायों की घोषणा की है।
विभिन्न तरलता प्रबंधन उपायों को प्रतिबिम्बित करते हुए, घरेलू वित्तीय स्थितियों ने विभिन्न बाजार खंडों में तरलता प्रीमिया को कम करते हुए सराहनीय रूप से आसानी को प्रतिबिम्बित किया है। सरकारी प्रतिभूतियों, वाणिज्यिक पत्रों (सीपी), 91 दिन के ट्रेजरी बिल, जमा के प्रमाण पत्र (सीडी) और कॉर्पोरेट बांड पर प्रतिफल में नरमी आई है। वाणिज्यिक बैंकों के नए रुपये ऋणों पर भारित औसत ऋण दरों में अकेले मार्च 2020 में 43 बीपीएस की गिरावट आई । हालांकि क्रेडिट ग्रोथ मौन बनी हुई है, इस साल अब तक (8 मई तक) वाणिज्यिक पत्रों, बांड, डिबेंचर और कॉर्पोरेट निकायों के शेयरों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के निवेश में 66,757 करोड़ रुपये की तेजी से वृद्धि हुई, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान 8,822 करोड़ रुपये की गिरावट आई थी। मार्च में बड़े बहिर्गमन के विपरीत अप्रैल में म्यूचुअल फंड की विभिन्न योजनाओं में शुद्ध अंतर्प्रवाह भी दर्ज किये गये हैं ।
बाहरी क्षेत्र में, अप्रैल 2020 में भारत के वस्तु व्यापार में गिरावट आई, निर्यात और आयात में क्रमशः 60.3 प्रतिशत और 58.6 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की गिरावट आई। जबकि अप्रैल में आयात में सभी 30 कमोडिटी समूहों संकुचन हो गया, निर्यात में 30 समूहों में से 28 में संकुचन हुआ । अप्रैल 2020 में व्यापार घाटा क्रमिक रूप से और साल-दर-साल आधार पर – 47 महीनों में अपने निम्नतम स्तर तक – संकुचित हो गया। वित्तपोषण के पक्ष में , शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह मार्च 2020 में एक वर्ष पहले के 0.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढे। 2020-21 में अब तक (18 मई तक) इक्विटी में शुद्ध विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) एक साल पहले के 0.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। हालांकि, ऋण खंड में, एक साल पहले के 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बहिर्गमन की तुलना में इसी अवधि के दौरान 3.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पोर्टफोलियो बहिर्गमन हुआ।इसके विपरीत, स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग के तहत शुद्ध निवेश में इसी अवधि के दौरान 0.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2020-21 में अब तक 9.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (15 मई तक) बढ़कर- 12 महीने के आयात के बराबर 487.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
संभावनाएं
- मुद्रास्फीति का दृष्टिकोण अत्यधिक अनिश्चित है,क्योंकि आने वाले महीनों में लॉकडाउन में क्रमिक छूट के साथ आपूर्ति व्यवस्थाओं की बहाली के साथ, अप्रैल में खाद्य मुद्रास्फीति में असामान्य उछाल में नरमी आने की उम्मीद है । सामान्य मानसून का पूर्वानुमान खाद्य मुद्रास्फीति के लिए भी अच्छा पूर्वसूचक सिद्ध हो सकता है। वर्तमान वैश्विक मांग-आपूर्ति संतुलन को देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों के कम रहने की संभावना है, हालांकि वे हाल ही के दबावग्रस्त स्तर से मजबूत भी हो सकती हैं । धातुओं और अन्य औद्योगिक कच्चे माल की नरम वैश्विक कीमतों से घरेलू फर्मों के लिए इनपुट लागत कम रहने की संभावना है। मांग में कमी कोर मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन को छोड़कर) पर नीचे की ओर का दबाव डाल सकती है, हालांकि आपूर्ति अव्यवस्था का बने रहना निकट अवधि के दृष्टिकोण के लिए अनिश्चितता प्रदान करता है। हालांकि वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव का असर महंगाई पर पड़ सकता है। अनुकूल आधार प्रभावों के साथ संयुक्त होकर इन कारकों के प्रभावी होने से हेडलाईन मुद्रास्फीति को 2020-21 की तीसरी और चौथी तिमाही में लक्ष्य से नीचे लाने की उम्मीद है ।
विकास के दृष्टिकोण की ओर मुड़ते हुए, विस्तारित लॉकडाउन को देखते हुए 2020-21 की पहली तिमाही में कृषि के अलावा अन्य आर्थिक गतिविधियों के दबावग्रस्त रहने की संभावना है । हालांकि लॉकडाउन को कुछ प्रतिबंधों के साथ मई के अंत तक हटाया जा सकता है, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग उपायों और श्रम की अस्थायी कमी के कारण दूसरी तिमाही में भी आर्थिक गतिविधि नियंत्रित रह सकती है । आर्थिक गतिविधियों में तीसरी तिमाही में सुधार शुरू होने और चौथी तिमाही में उसके गति हासिल करने की उम्मीद है क्योंकि धीरे धीरे आपूर्ति व्यवस्थाओं में सामान्य स्थितियां बहाल हो जाती है और मांग धीरे-धीरे पुनर्जीवित होती है । एक पूरे वर्ष के रूप में अभी भी महामारी की अवधि और कब तक सोशल डिस्टेंसिंग उपायों के बने रहने की संभावना है उसके बारे में अनिश्चितता बढ़ रही है और फलस्वरूप घरेलू विकास के लिए नकारात्मक जोखिम महत्वपूर्ण बनी हुई है।दूसरी ओर, अगर महामारी को नियंत्रित किया जाता है और सोशल डिस्टेंसिंग उपायों को तेजी से चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाता है तो उपरी दिशा में संवेगों को फैलाया जा सकता है।
एमपीसी का मानना है कि महामारी का व्यापक आर्थिक प्रभाव शुरू में प्रत्याशित से अधिक गंभीर हो रहा है और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में तीव्र तनाव का सामना करना पड़ रहा हैं। आपूर्ति अवरोधों के साथ-साथ मांग के संकुचित हो जाने से आपत्ति का प्रभाव और बढ़ गया है । आर्थिक और वित्तीय गतिविधि की हानि से परे, आजीविका और स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा शुरू किए गए विभिन्न उपाय अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए काम कर रहे हैं, वित्तीय स्थितियों को और सुविधायुक्त बनाने की आवश्यकता है। इससे सस्ती दरों पर धन के प्रवाह में आसानी होगी और जीवन को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।मुद्रास्फीति संभावनाओं के सौम्य बने रहने के साथ चूंकि लॉकडाउन से संबंधित आपूर्ति अवरोधों में सुधार हो रहा है, विकास की चिंताओं को संबोधित करने के लिए नीति अवसरों के अभी इस्तेमाल किये जाने की जरूरत है बजाय इसके कि बाद में जब गतिविधि पुनर्जीवित हो जायेगी तब हेडरूम को बनाए रखने के लिए अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिए इनका प्रयोग किया जाएं।
यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बनी रहे, सभी सदस्यों ने नीतिगत रेपो दर में कमी और विकास को पुनर्जीवित करने और अर्थव्यवस्था पर COVID -19 के प्रभाव को कम करने के लिए जब तक आवश्यक हो निभावकारी रुख बनाए रखने के लिए वोट किया।
डॉ पामी दुआ, डॉ. रविन्द्र एच.ढोलाकिया, डॉ जनक राज, डॉ माइकल देबब्रत पात्र और श्री शक्तिकांत दास ने नीतिगत रेपो दर में 40 बीपीएस की कमी के लिए मतदान किया, जबकि डॉ चेतन घाटे ने 25 बीपीएस की कमी के लिए मतदान किया।
एमपीसी की बैठक के कार्यवृत्त 5 जून 2020 तक प्रकाशित किए जाएंगे।
(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक
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