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रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की, बैंको से मकान, वाहन और व्यक्तिगत ॠण सस्ते हुए attacknews.in

मुंबई, चार अप्रैल । आम चुनाव के लिये मतदान शुरू होने से एक सप्ताह पहले रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था को और गति देने के लिये अपनी मुख्य नीतिगत दर ‘रेपो’ में 0.25 प्रतिशत कटौती कर दी। गत दो माह में यह लगातार दूसरा मौका है जब रेपो दर कम की गई है। रेपो दर घटने से बैंकों की लागत कम होगी और इसके परिणामस्वरूप वह अपने ग्राहकों को वाहन, मकान और व्यक्तिगत जरूरतों के लिये सस्ती दर पर कर्ज उपलब्ध करा सकेंगे।

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने तीन दिन चली बैठक के अंत में बृहस्पतिवार को रेपो दर को तुरंत प्रभाव से 6.25 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया। इसके साथ ही बैंकों के लिये रिवर्स रेपो दर भी इसी अनुपात में घटकर 5.75 प्रतिशत रह गई। सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) अथवा बैंक दर भी 0.25 प्रतिशत घटकर 6.25 प्रतिशत रह गई।

रेपो दर वह दर होती है जिसपर वाणिज्यक बैंक अपनी फौरी जरूरतों के लिये रिजर्व बैंक से नकदी उठाते हैं जबकि रिवर्स रेपो दर पर रिजर्व बैंक बैंकिंग तंत्र से नकदी समेटता है। सीमांत स्थायी सुविधा के तहत बैंक अपनी एक-दो दिन की जरूरत के लिये मंजूरी प्राप्त सरकारी प्रतिभूतियों के एवज में रिजर्व बैंक से नकदी प्राप्त करते हैं। इसकी दर रेपो से ऊंची होती है।

मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से चार ने रेपो दर में कटौती का समर्थन किया जबकि रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य और सदस्य चेतन घाटे ने यथास्थिति बनाये रखने के पक्ष में अपना मत दिया। इसी प्रकार छह में से पांच सदस्यों ने मौद्रिक नीति का रुख तटस्थ बनाये रखने पर सहमति जताई जबकि एक सदस्य रविन्द्र ढोलकिया ने इसे नरम रखने के पख में अपनी राय दी।

अप्रैल से शुरू हुये नये वित्त वर्ष 2019- 20 की यह पहली मौद्रिक नीति समीक्षा है। इससे पहले फरवरी में हुई मौद्रिक नीति समीक्षा में भी रेपो दर में इतनी ही कटौती की गई थी। ठीक एक साल पहले अप्रैल 2018 में भी रेपो दर छह प्रतिशत पर थी। उसके बाद यह लगातार बढ़ती चली गई।

रिजर्व बैंक हर दो महीने में मौद्रिक नीति की समीक्षा करता है। यह समीक्षा आम चुनाव के लिये मतदान शुरू होने से एक सप्ताह पहले हुई है। लोकसभा चुनावों के लिये पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को होगा।

रिजर्व बैंक ने समीक्षा में कहा है कि घरेलू अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां बरकरार हैं। खासकर वैश्विक स्तर पर आर्थिक मोर्चे पर अनिश्चितता बनी हुई है। यही वजह है कि केन्द्रीय बैंक ने नये वित्त वर्ष 2019- 20 के लिये आर्थिक वृद्धि का अनुमान पहले के 7.4 प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया। इससे पहले पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि का आंकड़ा कम होकर 6.6 प्रतिशत पर पहुंच गया था। वर्ष 2018- 19 के लिये केन्द्रीय साख्यिकी कार्यालय ने अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में आर्थिक वृद्धि 7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।

मौद्रिक नीति की समीक्षा की घोषणा के बाद शेयर बाजार में असमंजस की स्थिति देखी गई। बैंकों के शेयरों में मिला जुला रुख रहा। आमतौर पर रेपो दर में कटौती से बैंक शेयरों में उछाल आता है लेकिन बृहस्पतिवार को शेयर बाजार की प्रतिक्रिया इसके उलट रही और बीएसई का संवेदी सूचकांक 192.40 घटकर 38,684.72 अंक रह गया। निफ्टी में भी गिरावट रही।

वाणिज्य एवं उद्योग मंडलों ने हालांकि, रेपो दर में कटौती का स्वागत किया और इसे आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने वाला बताया। उद्योगों ने हालांकि यह भी कहा कि मुद्रास्फीति के निम्न स्तर को देखते हुये उन्हें और ज्यादा कटौती की उम्मीद थी।

रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास ने समीक्षा की घोषणा करने के बाद संवाददाताओं को संबोधित करते हुये कहा कि जनवरी, फरवरी में निर्यात वृद्धि की रफ्तार धीमी रही है जबकि गैर-तेल और सोने का आयात भी घटा है।

समीक्षा में कहा गया है, ‘‘अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। इससे घरेलू वृद्धि को मजबूत बनाया जा सकेगा। एमपीसी ने इस बात पर गौर किया है कि उत्पादन का फासला नकारात्मक बना हुआ है और खासतौर से वैश्विक मोर्चे पर घरेलू अर्थव्यवस्था अड़चनों का सामना कर रही है।

एमपीसी ने रेपो दर में कटौती का फैसला करने से पहले मुद्रास्फीति पर भी गौर किया। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से सितंबर के बीच खुदरा मुद्रास्फीति के 2.9 से 3 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान लगाया है जबकि इससे पहले फरवरी की समीक्षा में इसके 3.2 से 3.4 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान लगाया गया था।

फरवरी 2019 में खुदर मुद्रास्फीति 2.57 प्रतिशत पर रही है और अगले साल जनवरी- मार्च अवधि में इसके 3.5 से 3.8 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान लगाया गया है। रिजर्व बैंक ने खुदरा मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के दायरे में दो प्रतिशत ऊपर, नीचे की सीमा में रखने का लक्ष्य रखा हुआ है। हालांकि, केन्द्रीय बैंक ने चेतावनी देते हुये कहा है कि यदि खाद्य पदार्थों और ईंधन के दाम अचानक बढ़ते हैं और राजकोषीय घाटा बढ़ता है तो मूल्यों पर दबाव बढ़ सकता है।

रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि वह अर्थतंत्र में नकदी की स्थिति को बेहतर बनाये रखने पर बराबर ध्यान रखेंगे और इसके लिये सभी उपलब्ध उपायों का इसतेमाल किया जायेगा। इसमें खुले बाजार में बॉंउ खरीदने से लेकर मुद्रा विनिमय उपायों का भी इस्तेमाल में लाया जायेगा।

मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 3- 6 जून को होगी।

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