मुंबई, छह अगस्त ।भारतीय रिवर्ज बैंक ने बृहस्पतिवार को आंशका जतायी कि कोविड-19 महामारी का संक्रमण लम्बे समय तक खिंचा तो उससे घरेलू अर्थव्यवस्था की हालत और पतली हो सकती है।
गौर तलब है कि इस महामारी और उससे निपटने के लिए लागू सार्वजनिक पाबंदियों से कारोबार पहले से ही बुरी तरह प्रभावित हुआ है और चालू वित्त वर्ष में बड़ा आर्थिक संकुचन होने का अनुमान है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की द्वैमासिक बैठक के निष्कर्षों की जानकारी देते हुए कहा कि महामारी पर पहले काबू पा लिया गया तो उसका अर्थव्यस्था पर ‘अनुकूल’ प्रभाव पड़ेगा।
मौद्रिक नीति समिति का अनुमान है कि ग्रामीण अर्थव्यस्था में सुधार मजबूत होगा क्यों कि खरीफ की बुवाई अच्छी चल रही है।
विनिर्माण क्षेत्र की इकाइयों को दूसरी तिमाही से मांग बढ़ने की उम्मीद है। उनको लगता है कि 2021-22 की पहली तिमाही तक मांग में धीरे धीरे सुधार होगा।
दास ने कहा कि जुलाई में उपभोक्ताओं का आत्मविश्वास रिजर्व बैंक के पिछले सर्वे के समय से और भी कमाजोर हुआ है।
समीक्षा में कहा गया है कि विदेशों से भी मांग अभी कमजोर बनी रहेगी। विश्व मंदी में है और विश्व-व्यापार घट रहा है।
दास ने कहा, ‘ चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में — अनुमान है कि वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) संकुचन के दौर में रहेगी। पूरे 2020-21 में वास्तविक जीडीपी के गिरने के आसार है।’ उन्होंने कहा कि कोविड19 जल्दी काबू में आ गया तो इससे आर्थिक संभावनाओं पर ‘अनुकूल’ प्रभाव हो सकता है। इसके ज्यादा लम्बा खिंचने, मानसून सामान्य रहने का अनुमान सही न निकलने और वैश्विक वित्तीय बाजार में उठापटक बढने की स्थिति में घरेलू अर्थव्यवस्था पर ‘बुरा प्रभाव’ पड़ सकता है।
दास ने कहा कि समिति का आकलन है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति 2020 की पहली छमाही में कमजोर बनी रही और इसमें छंटनी का रुझान रहा।
उन्होंने कहा कि जुलाई में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कोविड19 संक्रमण में नयी तेजी दिखी। इससे आर्थिक हालात में मई-जून में सुधार के प्रारंभिक संकेत बाद में धीमे पड़ गए।
महंगाई दर दूसरी तिमाही में ऊंची रह सकती है: आरबीआई
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बृहस्पतिवार को कहा कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में महंगाई की दर ऊंची रह सकती है, लेकिन वर्ष की दूसरी छमाही में यह नीचे आ जाएगी।
आरबीआई के गवर्नर दास ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के कारण घरेलू खाद्य महंगाई तेज बनी रहेगी।
आरबीआई के मौद्रिक नीति बयान 2020-21 में कहा गया है कि कोविड-19 के चलते आपूर्ति की राह में अड़चने बनी हुई हैं, जिससे खानपान और दूसरी वस्तुओं पर मुद्रास्फीति का दबाव है।
बयान में कहा गया है, ‘‘वित्तीय बाजारों में अस्थिरता और परिसंपत्तियों की बढ़ती कीमतें भी संभावनाओं के लिए जोखिम पैदा करती हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, प्रमुख मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में तेज बनी रह सकती है, लेकिन अनुकूल आधार प्रभाव के कारण दूसरी छमाही में इसमें नरमी हो सकती है।’’
रिजर्व बैंक की द्विमासिक नीतिगत समीक्षा में प्रमुख रेपो दर को चार प्रतिशत पर यथावत रखते हुए आरबीआई गवर्नर दास ने कहा कि रेपो के बारे में फैसला यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया है कि मुद्रास्फीति तय लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
दास ने हालांकि यह नहीं बताया कि मुद्रास्फीति किस दायरे में रहेगी।
आरबीआई ने मध्यम अवधि के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति या खुदरा महंगाई के चार प्रतिशत के करीब रहने का लक्ष्य तय किया है, जो दो प्रतिशत कम या अधिक हो सकती है।
छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की नीतिगत समीक्षा के अनुसार रबी की जोरदार पैदावार होने पर अनाज की कीमतें कम रह सकती हैं, खासकर अगर खुले बाजार में बिक्री और सार्वजनिक वितरण के तहत खरीद बढ़ जाती है तो ऐसा हो सकता है। हालांकि, खाद्य पदार्थों की महंगाई का जोखिम बना हुआ है।
आरबीआई प्रमुख ने भारत के कृषि क्षेत्र पर उम्मीद व्यक्त करते हुये कहा कि खरीफ की फसल अच्छी रहने से ग्रामीण क्षेत्र में मांग सुधरेगी।
दास ने आगे कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर भारी करों के कारण पंप पर इनकी कीमतों में बढ़ोतरी हुई है और इससे व्यापक आधार पर लागत बढ़ने का दबाव बनेगा।
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर भी आर्थिक कारोबार कमजोर है और पुनरूद्धार के शुरुआती संकेत, अब कोविड-19 महामारी के बढ़ने से कमजोर पड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में कारोबार में तेजी आने लगी थी, लेकिन कारोना संक्रमण के मामले बढ़ने से मजबूरन कई जगह लॉकडाउन लगाना पड़ा।
रिजर्व बैंक ने कंपनियों के लिये ऋण पुनर्गठन सुविधा की अनुमति दी:
रिजर्व बैंक ने आखिरकार उद्योग और बैंक के शीर्ष अधिकारियों की मांग पर ध्यान देते हुये कंपनियों के लिये कर्ज पुनर्गठन सुविधा की घोषणा कर दी।
रिजर्व बैंक के गवर्नर दास ने कहा है कि यह पुनर्गठन रिजर्व बैंक के 7 जून 2019 को जारी मितव्ययी रूपरेखा ढांचे के अनुरूप होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले सप्ताह कहा था कि सरकार कोविड- 19 से प्रभावित उद्योग की मदद के लिये कर्ज के पुनर्गठन की आवश्यकता को लेकर रिजर्व बैंक के साथ मिलकर काम कर रही है।
सीतारमण ने कहा था, ‘‘ध्यान पुनर्गठन पर है। इस मुद्दे पर वित्त मंत्रालय रिजर्व बैंक के साथ सक्रियता से काम कर रहा है। सैद्धांतिक तौर पर इस बात पर गौर किया गया है कि पुनर्गठन की आवश्यकता पड़ सकती है, इस बात ध्यान दिया गया है।’’
रिजर्व बैंक ने इससे पहले फरवरी में जीएसटी में पंजीकृत सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के मानक खातों में संपत्ति वर्गीकरण को नीचे किये बिना ही एकबारगी पुनर्गठन की सुविधा दी थी। यह सुविधा उन एमएसएमई को दी गई जो कि एक जनवरी 2020 को चूक में थे। यह कदम बजट घोषणा के अनुरूप उठाया गया था।
दास ने कहा कि दबाव झेल रहे एमएसएमई कर्जदारों के खाते यदि मानक खातों के तौर पर वर्गीकृत हैं तो वह भी रिण पुनर्गठन के पात्र होंगे।
रिजर्व बैंक ने सोने के आभूषण तथा अन्य जेवरातों के मामले में उनके कुल मूल्य के समक्ष कर्ज के अनुपात को भी मौजूदा 75 प्रतिशत से बढ़ाकर 90 प्रतिशत कर दिया। यह कदम घर- परिवारों के मामले में कोविड- 19 से उत्पन्न तंगी में राहत देने के लिये उठाया गया है।
दास ने यह भी बताया कि स्टार्टअप्स को अब बैंक कर्ज के मामले में प्राथमिक क्षेत्र का दर्जा दिया गया है। केन्द्रीय बैंक के इस कदम से बैंक अब ऐसी इकाइयों को कर्ज देने के लिये प्रोत्साहित होंगे।
रिजर्व बैंक गवर्नर ने हालांकि कर्ज की किस्तों के भुगतान पर लगी रोक को लेकर किसी प्रकार की कोई बात नहीं कही है। यह रोक 31 अगस्त को समाप्त हो रही है। लॉकडाउन के दौरान कर्जदारों को राहत देने के लिये रिजर्व बैंक ने मार्च में कर्ज किस्तों के भुगतान पर तीन माह के लिये रोक लगाने की घोषणा की थी जिसे बाद में आगे बढ़ाकर 31 अगस्त कर दिया गया। इस दौरान कर्जदारों को मूल और ब्याज सहित मासिक किस्तों के भुगतान से छूट का विकल्प उपलब्ध कराया गया।
हालांकि, बैंकों ने इस सुविधा को आगे बढ़ाने पर आपत्ति जताई है और उनका कहना है कि जो लोग भुगतान करने की स्थिति में हैं वो भी इसका बेजा लाभ उठा रहे हैं।