Home / क़ानून / राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में संविधान पीठ के समक्ष प्रस्तुत किये गये विवादित स्थल पर मंदिर होने के साक्ष्य और पक्ष रखा कि,नमाज अदा करने से वह जगह मस्जिद की नहीं हो जाती attacknews.in

राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में संविधान पीठ के समक्ष प्रस्तुत किये गये विवादित स्थल पर मंदिर होने के साक्ष्य और पक्ष रखा कि,नमाज अदा करने से वह जगह मस्जिद की नहीं हो जाती attacknews.in

नयी दिल्ली, 16 अगस्त । अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को सातवें दिन की सुनवाई के दौरान राम लला विराजमान की ओर से दलील दी गयी कि विवादित स्थल पर देवताओं की अनेक आकृतियां मिली हैं।



प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से ‘राम लला विराजमान’ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने अपनी दलीलों के समर्थन में विवादित स्थल का निरीक्षण करने के लिये अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नर की रिपोर्ट के अंश पढ़े। 

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

संविधान पीठ से वैद्यनाथन ने कहा कि अदालत के कमिश्नर ने 16 अप्रैल, 1950 को विवादित स्थल का निरीक्षण किया था और उन्होंने वहां भगवान शिव की आकृति वाले स्तंभों की उपस्थिति का वर्णन अपनी रिपोर्ट में किया था।

वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद के खंबों पर नहीं, बल्कि मंदिरों के स्तंभों पर ही देवी देवताओं की आकृतियां मिलती हैं। उन्होंने 1950 की निरीक्षण रिपोर्ट के साथ स्तंभों पर उकेरी गयी आकृतियों के वर्णन के साथ अयोध्या में मिला एक नक्शा भी पीठ को सौंपा।

उन्होने कहा कि इन तथ्यों से पता चलता है कि यह हिन्दुओं के लिये धार्मिक रूप से एक पवित्र स्थल था।

वैद्यनाथन ने ढांचे के भीतर देवाओं के तस्वीरों का एक एलबम भी पीठ को सौंपा और कहा कि मस्जिदों में इस तरह के चित्र नहीं होते हैं।


अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय में आज सातवें दिन सुनवाई में प्रमुख पक्षकार ‘रामलला विराजमान’ ने विवादित जमीन के नक्शे और फोटो दिखाते हुए कहा कि सिर्फ नमाज अदा करने से वह जगह मस्जिद की नहीं हो जाती।


रामलला विराजमान की ओर से अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने संविधान पीठ को विवादित जमीन के नक्शे और फोटो दिखाते हुए दलील दी कि खम्भों में श्रीकृष्ण, शिव तांडव और श्रीराम के बाल रूप की तस्वीर नजर आती है। 


श्री वैद्यनाथन ने दलील दी कि विवादित ढांचे और खुदाई के दौरान मिले पाषाण स्तंभ पर शिव तांडव, हनुमान और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां मिलीं। उन्होंने कहा कि पक्के निर्माण में जहां तीन गुम्बद बनाये गये थे, वहां बाल रूप में राम की मूर्ति थी। 


उन्होंने मुस्लिम पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड को इंगित करते हुए कहा,“ सिर्फ नमाज़ अदा करने से वह जगह आपकी नहीं हो सकती, जब तक वह आपकी संपत्ति न हो। नमाज सड़कों पर भी होती है इसका मतलब यह नहीं कि सड़क आपकी हो गई।”


श्री वैद्यनाथन ने भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि खुदाई में मिली सामग्रियों से यह पता चलता है कि यहां मंडप और आसपास के खंभे पाये गये थे। 


संविधान पीठ में शामिल न्यायाधीश एस ए बोबडे ने श्री वैद्यनाथन से पूछा कि क्या इन सामग्रियों की कार्बनडेटिंग करायी गयी थी? इस पर उन्होंने ‘हां’ में जवाब दिया और कहा कि उत्खनन से बरामद सभी सामग्रियों की कार्बन डेटिंग करायी गयी थी।


सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कार्बनडेटिंग परीक्षण केवल उन्हीं धातुओं पर किया जा सकता है, जिनमें कार्बन होते हैं, लेकिन ईंट और पत्थरों में कार्बन मौजूद नहीं होते, इसलिए उनकी कार्बनडेटिंग नहीं करायी जा सकती। उन्होंने कहा कि मूर्तियों की कार्बनडेटिंग नहीं की जा सकती। इस पर श्री वैद्यनाथन ने तुरंत कहा कि उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा कि मूर्तियों का कार्बन परीक्षण कराया गया गया था। इसके अलावा और भी सामग्रियां मिली हैं, जिनका परीक्षण कराया गया।


वैद्यनाथन के अनुसार, पुरातत्विक प्रमाणों से पता चलता है कि विवादित स्थल पर एक विशाल संरचना मौजूद थी जिस पर निर्माण दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के रूप में शुरू हुआ था और पूर्वानुभव यह दर्शाता है कि यह एक राम मंदिर था। इस स्थल पर कोई इस्लामिक कलाकृतियां नहीं मिलीं।


न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फिर रामलला के वकील से पूछा, “(विवादित स्थल पर) एक कब्र भी मिली है, इसकी क्या व्याख्या की जा सकती है।” इस पर उन्होंने उत्तर दिया कि कब्र बहुत बाद की है। उन्होंने खंभे और खंभों पर जानवरों और पक्षियों के चित्रों के बारे में भी पीठ को अवगत कराया।


न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि ये पशु पक्षी हैं और इन्हें धर्म से जोड़ने के लिए कुछ भी नहीं है। इस पर श्री वैद्यनाथन ने जवाब दिया कि ये पुरातत्वविदों द्वारा की गई व्याख्याएं हैं। अप्रैल 1950 में विवादित क्षेत्र का निरीक्षण हुआ तो कई पक्के साक्ष्य मिले। जिसमे नक्शे, मूर्तियां, रास्ते और इमारतें शामिल हैं। परिक्रमा मार्ग पर पक्का और कच्चा रास्ता बना था। आसपास साधुओं की कुटियाएं थी। पुरातत्व विभाग की जनवरी 1990 की जांच और रिपोर्ट में भी कई तस्वीरें और उनका साक्ष्य दर्ज है। 


अब इस मामले की सुनवाई सोमवार 19 अगस्त को जारी रहेगी। 

शीर्ष अदालत इस समय अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि के मालिकाना हक के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है।

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