नयी दिल्ली 08 अप्रैल । कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के केरल में वायनाड से चुनाव लड़ने के फैसले से कम्युनिस्ट खेमे में व्याप्त बेचैनी से दोनों दलों के बीच पूर्व में कई मौकों पर विरोधाभाष और संबंधों में आयी तल्खियों की स्पष्ट पुनरावृत्ति दिख रही है।
कांग्रेस-वामपंथी संंबंधों में यह तल्खियां 1959 के उस दौर की याद दिलाती है , जब तत्कालीन नेहरू सरकार ने विरोधाभाषों के चलते केरल की ईएमएस नंबूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर दिया था। ऐसा ही एक उदाहरण 2008 में उस समय सामने आया , जब अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर डॉ. मनमोहन सिंह की गठबंधन सरकार में शामिल वाम दलों ने सरकार सेसमर्थन वापस ले लिया था।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र तत्कालीन सांसद संजय गांधी की कम्युनिस्टों के प्रति नापसंदगी एक समय इतनी तीव्र हो गयी थी , जब वह केरल युवा कांग्रेस के नेता वायलार रवि और अन्य से यह कहने से भी नहीं चूके कि आप सभी कम्युनिस्टों की तरह व्यवहार कर रहे हैं।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मानना है कि श्री गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने से कांग्रेस और वाम दलों के बीच मतभेद की दरारें और बढ़ सकती हैं।
भाजपा नेताओं का कहना है कि श्री गांधी के इस कदम से उनकी पार्टी , विशेषकर केरल प्रदेश इकाई में जहां ‘आंतरिक कलह’ को व्यक्त करता है , वहीं यह स्थिति मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) में प्रकाश करात और सीताराम येचुरी गुटों के बीच बढ़ते शीत युद्ध की पुष्टि भी करता है।
भाजपा के एक नेता ने कहा, “ दिल्ली स्थित एक वामपंथी नेता ने बताया कि श्री गांधी ने केरल में एक गुट विशेष के दबाव में आकर वायनाड से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है । इसके अलावा उन्होंने (श्री गांधी) उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश में अपने प्रति हिन्दुओं की नाराजगी को भांपकर एक सुरक्षित और अल्पसंख्यक बहुल निर्वाचन क्षेत्र की मांग की है।”
कुछ समाजवादी नेताओं का भी कहना है कि वाम दल, विशेषकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 1960 के दशक में कांग्रेस के दोफाड़ होने के समय श्रीमती इंदिरा गांधी को सिंडिकेट के जरिए सत्ता हासिल करने में सहायता की थी , लेकिन बाद में वामदलों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया।
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