नई दिल्ली 13 अक्टूबर। कांग्रेस पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष पद की कमान संभालने से पहले हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा के चुनाव बड़ी चुनौती बनकर सामने आए हैं। यही वजह है कि अपने नए राजनीतिक अवतार में सुर्खियां बटोर रहे राहुल गांधी इस बार हिमाचल प्रदेश और गुजरात के पार्टी उम्मीदवारों के चयन में जीत की संभावना के पहलू को सबसे ज्यादा तवज्जो देने में जुट गए हैं। हिमाचल में नौ नवंबर को मतदान की घोषणा के बाद राहुल के साथ कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों पर जल्द उम्मीदवार तय करने का दबाव बढ़ गया है।
राहुल के सामने पंजाब के अपने रिकार्ड को दुहराने के साथ हिमाचल के चुनावी इतिहास को बदलने की दोहरी चुनौती है। इसीलिए सूत्रों की मानें, तो उम्मीदवारों के चयन में राहुल इस दफा जीत की संभावना के पहलू को सबसे ज्यादा तवज्जो देंगे।
गुजरात में दो दशक से सत्ता से बाहर कांग्रेस के लिए मौजूदा चुनाव सिर्फ सूबे में ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भी बेहद मायने रखता है। गुजरात चुनाव से पहले ही राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के प्रबल आसार हैं। गुजरात की सियासत में राहुल इस समय जिस अंदाज में जोर लगा रहे हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस और उनकी राजनीति के लिए गुजरात में कामयाब होना कितना अहम है।
खास बात यह है कि हिमाचल और गुजरात के चुनाव कांग्रेस ही नहीं, राहुल की भविष्य की राजनीति के लिए बेहद अहम है। मगर इन दोनों राज्यों में राहुल के सामने अलग-अलग चुनौतियां हैं। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और उसके सामने अपनी सत्ता बचाने की चुनौती है।
हिमाचल के पिछले सालों के राजनीतिक इतिहास में हर चुनाव में सत्ता बदलती रही है। इस राजनीतिक सच्चाई को देखते हुए कांग्रेस के लिए हिमाचल का चुनाव किसी संग्राम से कम नहीं। खासतौर से यह देखते हुए कि हिमाचल कांग्रेस में चुनाव के ऐलान से पहले तक मतभेद जगजाहिर थे। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू को हटाने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। मगर हाईकमान ने काफी मशक्कत के बाद दोनों को चुनाव में साथ मिलकर काम करने के लिए राजी किया।
हिमाचल में सत्ता बचाने के कांग्रेस के लक्ष्य में दूसरी बड़ी चुनौती वीरभद्र के बराबर कद का कोई दूसरा चेहरा नहीं होना है। इसीलिए वीरभद्र के खिलाफ सीबीआई से जुड़े मामलों के बावजूद राहुल गांधी ने इसी हफ्ते मंडी की जनसभा में उन्हें सातवीं पारी के लिए कांग्रेस का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया। उपाध्यक्ष के तौर पर पार्टी के संचालन की कमान पूरी तरह अपने हाथ में लेने के बाद वीरभद्र को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने का राहुल का यह तीसरा प्रयोग है।
इससे पूर्व पंजाब चुनाव में राहुल ने कैप्टन अमरिंदर को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने का एलान कुछ इसी तरह किया था। जबकि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले शीला दीक्षित को सीएम उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया गया मगर यह सिरे नहीं चढ़ा। क्योंकि सपा और कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधन में पार्टी ने शीला की उम्मीदवारी वापस ले ली थी।
अगले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा को चुनौती देने के लिए कांग्रेस की ही नहीं समूचे विपक्ष की नजर गुजरात पर लगी है। इस लिहाज से गुजरात का चुनाव राहुल के लिए महासंग्राम से कम नहीं है।
कांग्रेस दो दशक के सत्ता विरोधी मिजाज के साथ गुजरात में इस बार नरेंद्र मोदी के सीधे मैदान में नहीं होने की वजह से अपनी कामयाबी की संभावना देख रही है। कांग्रेस यह उम्मीद भी कर रही है कि जीडीपी की दर में गिरावट की वजह से देश में आए आर्थिक ठहराव के दौर का सियासी फायदा भी उसे मिलेगा।