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एफ-16 व एफ-18 लड़ाकू विमान

राफेल विमान की कीमतों को सार्वजनिक करने का निर्णय सुप्रीम कोर्ट करेगी attacknews.in

नयी दिल्ली, 14 नवंबर । उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राफेल लड़ाकू विमानों की कीमतों पर उसी स्थिति में चर्चा हो सकती है जब इस सौदे के तथ्यों को सार्वजनिक दायरे में आने दिया जाये।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने फ्रांस से 36 राफेल विमान खरीदने के सौदे की न्यायालय की निगरानी में जांच के लिये दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

पीठ ने कहा कि वह वायु सेना की जरूरतों से संबंधित मसले पर सुनवाई कर रही है और वह इस संबंध में रक्षा मंत्रालय के किसी अधिकारी की जगह वायु सेना के अधिकारी को सुनना चाहती है।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, ‘‘हमें यह निर्णय लेना होगा कि क्या कीमतों के तथ्यों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए या नहीं।’’

पीठ ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि तथ्यों को सार्वजनिक किये बगैर इसकी कीमतों पर किसी भी तरह की बहस का सवाल नहीं है।

हालांकि, पीठ ने अटार्नी जनरल को स्पष्ट किया कि यदि वह महसूस करेगी कि ये तथ्य सार्वजनिक होने चाहिए, तभी इनकी कीमतों पर बहस के बारे में विचार किया जायेगा।

केन्द्र की ओर से जब अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने बहस शुरू की तो पीठ ने 36 राफेल विमानों की खरीद के मामले में भारतीय वायु सेना के किसी अधिकारी से भी सहयोग का आग्रह किया।

पीठ ने कहा, ‘‘हम वायु सेना की जरूरतों पर विचार कर रहे हैं और हम राफेल विमान के बारे में वायु सेना के किसी अधिकारी से जानना चाहेंगे। हम इस मुद्दे पर रक्षा मंत्रालय के अधिकारी को नहीं बल्कि वायु सेना के अधिकारी को सुनना चाहते हैं।’’

इस मामले में भोजनावकाश के बाद बहस शुरू होने पर वायुसेना के उपप्रमुख एअर मार्शल वी आर चौधरी और दो अन्य अधिकारी न्यायालय की मदद के लिये पीठ के समक्ष पेश हुये।

अटार्नी जनरल ने बहस के दौरान राफेल विमानों की कीमतों से संबंधित गोपनीयता के प्रावधान का बचाव किया और कहा, ‘‘यदि कीमतों के बारे में सारी जानकारी सार्वजनिक कर दी गयी तो हमारे शत्रु इसका लाभ ले सकते हैं।

विमानों की कीमतों के विवरण का खुलासा करने से इंकार करते हुये वेणुगोपाल ने कहा कि कीमतों के मुद्दे पर वह न्यायालय की और अधिक मदद नहीं कर सकेंगे।

अटार्नी जनरल ने कहा, ‘‘मैंने खुद भी इसका अवलोकन नहीं करने का निर्णय किया क्योंकि इसके लीक होने की स्थिति में मेरा कार्यालय इसके लिये जिम्मेदार होगा।’’ उन्होंने कहा कि यह विषय विशेषज्ञों के लिये है और, ‘‘हम लगातार कह रहे हैं कि इन विमानों की पूरी कीमत के बारे में संसद को भी नहीं बताया गया है।’’

उन्होंने कहा कि नवंबर, 2016 की विनिमय दर के आधार पर सिर्फ लड़ाकू विमान की कीमत 670 करोड़ थी।

भारत ने अपनी वायु सेना को सुसज्जित करने की प्रक्रिया में उड़ान भरने के लिये तैयार अवस्था वाले 36 राफेल लड़ाकू विमान फ्रांस से खरीदने का समझौता किया था। इस सौदे की अनुमानित लागत 58,000 करोड़ रुपये है।

वेणुगोपाल ने कहा कि पहले इन विमानों को जरूरी हथियार प्रणाली से लैस नहीं किया जाना था और सरकार की आपत्ति इस तथ्य को लेकर ही है कि यह दो सरकारों के बीच समझौता है और वह गोपनीयता के प्रावधान का उल्लंघन नहीं करना चाहती।

सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण का विरोध किया जो राफेल सौदे की गोपनीयता के बारे में सूचना पेश करना चाहते थे।
भूषण ने जब गोपनीयता के प्रावधान का मुद्दा उठाया तो वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘गोपनीय समझौता गोपनीय ही रखना होगा और अब वह न्यायालय में इसे पेश कर रहे हैं।’’

भूषण, जो अपनी और भाजपा के दो नेताओं पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी की ओर से पेश हुये, ने आरोप लगाया कि सरकार गोपनीयता के प्रावधान की आड़ लेकर राफेल विमानों की कीमतों का खुलासा नहीं कर रही है।

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने भूषण से कहा, ‘‘हम आपको पूरी तरह सुन रहे हैं। इस अवसर का सावधानीपूर्वक इस्तेमाल कीजिये और सिर्फ वही बातें पेश कीजिये जो जरूरी हैं।’’

पीठ द्वारा इन विमानों की कीमतों के बारे में सीलबंद लिफाफे में सौंपी गयी जानकारी का भी अवलोकन किये जाने की संभावना है। सरकार ने सोमवार को यह जानकारी न्यायालय को दी थी।

सुनवाई के दौरान भूषण ने कहा कि एक विमान की कीमत 155 मिलियन यूरो थी और अब यह 270 मिलियन यूरो हो गयी है। इससे पता चलता है कि इनकी कीमत में 40 फीसदी की वृद्धि हुयी है।

उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में केन्द्रीय जांच ब्यूरो इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के लिये बाध्य है।

भूषण ने फ्रांस की कंपनी दसाल्ट के साथ साजिश करने का भी आरोप लगाया जिसने आफसेट अधिकार रिलायंस को दिये हैं। उन्होंने कहा कि यह भ्रष्टाचार के समान है और यह अपने आप में एक अपराध है। उन्होंने कहा कि रिलायंस के पास आफसेट करार को क्रियान्वित करने की दक्षता नहीं है।

उन्होंने कहा कि जांच ब्यूरो द्वारा इस मामले में भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज नहीं किये जाने के बाद ही यह याचिका दायर की गयी है। उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच की आवश्यकता है और कोई यह कैसे कह सकता है कि न्यायालय की निगरानी में जांच की जरूरत नहीं है।

भूषण ने रिलायंस को आफसेट करार देने में आपराधिक मंशा पर जोर देते हुये फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और दसाल्ट के दूसरे अधिकारियों के कथन को उद्धृत किया। उन्होंने कहा कि प्राथमिकी तो कानूनी आवश्यकता है और न्यायालय को इसे दर्ज करने का आदेश देना चाहिए।

भूषण ने कहा कि राजग सरकार ने इन विमानों को खरीदने की प्रक्रिया के तहत निविदा आमंत्रित करने की प्रक्रिया से बचने के लिये अंतर-सरकार समझौते का रास्ता अपनाया।

उन्होंने कहा कि इस सौदे के संबंध में फ्रांस सरकार की ओर से कोई शासकीय गारंटी नहीं है। उन्होंने कहा कि शुरू में केन्द्रीय कानून मंत्रालय ने इस मुद्दे पर आपत्ति की थी परंतु बाद में वह अंतर-सरकार समझौते के प्रस्ताव पर सहमत हो गया।

प्रशांत भूषण अपनी तथा भाजपा के दो नेताओं एवं पूर्व मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी की ओर से बहस कर रहे थे।

भूषण ने रक्षा खरीद प्रक्रिया का जिक्र करते हुये कहा कि भारतीय वायु सेना को 126 लड़ाकू विमानों की आवश्यकता थी और उसने इनके लिये रक्षा खरीद परिषद को सूचित किया था। शुरू में छह विदेशी कंपनियों ने आवेदन किया था परंतु शुरूआती प्रक्रिया के दौरान दो कंपनियों को ही अंतिम सूची में शामिल किया गया।

उन्होंने कहा कि यह सौदा बाद में फ्रांस की दसाल्ट कंपनी को मिला और सरकार के स्वामित्व वाला हिन्दुस्तान ऐरोनाटिक्स लि इसका हिस्सेदार था। परंतु अचानक ही एक बयान जारी हुआ जिसमें कहा गया कि तकनीक का कोई हस्तांतरण नहीं होगा और सिर्फ 36 विमान ही खरीदे जायेंगे।

भूषण ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा इस सौदे में किये गये कथित बदलाव के बारे में कोई नहीं जानता। यहां तक कि रक्षा मंत्री को भी इस बदलाव की जानकारी नहीं थी।

इस मामले में याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और अधिवक्ता विनीत ढांडा तथा आप पार्टी के सांसद संजय सिंह के वकील ने भी भूषण से पहले बहस की।

रिलायंस ने पहले बयानों में कहा था कि भारत सरकार, फ्रांस सरकार, दसाल्ट और रिलायंस ने कई मौकों पर स्पष्ट किया है कि रिलायंस के साथ 30,000 करोड़ रूपए का कोई आफसेट करार नहीं है जैसा कि कांग्रेस आरोप लगा रही है।

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