नयी दिल्ली, 14 दिसंबर। उच्चतम न्यायालय ने राफेल सौदा मामले पर अपने फैसले में शुक्रवार को केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दी। साथ ही कहा कि देश के लिए लड़ाकू विमान जरूरी हैं और उसके बगैर काम नहीं चलेगा।
राफेल सौदा और उससे जुड़ा घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा……
30 दिसंबर, 2002 : खरीदी प्रक्रिया को दुरुस्त करने के लिए रक्षा खरीदी प्रक्रिया (डीपीपी) अपनाई गई।
28 अगस्त, 2007 : रक्षा मंत्रालय ने 126 एमएमआरसीए लड़ाकू विमान खरीदने के लिए प्रस्ताव अनुरोध जारी किया।
चार सितंबर, 2008 : मुकेश अंबानी नीत रिलायंस समूह ने रिलायंस एरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (आरएटीएल) का गठन किया।
मई 2011 : भारतीय वायुसेना ने राफेल और यूरो लड़ाकू विमानों को शॉर्टलिस्ट किया।
30 जनवरी, 2012 : दसाल्ट एविएशंस के राफेल विमानों ने सबसे कम मूल्य का निविदा पेश किया।
13 मार्च, 2014 : हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड और दसाल्ट एविएशन के बीच 108 विमानों को बनाने को लेकर समझौता हुआ। इसके तहत दोनों कंपनियां क्रमश: 70 प्रतिशत और 30 प्रतिशत काम के लिए जिम्मेदार होंगी।
आठ अगस्त, 2014 : तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने संसद को बताया कि समझौते पर हस्ताक्षर होने के 3-4 साल के भीतर प्रयोग के लिए पूरी तरह से तैयार 18 विमान प्राप्त हो जाएंगे। बाकि के 108 विमान अगले सात साल में मिलने की संभावना है।
आठ अप्रैल, 2015 : तत्कालीन विदेश सचिव ने कहा कि दसाल्ट, रक्षा मंत्रालय और एचएएल के बीच विस्तृत बातचीत चल रही है।
10 अप्रेल, 2015 : फ्रांस ने प्रयोग के लिए पूरी तरह से तैयार 36 विमानों के नए सौदे की घोषणा की।
26 जनवरी, 2016 : भारत और फ्रांस ने 36 लड़ाकू विमानों के लिए सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर किया।
23 सितंबर, 2016 : भारत-फ्रांस की सरकारों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर।
18 नवंबर, 2016 : सरकार ने संसद को बताया कि प्रत्येक राफेल विमान की कीमत करीब 670 करोड़ रुपये होगी और सभी विमान अप्रैल 2022 तक प्राप्त हो जाएंगे।
31 दिसंबर, 2016 : दसाल्ट एविएशन की वार्षिक रिपोर्ट से पता चला कि 36 राफेल विमानों की वास्तविक कीमत करीब 60,000 करोड़ रुपये है। यह सरकार द्वारा संसद में बताई गई कीमत से दोगुने से ज्यादा है।
13 मार्च, 2018 : फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदी संबंधी केन्द्र के फैसले की स्वतंत्र जांच और संसद के समक्ष सौदे की कीमत का खुलासा करने का अनुरोध करते हुए एक जनहित याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर।
पांच सितंबर, 2018 : राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए न्यायालय ने हामी भरी।
18 सितंबर, 2018 : न्यायालय ने मामले की सुनवाई 10 अक्टूबर तक स्थगित की।
आठ अक्टूबर, 2018 : न्यायालय ने 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के समझौते से जुड़ी जानकारियां ‘सीलबंद लिफाफे’ में मुहैया कराने का निर्देश केन्द्र को देने संबंधी नयी जनहित याचिका पर भी 10 अक्टूबर को सुनवाई करने की बात कही।
10 अक्टूबर, 2018 : न्यायालय ने केन्द्र से कहा कि वह राफेल सौदे पर निर्णय लेने की प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी सीलबंद लिफाफे में मुहैया कराए।
24 अक्टूबर, 2018 : पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण भी न्यायालय पहुंचे, राफेल लड़ाकू विमान सौदा मामले में प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की।
31 अक्टूबर, 2018 : न्यायालय ने केन्द्र से कहा कि वह 36 राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत से जुड़ी जानकारी उसे सीलबंद लिफाफे में सौंपे।
12 नवंबर, 2018 : केन्द्र ने 36 राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत से जुड़ी जानकारी सीलबंद लिफाफे में न्यायालय को सौंपी। उसने राफेल सौदे की प्रक्रिया संबंधी जानकारी भी सौंपी।
14 नवंबर, 2018 : न्यायालय ने राफेल सौदे की जांच अदालत की निगरानी में कराने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी की।
14 दिसंबर, 2018 : राफेल सौदा पर न्यायालय ने केन्द्र को क्लीन चिट दी।
उच्चतम न्यायालय ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदी के मामले में नरेन्द्र मोदी सरकार को शुक्रवार को क्लीन चिट देते हुए सौदे में कथित अनियमितताओं के लिए सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली सभी याचिकाओं को खारिज किया।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि अरबों डॉलर कीमत के राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है।
ऑफसेट साझेदार के मामले पर तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि किसी भी निजी फर्म को व्यावसायिक लाभ पहुंचाने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि लड़ाकू विमानों की जरूरत है और देश इन विमानों के बगैर नहीं रह सकता है।
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