गुरदासपुर, 24 मार्च । कभी कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट समझी जाने वाली पंजाब की गुरदासपुर में फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना का ऐसा जादू चला था कि उन्होंने न केवल कांग्रेस का गढ़ ढहा दिया बल्कि चार बार यहां से भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलायी।
पाकिस्तान सीमा से लगी इस सीट पर 1957 से 1996 तक कांग्रेस का दबदबा रहा । केवल 1977 में आपातकाल के कारण कांग्रेस विरोधी लहर में जनता पार्टी के यज्ञदत्त शर्मा यहां से लोकसभा चुनाव जीते थे । वर्ष 1998 के चुनाव में भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरे अभिनेता विनोद खन्ना ने कांग्रेस की दिग्गज नेता और पांच बार सांसद रहीं सुखबंस कौर भिंडर को पराजित कर कांग्रेस से यह सीट छीनी ।
यह वो समय था जब आमतौर पर फिल्मी हस्तियों को राजनीति में गंभीरता से नहीं लिया जाता था । ऐसे समय में श्री खन्ना राजनीति में अपने को स्थापित करने में कामयाब रहे।श्री खन्ना ने 1999 और 2004 में भी यहां से जीत दर्ज की। उन्हें 2009 के लोकसभा चुनाव में स्थानीय नेता एवं पूर्व मंत्री कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा के हाथों हार का सामना करना पड़ा लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में विनोद खन्ना ने श्री बाजवा को पटखनी देकर यह सीट फिर भाजपा की झोली में डाल दी । वर्ष 2017 में श्री खन्ना का कैंसर से निधन हो गया ,जिससे इस सीट पर हुये उपचुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अपनी परंपरागत सीट भाजपा से छीनी ।
दिलचस्प बात है कि इस सीट पर केवल दो बार स्थानीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की ,बाकी सभी चुनावों में कांग्रेस या भाजपा को बाहरी उम्मीदवार पर दांव खेलना पड़ा । कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ भी बाहरी उम्मीदवार हैं तथा उन्हाेंने भाजपा के बाहरी उम्मीदवार कारोबारी स्वर्ण सलारिया को उपचुनाव में हराया ।
इस बार भी कांग्रेस अपनी सीट को बरकरार रखने के लिये पूरा जोर लगायेगी । वह श्री जाखड़ पर इस बार भी दांव लगाने की तैयारी में है । पंजाब में चुनाव अंतिम चरण में होने के कारण कांग्रेेस को प्रचार के लिये खूब समय मिल रहा है । भाजपा को इस सीट पर उम्मीदवार की तलाश है । श्री खन्ना की पत्नी कविता खन्ना ,उनके पुत्र अभिनेता अक्षय खन्ना सहित कई सेलेब्रिटी के नाम की चर्चा है ।
इस क्षेत्र में नौ विधानसभा क्षेत्र पठानकोट ,बटाला और गुरदासपुर सुजानपुर ,डेरा बाबा नानक , भोआ , फतेहगढ़ चूडियां ,दीनानगर ,कादियां पड़तें हैं । इनमें से सुजानपुर सीट भाजपा तथा बटाला भाजपा की सहयोगी अकाली दल के पास है और शेष सात विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं ।
सीमा से लगी इस सीट पर समस्याओं का अंबार हैं। सड़कें ,बेरोजगारी , शिक्षा ,स्वास्थ्य से लेकर बुनियादी सुविधायें नदारद हैं । रावी नदी के पार के कुछ गांव ऐसे हैं जिनका बरसात के दिनों में शेष राज्य से संपर्क टूट जाता है । लोगों को हर काम के लिये नाव से नदी पार करके जाना पड़ता है । बरसात के दिनों में अस्थायी पंटून पुल से काम चलाना होता है तथा कई बार बाढ़ के समय यह पुल बह जाता है तो लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ता हैं। इस क्षेत्र में इंडस्ट्री लगभग बंद हो चुकी है।
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