नईदिल्ली 28 मई। “पब्लिक स्कूलों पर हम जबर्दस्ती नहीं कर सकते हैं. ये स्वार्थ और कमीशन के चलते प्राइवेट पब्लिशर्स की तीन से चार गुना महंगी किताबें पढ़ा रहे हैं। एनसीईआरटी की जो किताब 50 रुपये में बिकती है वो ही किताब प्राइवेट पब्लिशर्स 400 से 500 रुपये में बेच रहे हैं.”
ये कहना है मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह का।
बातचीत में उन्होंने बताया कि कहने के बाद भी पब्लिक स्कूल संचालक एनसीईआरटी से किताबें नहीं खरीद रहे हैं.एनसीईआरटी ने इस साल सिर्फ 6 करोड़ किताबें ही छापी हैं. जबकि सीबीएसई से मान्यता प्राप्त देशभर के करीब 20 हजार स्कूलों में 2 करोड़ से अधिक बच्चे पढ़ते हैं. ऐसे में सभी बच्चों को किताबें कैसे मिलेंगी. इस सवाल के जवाब में मंत्री डॉ. सत्यपाल का कहना है, ‘हमारी सरकार आने से पहले एनसीईआरटी 1.5 से 2 करोड़ किताबें ही छापती थी. लेकिन अब 6 करोड़ छपी हैं. हमारे पास स्कूलों से जितनी डिमांड आई उतनी ही किताबें छापी गईं. अब हम किताबों का स्टॉक करके तो रख नहीं सकते.’
एचआरडी मंत्रालय ने खुद सीबीएसई को पत्र जारी कर कहा था कि हर स्कूल में एनसीआरटी की ही किताबें पढ़ाई जाएं तो फिर ऐसा क्यों नहीं हो रहा है? इस सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा, ‘ इसकी वजह साफ है कि एनसीईआरटी की किताब 50 रुपये की है और प्राइवेट पब्लिशर्स की किताब 500 रुपये की है. कमीशनखोरी के चलते ये सब किया जा रहा है. इसमे स्कूल के टीचर, प्रिंसिपल और स्कूल प्रबंधन सभी शामिल हैं.’
राज्य सरकार की जिम्मेदारी हैं पब्लिक स्कूल
जब मंत्री सत्यपाल सिंह से पूछा गया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आदेश के बाद भी पब्लिक स्कूल में एनसीईआरटी की किताब नहीं पढ़ा रहे हैं तो मंत्री का कहना था कि पब्लिक स्कूल हमारे अंडर नहीं आते हैं. ये राज्य सरकार का मामला है. जबकि सीबीएसई केन्द्रीय बोर्ड है।
मंत्री ने अपनी ही सरकार को बताया अक्षम
जब मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह से ये पूछा गया कि क्या एनसीईआरटी 20 हजार स्कूलों की किताबें छापने में सक्षम है तो उनका कहना था कि ‘इस देश की और खासतौर से केन्द्र सरकार की अक्षमता बहुत बड़ी है. उसकी अक्षमता को आंका नहीं जा सकता है।attacknews.in