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नरेन्द्र मोदी की मन की बात:स्टार्ट-अप एवं नए उद्यमियों से खिलौना उद्योग से बड़े पैमाने पर जुड़ने का आह्वान, कोरोना संकट के बावजूद खरीफ की फसल की बुवाई सात फीसद ज्यादा,शिक्षकों ने चुनौती को अवसर में बदला attacknews.in

नयी दिल्ली, 30 अगस्त । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थानीय खिलौनों की समृद्ध भारतीय परंपरा की विस्तृत चर्चा करते हुए रविवार को स्टार्ट-अप एवं नए उद्यमियों से खिलौना उद्योग से बड़े पैमाने पर जुड़ने का आह्वान किया और कहा कि अब स्थानीय खिलौनों के लिए आवाज बुलंद करने का वक्त आ गया है।

आकाशवाणी पर मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 68वीं कड़ी में प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्व खिलौना उद्योग सात लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का है लेकिन इसमें भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है।

उन्होंने कहा, ‘‘देश में स्थानीय खिलौनों की बहुत समृद्ध परंपरा रही है। कई प्रतिभाशाली और कुशल कारीगर हैं जो अच्छे खिलौने बनाने में महारत रखते हैं। लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि विश्व खिलौना उद्योग सात लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का है, सात लाख करोड़ रुपयों का इतना बड़ा कारोबार, लेकिन भारत का हिस्सा उसमें बहुत कम है।’’

खिलौनों की विरासत, परंपरा और विविधता की याद दिलाते हुए मोदी ने कहा कि इतनी बड़ी युवा आबादी होने के बावजूद खिलौनों के बाजार में भारत की हिस्सेदारी इतनी कम होना अच्छा नहीं लगता।

उन्होंने कहा कि खिलौना उद्योग बहुत व्यापक है। गृह उद्योग हो, छोटे और लघु उद्योग हों, बड़े उद्योग या निजी उद्यमी, सभी इसके दायरे में आते हैं। इसे आगे बढ़ाने के लिए देश को मिलकर मेहनत करनी होगी।

प्रधानमंत्री ने स्टार्ट-अप और नए उद्यमियों से खिलौना बनाने का आह्वान करते हुए कहा, ‘‘अब सभी के लिए लोकल खिलौनों के लिए वोकल होने का समय है। आइए, हम अपने युवाओं के लिए कुछ नए प्रकार के, अच्छी गुणवत्ता वाले खिलौने बनाते हैं। खिलौना वो हो जिसकी मौजूदगी में बचपन खिले भी, खिलखिलाए भी। हम ऐसे खिलौने बनाएं, जो पर्यावरण के भी अनुकूल हों।’’

आन्ध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम निवासी सी.वी. राजू की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि बेहतरीन गुणवत्ता के खिलौने बनाकर उन्होंने स्थानीय खिलौनों की खोई हुई गरिमा को वापस ला दिया है।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘खिलौनों के साथ हम दो चीजें कर सकते हैं। अपने गौरवशाली अतीत को अपने जीवन में फिर से उतार सकते हैं और अपने स्वर्णिम भविष्य को भी संवार सकते हैं।’’

उन्होंने कहा कि बच्चों के जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर खिलौनों के प्रभाव का नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी बहुत ध्यान दिया गया है और खेल-खेल में सीखना, खिलौने बनाना सीखना, खिलौने जहां बनते हैं, वहां का दौरा करना, इन सबको पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है।

प्रधानमंत्री ने इस दौरान अपने ही अंदाज में बच्चों के माता-पिता से यह कहते हुए क्षमा मांगी कि हो सकता है उन्हें अब बच्चों से नए-नए खिलौनों की मांग सुनने का एक नया काम सामने आ जाएगा।

कोरोना संकट के बावजूद खरीफ की फसल की बुवाई पिछले साल के मुकाबले सात फीसद ज्यादा: मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरोना जैसी महामारी से पैदा हुई असाधारण परिस्थितियों के बावजूद देश में खरीफ की फसल की बुवाई पिछले साल के मुकाबले सात फीसद ज्यादा हुई है।

मोदी ने किसानों को नमन करते हुए कहा कि उनकी शक्ति से ही जीवन और समाज चलता है।

मोदी ने कहा, ‘‘हमारे किसानों ने कोरोना की इस कठिन परिस्थिति में भी अपनी ताकत को साबित किया है। हमारे देश में इस बार खरीफ की फसल की बुवाई पिछले साल के मुकाबले सात प्रतिशत ज्यादा हुई है।’’

उन्होंने कहा कि धान की रोपाई इस बार लगभग 10 प्रतिशत, दालें लगभग पांच प्रतिशत, मोटे अनाज लगभग तीन प्रतिशत, तिलहन लगभग 13 प्रतिशत और कपास की लगभग तीन प्रतिशत ज्यादा बुवाई की गई है।

मोदी ने कहा, ‘‘मैं, इसके लिए देश के किसानों को बधाई देता हूं। उनके परिश्रम को नमन करता हूं।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि आम तौर पर यह समय उत्सव का होता है और जगह-जगह मेले लगते हैं तथा धार्मिक पूजा-पाठ होते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘कोरोना के इस संकट काल में लोगों में उमंग तो है, उत्साह भी है, हम सबके मन को छू जाए वैसा अनुशासन भी है। नागरिकों में दायित्व का एहसास भी है। लोग अपना ध्यान रखते हुए, दूसरों का ध्यान रखते हुए, अपने रोजमर्रा के काम भी कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि संकट काल में देश में हो रहे हर आयोजन में जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखी जा रही है, वो अभूतपूर्व है। गणेशोत्सव भी कहीं ऑनलाइन मनाया जा रहा है, तो, ज्यादातर जगहों पर इस बार पर्यावरण अनुकूल गणेश प्रतिमा स्थापित की गई है।

पर्व और पर्यावरण के बीच के गहरे नाते की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने प्रकृति की रक्षा के लिए बिहार के पश्चिमी चंपारण में थारु आदिवासी समाज द्वारा मानए जाने वाले बरना त्योहार का जिक्र किया और कहा कि प्रकृति की रक्षा के लिए बरना को थारु समाज ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और सदियों से बनाया है।

मोदी ने केरल के प्रसिद्ध ओणम त्योहार पर लोगों को बधाई देते हुए कहा कि ओणम की धूम तो आज, दूर-सुदूर विदेशों तक पहुंच गई है। अमेरिका हो, यूरोप हो, या खाड़ी देश हों, ओणम का उल्लास हर कहीं मिल जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘ओणम एक अंतरराष्ट्रीय पर्व बनता जा रहा है।’’

शिक्षकों ने कोरोना के संकट काल की चुनौती को अवसर में बदला: मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरोना के संकट काल में एक बड़ी चुनौती पढ़ाई की थी कि यह जारी कैसे रहेगी लेकिन हमारे देश के शिक्षकों ने इस चुनौती को अवसर में बदलते हुए न सिर्फ पढ़ाई में तकनीक का उपयोग करना सीखा बल्कि अपने छात्रों को भी इसकी शिक्षा दी।

श्री मोदी ने कहा ,“कुछ दिनों बाद पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जायेगा। हम सब जब अपने जीवन की सफलताओं को अपनी जीवन यात्रा को देखते है तो हमें अपने किसी न किसी शिक्षक की याद अवश्य आती है। तेज़ी से बदलते हुए समय और कोरोना के संकट काल में हमारे शिक्षकों के सामने भी समय के साथ बदलाव की चुनौती आयी । मुझे ख़ुशी है कि हमारे शिक्षकों ने इस चुनौती को न केवल स्वीकार किया बल्कि उसे अवसर में बदल भी दिया है। पढ़ाई में तकनीक का ज्यादा से ज्यादा उपयोग कैसे हो, नए तरीकों को कैसे अपनाएँ, छात्रों की मदद कैसे करें यह हमारे शिक्षकों ने सहजता से अपनाया है और अपने छात्रों को भी सिखाया है। आज देश में हर जगह कुछ न कुछ उन्नयन (इनोवेशन) हो रहे हैं । शिक्षक और छात्र मिलकर कुछ नया कर रहे हैं । मुझे भरोसा है जिस तरह देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिये एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है, हमारे शिक्षक इसका भी लाभ छात्रों तक पहुचाने में अहम भूमिका निभायेंगे ।”

उन्होंने शिक्षकों को संबाेधित करते हुए कहा ,“वर्ष 2022 में हमारा देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष का पर्व मनायेगा। स्वतंत्रता के पहले कई वर्षों तक हमारे देश में आज़ादी की जंग का एक लम्बा इतिहास रहा है। इस दौरान देश का कोई कोना ऐसा नहीं था जहाँ आजादी के मतवालों ने अपने प्राण न्योछावर न किये हों, अपना सर्वस्व त्याग न दिया हो । यह बहुत आवश्यक है कि हमारी आज की पीढ़ी, हमारे विद्यार्थी, आज़ादी की जंग में हमारे देश के नायकों से परिचित रहें। ”

श्री मोदी ने कहा कि जब छात्र यह जानेंगे कि उनके जिले में, उनके क्षेत्र में, आज़ादी के आन्दोलन के समय क्या हुआ, कैसे हुआ, कौन-कौन शहीद हुआ, कौन कितने समय तक देश के लिए ज़ेल में रहा तो उनके व्यक्तित्व पर भी इसका प्रभाव दिखेगा। इसके लिये बहुत से काम किये जा सकते हैं, जिसमें हमारे शिक्षकों का बड़ा दायित्व है । शिक्षक छात्रों से यह शोध करा सकते हैं कि वह जिस जिले में हैं ,वहाँ शताब्दियों तक जो आजादी का जंग चला, उस दौरान वहाँ कोई घटनाएं घटी हैं क्या ? उसे स्कूल के हस्तलिखित अंक के रूप में तैयार किया जा सकता है।

उन्होंने कहा ,“ शिक्षक अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े स्थान पर छात्र- छात्राओं को ले जा सकते हैं । किसी स्कूल के विद्यार्थी ठान सकते हैं कि वो आजादी के 75 वर्ष में अपने क्षेत्र के आज़ादी के 75 नायकों पर कवितायें लिखेंगे, नाट्य कथाएँ लिखेंगे । शिक्षकों के प्रयास से आजादी से उन दिवानों के बारे में जाना जा सकता है, जिन्हें लोग भूल गये हैं। वे स्वतंत्रता सेनानी जो देश के लिए जिये, जो देश के लिए खप गए लेकिन उनके नाम समय के साथ विस्मृत हो गए, ऐसे महान व्यक्तित्वों को अगर हम सामने लायेंगे और आजादी के 75 वर्ष में उन्हें याद करेंगे तो यह उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी और जब पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस मना रहे हैं तब मैं मेरे शिक्षक साथियों से जरूर आग्रह करूँगा कि वे इसके लिए एक माहौल बनाएं, सब को जोड़ें और सब मिल करके जुट जाएँ।”

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Dr.Sushil Sharma Admin/Editor

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