नयी दिल्ली 09 मार्च । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीमद्भगवत् गीता को 130 करोड़ भारतीयों के लिए भगवान का संदेश बताते हुए कहा कि गीता में विचार एवं कर्म की स्वतंत्रता का संदेश ही देश के लोकतंत्र एवं संविधान का मूलमंत्र है लेकिन लोग इस संदेश को भूल कर संवैधानिक संस्थाओं पर चोट कर रहे हैं।
श्री मोदी ने यहां सात लाेक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री निवास पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. कर्ण सिंह द्वारा संकलित श्रीमद्भगवत् गीता के प्रत्येक श्लोक की 20 से 21 व्याख्याओं के 11 खंडों के विमाेचन के मौके पर यह बात कही। कार्यक्रम में डॉ कर्ण सिंह के अलावा जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा शामिल हुए। कार्यक्रम में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उपस्थित थे। इस ग्रंथ वृंद का प्रकाशन मोतीलाल बनारसीदास ने किया है। कार्यक्रम का संचालन डॉ कर्ण सिंह के पुत्र अजातशत्रु सिंह ने किया।
ग्रंथ के विमोचन के पश्चात समारोह को संबोधित करते हुए श्री मोदी ने कहा कि किसी एक ग्रंथ के हर श्लोक की अलग-अलग व्याख्याएं उनकी गहरायी का प्रतीक होने के साथ ही हमारी संस्कृति की वैचारिक सहिष्णुता एवं स्वतंत्रता का प्रतीक है। किसी के लिए गीता सांख्य शास्त्र है तो किसी के लिए योग सूत्र तो किसी के लिए कर्मपाठ और विश्वास का सूत्र है।
उन्होंने कहा कि गीता ने महाभारत से लेकर देश के स्वतंत्रता के संग्राम को भी प्रेरित किया। गांधी, सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक सबने गीता से प्रेरणा ली। गीता ने बताया है कि प्राणिमात्र में ईश्वर का वास है। यह ज्ञान एवं सोच की समृद्धि का स्रोत है। सभी हानि लाभ की इच्छा से मुक्ति के संदेश के साथ गीता साहस के साथ कहती है कि कोई भी कर्म से मुक्त नहीं हो सकता। कर्म कैसा हो और उसकी दिशा क्या हो, यह हमारी जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा, “हम सभी को गीता के इस पक्ष को देश के सामने रखने का प्रयास करना चाहिए। कैसे गीता ने हमारी आजादी की लड़ाई की लड़ाई को ऊर्जा दी। कैसे गीता ने देश को एकता के आध्यात्मिक सूत्र में बांधकर रखा। इन सभी पर हम शोध करें, लिखें और अपनी युवा पीढ़ी को इससे परिचित कराएं।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि कर्म एवं विचार की स्वतंत्रता भारत के लाेकतंत्र की पहचान है। हमारा लोकतन्त्र हमें हमारे विचारों की आज़ादी देता है, काम की आज़ादी देता है, अपने जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार देता है। हमें ये आज़ादी उन लोकतान्त्रिक संस्थाओं से मिलती है, जो हमारे संविधान की संरक्षक हैं। आज जब हम अधिकारों की बात करते हैं तो हमें लोकतांत्रिक कर्तव्यों का ध्यान रखना होता है। लेकिन लोग संवैधानिक ढांचे एवं विश्वास पर चोट कर कर रहे हैं, राजनीतिक हमले कर रहे हैं। इस प्रवृत्ति से देश को नुकसान पहुंचता है। हालांकि संतोष की बात यह है कि ऐसे लोग मुख्य धारा से दूर हैं।
उन्होंने कहा कि गीता के कर्मयोग को मान कर ही हम गांव, गरीब, शोषित, वंचित एवं जरूरतमंद की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि गीता तो एक ऐसा ग्रंथ है जो पूरे विश्व के लिए है, जीव मात्र के लिए है। दुनिया की कितनी ही भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया, कितने ही देशों में इस पर शोध किया जा रहा है, विश्व के कितने ही विद्वानों ने इसका सानिध्य लिया है। गीता ने ही दुनिया को निस्वार्थ सेवा जैसे भारत के आदर्शों से परिचित कराया। नहीं तो भारत की निस्वार्थ सेवा, विश्व बंधुत्व की हमारी भावना बहुतों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं होती।
उन्होंने कहा कि हमने जितनी ज्यादा प्रगति की, उतना ही मानव मात्र की प्रगति के लिए और प्रयास हम करते रहे। कोरोना महामारी के दौर में हमने इसी संस्कार का परिचय दिया। हमारे यही संस्कार और यही इतिहास आज आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के रूप में एक बार फिर जागृत हो रहा है। आज भी जब दुनिया एक बार फिर से हर्बल और नेचुरल की बात कर रही है, आज जब अलग-अलग देशों में आयुर्वेद पर शोध हो रहे हैं तो भारत उसे प्रोत्साहित कर रहा है, मदद भी दे रहा है।
श्री मोदी ने कहा कि आज एक बार फिर भारत अपने सामर्थ्य को संवार रहा है ताकि वो पूरे विश्व की प्रगति को गति दे सके, मानवता की सेवा कर सके। हाल के महीनों में दुनिया ने भारत के जिस योगदान को देखा है, आत्मनिर्भर भारत में वही योगदान और अधिक व्यापक रूप में दुनिया के काम आयेगा।
प्रधानमंत्री ने डॉ कर्ण सिंह को उनके 90वें जन्मदिवस पर बधाई देते हुए कहा कि उनके परिवार में ज्ञान एवं संस्कृति की धारा अविरल बहती रही है। उन्होंने भारतीय दर्शन पर जिस प्रकार से अपना जीवन समर्पित किया है, उसका भारतीय शिक्षण जगत पर प्रभाव पड़ा है।
इससे पहले डाॅ. कर्ण सिंह ने अपने विद्वतापूर्ण संबोधन में कहा कि गीता की लोकप्रियता इसलिए है कि यह संघर्ष का शास्त्र है। इसमें गुरु के रूप में स्वयं विलक्षण भगवान श्रीकृष्ण हैं और यहां गुरू एवं शिष्य का संबंध अद्भुत है। मातृ-पितृ, बंधु एवं सखा के रूप में गुरू बन कर शिष्य अर्जुन काे मार्ग दिखाया है। यह ग्रंथ कर्मों की व्याख्या करता है। और कहता है कि व्यक्ति कर्म का समर्पण करने से पाप से मुक्त हो जाता है।