नईदिल्ली 4 जून। राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद के उदघाटन संबोधन के साथ दो दिवसीय राज्यपाल और उप-राज्यपाल सम्मेलन आज (4 जून, 2018) राष्ट्रपति भवन में शुरू हुआ। यह राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाला 49वां सम्मेलन है और राष्ट्रपति श्री कोविंद की अध्यक्षता में दूसरा सम्मेलन है।
अपने आरंभिक संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि शासन प्रणाली में राज्यपाल पद की विशेष गरिमा है। राज्य सरकार में राज्यपाल की भूमिका संरक्षक और मार्गदर्शक की होती है और वे संघीय ढांचे में महत्वपूर्ण कड़ी हैं। राज्य के लोग राज्यपाल के कार्यालय और राजभवन को आदर्श और मूल्यों के स्रोत के रूप में देखते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश में अनुसूचित जनजातियों की लगभग दस करोड़ की आबादी का एक बड़ा हिस्सा, भारतीय संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में रहता है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल विकास की दृष्टि से अपेक्षाकृत पीछे रह गए इन लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में उचित मदद कर सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश के सभी विश्वविद्यालयों में से 69 प्रतिशत राज्य सरकार के नियंत्रण में है। इन विश्वविद्यालयों के छात्रों में से लगभग 94 प्रतिशत उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। राज्यपाल इनमें से अधिकतर विश्वविद्यालयों के कुलपति हैं। राज्यपाल अपने पद, अधिकार और अनुभव से शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए आवश्यक मार्ग-दर्शन और प्रेरणा देते हैं। अपने कार्यालय और सार्वजनिक जीवन के समृद्ध अनुभव के कारण राज्यपाल इस जिम्मेदारी को उठाने के लिए आदर्श हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि राज्यपाल राज्यों के विश्वविद्यालयों में समय पर तथा पारदर्शी तरीके से विद्यार्थियों के दाखिले तथा अध्यापकों की नियुक्तियां सुनिश्चित कर सकते हैं। वे नियत समय पर परीक्षाओं, परिणामों की घोषणा तथा दीक्षांत समारोहों के आयोजन सुनिश्चित कर सकते हैं। उन पर इस अनुशासन और अखंडता को कायम रखने में राज्य के विश्वविद्यालयों को प्रेरित करने की जिम्मेदारी हैं।
2018 के दो दिवसीय सम्मेलन में विभिन्न सत्रों में महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जाएगी। इनमें भारत सरकार के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों और आंतरिक सुरक्षा की जानकारी तथा प्रस्तुति; राज्य के विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा; रोजगार के लिए कौशल विकास; 48वें राज्यपाल सम्मेलन में गठित राज्यपालों की समिति की रिपोर्ट पर उठाए गए कदम और महात्मा गांधी की 150वीं जयंती समारोह शामिल हैं। केंद्र शासित प्रदेशों पर 5 जून, 2018 को विशेष सत्र आयोजित किया जाएगा जिसमें उप-राज्यपाल/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की स्थिति पर चर्चा करेंगे।
इस सम्मेलन में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के राज्यपाल और उप-राज्यपाल के अतिरिक्त उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, विदेश मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री, कौशल विकास तथा उद्यमिता मंत्री, संस्कृति राज्य मंत्री और नीति आयोग के उपाध्यक्ष तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एवं विभिन्न मंत्रालयों के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भाग ले रहे हैं।
भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का राज्यपाल सम्मेलन-2018 में आरम्भिक उद्बोधन
राष्ट्रपति भवन में आयोजित इस सम्मेलन में आप सबका हार्दिक स्वागत है। इस सम्मेलन में पहली बार शामिल होने वाली मध्य प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल, ओडिशा के राज्यपाल प्रोफेसर गणेशी लाल और मिजोरम के राज्यपाल श्री के. राजशेखरन का विशेष रूप से स्वागत है।
सामान्यतः यह सम्मेलन प्रत्येक वर्ष के आरंभ में, आयोजित होता है। परंतु कुछ अपरिहार्य कारणों से, वर्ष 2017 का सम्मेलन अक्टूबर महीने में आयोजित हो पाया था। उसके सात महीनों के पश्चात वर्ष 2018 के इस सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। ऐसे सम्मेलन में आप सभी राज्यपालों और उप-राज्यपालों को उप-राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों, नीति आयोग के उपाध्यक्ष तथा सरकार के वरिष्ठतम अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करने का अच्छा अवसर प्राप्त होता है। इस अवसर का उपयोग करके, हम कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर पारस्परिक चर्चा करते हुए उन क्षेत्रों में भविष्य की दिशा तय कर सकेंगे। इस परिप्रेक्ष्य में राज्यपाल सम्मेलन का अपना विशेष महत्व है।
राज्यपाल के संवैधानिक पद की एक विशेष गरिमा होती है। राज्य सरकार के मार्ग-दर्शक तथा हमारे संघीय ढांचे की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में, राज्यपाल अपना निरंतर योगदान देते हैं। राज्य की जनता राज्यपालों को आदर्शों और मूल्यों के कस्टोडियन के रूप में देखती है।
पिछले सम्मेलन में ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर’, ‘पब्लिक सर्विसेज’, तथा ‘हायर एजुकेशन इन स्टेट्स एंड स्किल डेवलपमेंट’ से जुड़े विषयों पर विचार-विमर्श हुआ था। आप सभी से इन विषयों पर अच्छे सुझाव प्राप्त हुए थे।
पिछले सम्मेलन में लिए गए निर्णय के अनुसार गठित की गई राज्यपालों की समिति ने अपनी रिपोर्ट जनवरी, 2018 में प्रस्तुत कर दी थी। इस रिपोर्ट में राज्यपालों की भूमिका समाज के चेंज-एजेंट के रूप में निरूपित की गई है। आज चौथे सत्र में इस रिपोर्ट के अनुसार की गई कार्यवाही पर भी चर्चा की जाएगी।
इस वर्ष के सम्मेलन का एजेंडा तय करते समय यह फ़ोकस रखा गया था कि विकास की यात्रा में पीछे रह गए देशवासियों के हित में क्रियान्वित की जा रही योजनाओं की सम्पूर्ण जानकारी आप सभी को मिले तथा उन पर विस्तार से चर्चा हो।
विभिन्न राज्यों में जिन 115 ऐस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स में तेज गति से विकास करने का संकल्प किया गया है उसके क्रियान्वयन के बारे में आप सबको पूरी जानकारी मिले। गरीबों, महिलाओं, अनुसूचित जातियों एवं जन-जातियों, युवाओं और किसानों के कल्याण के लिए सभी स्टेक-होल्डर्स का मार्ग-दर्शन करने में, यह जानकारी आप सब के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।
हमारे देश में अनुसूचित जनजातियों की लगभग दस करोड़ की आबादी का एक बड़ा हिस्सा, भारतीय संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में रहता है। विकास की दृष्टि से अपेक्षाकृत पीछे रह गए इन लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में आप सभी उचित मार्ग-दर्शन दे सकते हैं।
भारत, विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। इन युवाओं के जीवन में नैतिक मूल्यों की स्थापना करने तथा उन्हे उचित शिक्षा के लिए प्रेरित करने के लिए आप सही अर्थों में उनके अभिभावक हैं। आप उन्हे ऐसा चरित्र विकसित करने की प्रेरणा दे सकते हैं जिसके बल पर वे भारतीय मूल्यों के प्रति निरंतर संवेदनशील बने रहें।
उच्च-शिक्षा के संदर्भ में पिछले राज्यपाल सम्मेलन में यह तथ्य सामने आया था कि हमारे देश के उनहत्तर प्रतिशत [69%] विश्वविद्यालय राज्य सरकारों के नियंत्रण में चल रहे हैं, जिनमें चौरानबे प्रतिशत [94%] विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश विश्वविद्यालयों के आप कुलाधिपति हैं। अपने पद, अधिकार और अनुभव का उपयोग करते हुए आप सब शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए मार्ग-दर्शन और प्रेरणा प्रदान करते हैं। आप सभी यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि राज्यों के विश्वविद्यालयों में समय पर तथा पारदर्शी तरीके से विद्यार्थियों के दाखिले तथा अध्यापकों की नियुक्तियाँ हों। साथ ही परीक्षाएँ, परिणामों की घोषणा तथा दीक्षांत समारोह, नियत समय पर आयोजित हों। तेजी से बदलते हुए वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, शिक्षा की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए, समय-समय पर, पाठ्यक्रमों में बदलाव और सुधार करते रहना भी आवश्यक है। युवाओं के साथ संवाद स्थापित करके, आप सभी उन्हे समाज और देश के हित में अपनी शिक्षा का सदुपयोग करने की प्रेरणा दे सकते हैं। देश की भावी पीढ़ियों का निर्माण करने के लिए हम सबको मिलकर निरंतर प्रयास करते रहना है।
भारत सरकार ने 2 अक्टूबर, 2018 से आरंभ करके चौबीस महीनों तक महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने का निर्णय लिया है और इसके लिए राष्ट्रपति की अध्यक्षता में, एक राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया है। विगत 2 मई, 2018 को इस समिति की पहली बैठक इसी परिसर में आयोजित की गई।
उस बैठक में अनेक अच्छे सुझाव प्राप्त हुए। इस विषय पर भी कल इस सम्मेलन में चर्चा की जाएगी। गांधी जी की स्मृति से जुड़े समारोहों का अपना महत्व है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, गांधी जी रचनात्मक कार्यों में विश्वास करते थे। अतः सार्थक सामाजिक बदलाव के लिए काम करना ही उनकी स्मृति को संजोए रखने का सबसे अच्छा तरीका है। गांधी जी ने किसी भी कार्य के आरंभ में होने वाली दुविधा को दूर करने का एक स्पष्ट समाधान सुझाया था। उनके अनुसार सबसे दुर्बल और गरीब व्यक्ति के जीवन और नियति को सुधारने का उद्देश्य ही किसी भी कार्य के उचित होने की कसौटी है। इस परिप्रेक्ष्य में, गांधी जी के आदर्शों और मूल्यों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए, आप सभी के सुझावों का स्वागत है।
राज्यपालों के इस सम्मेलन में उप-राष्ट्रपति तथा प्रधान मंत्री, गृह मंत्री और उनके वरिष्ठ सहयोगी, अपनी उपस्थिति और योगदान से, यहाँ होने वाले संवाद को और अधिक सार्थकता प्रदान करेंगे। आप सभी राज्यपालों का सामाजिक जीवन में लंबा अनुभव रहा है।
मुझे विश्वास है कि इस सम्मेलन के दौरान आप सबके महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त होंगे। इस सम्मेलन में जो विचार-विमर्श होगा उससे संवेदनशीलता, सौहार्द और समावेश पर आधारित एक अच्छे समाज के निर्माण में सहायता प्राप्त होगी।
इन शब्दों के साथ मैं 2018 के इस राज्यपाल सम्मेलन के आरम्भ की घोषणा करता हूँ। अब गृह मंत्री जी से मेरा अनुरोध है कि वे सम्मेलन की कार्यवाही को आगे बढ़ाएँ।
धन्यवाद
जय हिन्द
प्रधानमंत्री ने 49वें राज्यपाल सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज राष्ट्रपति भवन में 49वें राज्यपाल सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।
प्रधानमंत्री ने इस विषय पर विस्तार से चर्चा की कि कैसे राज्यपालों को जीवन के विविध क्षेत्रों में अपने अनुभव का प्रयोग करना चाहिये ताकि लोग केंद्र की विभिन्न विकासात्मक योजनाओं का अधिकतम लाभ ले सकें। उन्होंने कहा कि हमारे संघीय ढांचे और संवैधानिक व्यवस्था में राज्यपाल की संस्था को एक केंद्रीय भूमिका का निर्वाह करना है।
उन्होंने कहा कि उन राज्यों के राज्यपाल जहां कि आदिवासी जनसंख्या बड़ी मात्रा में है वहां पर सरकार की शिक्षा, खेल और वित्तीय समावेश की योजनाओं का लाभ आदिवासी समुदायों तक पहुंचाना सुनिश्चित करने में सहायता कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदायों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है और इसको पहचान मिलनी चाहिये और इसे डिजिटल संग्रहालयों के जरिये भविष्य की पीढ़ियों के लिये दर्ज किया जाना चाहिये।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्यपाल विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं। उन्होंने कहा कि 21 जून के अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर का युवाओं में योग के बारे में जागरूरकता बढ़ाने के लिये प्रयोग किया जा सकता है। इसी तरह, उन्होंने जोर दिया कि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों के लिये विश्वविद्यालय केंद्रीय भूमिका निभा सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने विकास से संबंधित कुछ अहम विषयों की भी चर्चा की जैसे राष्ट्रीय पोषण अभियान, गावों का विद्युतीकरण, और आकांक्षी जिलों में जिलों में विकास से संबंधी मानक। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्यपाल उन गावों का दौरा कर खुद विद्युतीकरण के लाभ जान सकते हैं जिनमें हाल ही में बिजली पहुंची है।
उन्होंने कहा कि हाल ही में 14 अप्रैल से चालू गये ग्राम स्वराज अभियान के तहत 16,000 गावों में सरकार की 7 योजनाओं को पूरी तरह से लागू किया गया है। उन्होंने कहा कि जन भागीदारी के जरिये इन गावों को 7 समस्याओं से पूरी तरह से मुक्त किया गया है। उन्होंने कहा कि ग्राम स्वराज अभियान को 15 अगस्त के लक्ष्य के साथ अब 65,000 नये गावों में लागू किया गया है।
प्रधानमंत्री ने सुझाव ने कहा कि अगले वर्ष आयोजित होने वाले 50वें राज्यपाल सम्मेलन के लिये तैयारी तुरंत आरंभ कर दी जानी चाहिये। इस प्रयास के जरिये इस वार्षिक आयोजन को और अधिक उपयोगी बनाने की कोशिश करनी चाहिये।attacknews.in