कुम्भनगर, 04 मार्च । सम्पूर्ण विश्व में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले कुम्भ के आखिरी दिन महाशिवरात्रि के पर्व पर एक करोड़ 10 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित हो रही सरस्वती में आस्था की डुबकी लगाई।
आधिकारिक सूत्रो ने सोमवार को यहां बताया कि कुम्भ के अंतिम स्नान के लिए विभिन्न घाटों पर मध्यरात्रि के बाद से लगातार स्नान होता रहा। शाम पांच बजे तक एक करोड़ 10 लाख से अधिक श्रद्वालुओं ने त्रिवेणी के संगम में आस्था एवं पुण्य की डुबकी लगाई।
महाशिवरात्रि के स्नान के लिए श्रद्वालुओं का आगमन शनिवार से ही शुरू हो गया था। रविवार प्रातः से शुरू हुआ श्रद्वालुओं का रेला कुम्भ के विभिन्न मार्गो पर आगमन देर शाम तक अनवरत जारी रहा। संयोग से इस बार महाशिवरात्रि पर्व सोमवार को था तथा इस भव्य और दिव्य कुम्भ के आखिरी स्नान पर्व होने के कारण भी श्रद्वालुओं की भीड कुम्भ क्षेत्र में पहुंची।
पिछले डेढ़ महीने से चल रहे कुंभ मेले में महाशिवरात्रि के अवसर पर अंतिम पवित्र स्नान के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में आए श्रद्धालुओं ने आज हर-हर महादेव के जयकारे के साथ संगम में डुबकी लगाई । ये श्रद्धालु एक दिन पहले से ही संगम नगरी में पहुंचना शुरू हो गए थे । मेले का आज अंतिम स्नान था ।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि उन कल्पवासियों के अंतिम पवित्र स्नान का प्रतीक है- जो माघ के महीने को कल्पवास के रूप में बिताते हैं। कल्पवास तपस्या की वह अवधि है, जिसमें लोग सांसारिक मोह-माया त्याग कर अति संयमित और आध्यात्मिक जीवन जीते हैं।
पवित्र शहर के कुछ हिस्सों में देर रात आयी बारिश के बावजूद तीर्थयात्रियों का उत्साह कम नहीं हुआ।
लखनऊ से आए धनंजय सिंह ने कहा, ‘‘बारिश के बावजूद मैं और मेरे दोस्त स्नान घाट गये और डुबकी लगाई।’’
कुंभ नगरी के सेक्टर-6 में एक शिविर लगाने वाले ज्योतिषी आशुतोष वार्ष्णेय ने कहा, ‘‘महाशिवरात्रि कुंभ की परिणति और प्रमुख स्नान दिवस के रूप में चिह्नित है। लंबे समय बाद इस साल, शिवरात्रि सोमवार को है, जो दिन भगवान शिव को ही समर्पित है।’’
कुंभ में कुल छह प्रमुख पवित्र स्नान होते हैं, जिनमें मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी पर शाही स्नान का तथा पौष पूर्णिमा और माघी पूर्णिमा पर पर्व स्नान का आयोजन किया गया।
छठा व अंतिम स्नान आज महाशिवरात्रि के अवसर पर हुआ ।
दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागमों में से एक कुंभ का शुभारंभ मकर संक्रांति पर 15 जनवरी को हुआ था।
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