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साहित्यिक चोरी

कोर्ट ने PHD में साहित्यिक चोरी को गंभीर अपराध माना,बर्खास्तगी है इसकी सज़ा Attack News

नई दिल्ली, 13 अप्रैल । दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज यह स्पष्ट कर दिया कि एक प्रोफेसर द्वारा साहित्यिक चोरी को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और इस तरह की गतिविधि में लिप्त किसी को भी बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए.

अदालत के समक्ष आए प्रकरण में यह निर्देश फारसी और मध्य एशियाई अध्ययन के लिए अपने पद से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर को हटाने की मांग वाली एक याचिका पर आया। इसमे आरोप है कि वह पीएच.डी थीसिस में कई लेखकों की साहित्यिक चोोरी का काम किया है ।

एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरि शंकर की खंडपीठ ने जेएनयू और इसके एसोसिएट प्रोफेसर एसके इश्तियाक अहमद के खिलाफ जवाब मांगा जिनके खिलाफ आरोप लगाए गए थे ।

“एक प्रोफेसर द्वारा साहित्यिक चोरी किसी भी तरीके से बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है । उसे बर्खास्त किया जाना चाहिये , “पीठ ने कहा ।

कोर्ट ने जेएनयू को जांच का जिम्मा सौंपते हुए इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट फाइल करने को कहा और अगर प्रोफेसर गलत पाए गए तो आपराधिक कार्रवाई भी शुरू कर दी जाए। इस मामले को 10 अगस्त को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया ।

विश्वविद्यालय के एक ही विभाग में पीएच.डी शोध विद्वान नदीम अख्तर ने याचिका दायर कर कहा कि जेएनयू के ध्यान में लाए जा रहे साहित्यिक चोरी के उदाहरणों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई और संबंधित व्यक्ति को सहायक प्रोफेसर से पदोन्नत कर एसोसिएट प्रोफेसर की उनकी वर्तमान स्थिति है ।

याचिकाकर्ता के लिए अधिवक्ता आर के सैनी और अक्षिता रैना ने दलील दी कि प्रोफेसर की प्रारंभिक नियुक्ति मनमानी और गैरकानूनी थी और उन्होंने अपने वर्तमान पद से हटाने की मांग की थी ।

याचिका में आरोप लगाया है कि “उनके (प्रोफेसर) थीसिस का एक बड़ा हिस्सा 15 विभिंन स्रोतों से शब्दशः उठाया है । 3 प्रतिवादी (प्रोफेसर) अपने पीएच.डी थीसिस में लेखकों के विभिंन पुस्तकों से न केवल साहित्यिक चोोरी की गईं जिसमेें ग्रंथों और लेखन टिप्पणियों है, लेकिन यह भी अपने थीसिस के निष्कर्ष भी सााााहित्यिक चोोरी में एक प्रख्यात लेखक के निष्कर्ष का उपयोग कििया गया है “।

इसके अलावा याचिका में प्रोफेसर को २००० में फारसी भाषा में दिए गए पीएच.डी. डिग्री quashing की भी मांग की है ।

अंतरिम राहत के तौर पर इस याचिका ने विश्वविद्यालय को दिशा-निर्देश मांगा है कि वह किसी भी स्तर पर रिसर्च सुपरवाइजर के रूप में अपने कर्तव्यों से अलग करे और इस याचिका के परिणाम तक किसी भी वर्ग को आवंटित न करने का आदेश दिया जाए ।

इसमें मांग की है कि प्राध्यापक को याचिका की लंबित के दौरान विश्वविद्यालय में किसी भी एम. फिल या पीएच.डी छात्र का पर्यवेक्षण व मार्गदर्शन करने से मनाही हो ।attacknews.in

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