नयी दिल्ली, 30 जुलाई । तीन तलाक से संबंधित मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 पर आज संसद की मुहर लग गयी। राज्यसभा में इस विधेयक को आज मतविभाजन से पारित कर दिया गया जबकि लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
विधेयक पारित कराने की प्रक्रिया के दौरान विपक्ष के नेता गुलाम नवी आजाद ने कहा कि तीन तलाक को आपराधिक मामला न बनाकर सिविल मामला बनाया जाना चाहिए था और विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाना चाहिए था जिसके कारण विपक्ष ने इस पर मतविभाजन की मांग की । विधेयक को 81 मुकाबने 99 मतों से पारित कर दिया गया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के इलामारम करीम तथा कई अन्य सदस्यों के विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के प्रस्ताव को 84 के मुकाबले 100 वोट से अस्वीकार कर दिया गया ।
इससे पहले भाकपा के विनय विश्वम तथा तीन अन्य सदस्यों के मुस्लिम महिला (विवाहअधिकार संरक्षण) द्वितीय अध्यादेश को नामंजूर करने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से अस्वीकार कर दिया गया। विधेयक पर लाये गये संशोधनों के प्रस्तावों को भी ध्वनिमत से अस्वीकार कर दिया गया।
संसद ने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक देने की प्रथा पर रोक लगाने के प्रावधान वाले एक ऐतिहासिक विधेयक को मंगलवार को मंजूरी दे दी। विधेयक में तीन तलाक का अपराध सिद्ध होने पर संबंधित पति को तीन साल तक की जेल का प्रावधान किया गया है।
मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को राज्यसभा ने 84 के मुकाबले 99 मतों से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
इससे पहले उच्च सदन ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के विपक्षी सदस्यों द्वारा लाये गये प्रस्ताव को 84 के मुकाबले 100 मतों से खारिज कर दिया। विधेयक पर लाये गये कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के एक संशोधन को सदन ने 84 के मुकाबले 100 मतों से खारिज कर दिया।
विधेयक पारित होने से पहले ही जदयू एवं अन्नाद्रमुक के सदस्यों ने इससे विरोध जताते हुए सदन से बहिर्गमन किया।
विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि एक प्रसिद्ध न्यायाधीश आमिर अली ने 1908 में एक किताब लिखी है। इसके अनुसार तलाक ए बिद्दत का पैगंबर मोहम्मद ने भी विरोध किया है।
प्रसाद ने कहा कि एक मुस्लिम आईटी पेशेवर ने उनसे कहा कि तीन बेटियों के जन्म के बाद उसके पति ने उसे एसएमएस से तीन तलाक कह दिया है।
उन्होंने कहा ‘‘एक कानून मंत्री के रूप में मैं उससे क्या कहता? क्या यह कहता कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय को मढ़वा कर रख लो। अदालत में अवमानना का मुकदमा करो। पुलिस कहती है कि हमें ऐसे मामलों में कानून में अधिक अधिकार चाहिए।’’
उन्होंने शाहबानो मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार द्वारा लाये गये विधेयक का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘ मैं नरेन्द्र मोदी सरकार का कानून मंत्री हूं, राजीव गांधी सरकार का कानून मंत्री नहीं हूं।’’
उन्होंने कहा कि यदि मंशा साफ हो तो लोग बदलाव की पहल का समर्थन करने को तैयार रहते हैं।
प्रसाद ने कहा कि जब इस्लामिक देश अपने यहां अपनी महिलाओं की भलाई के लिए बदलाव की कोशिश कर रहे हैं तो हम तो एक लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष देश हैं, हमें यह काम क्यों नहीं करना चाहिए?
उन्होंने कहा कि तीन तलाक से प्रभावित होने वाली करीब 75 प्रतिशत महिलाएं गरीब वर्ग की होती हैं। ऐसे में यह विधेयक उनको ध्यान में रखकर बनाया गया है।
प्रसाद ने कहा कि हम ‘‘सबका साथ सबका विकास एवं सबका विश्वास’’ में भरोसा करते हैं और इसमें हम वोटों के नफा नुकसान पर ध्यान नहीं देंगे और सबके विकास के लिए आगे बढ़ेंगे और उन्हें (मुस्लिम समाज को) पीछे नहीं छोड़ेंगे।
मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रानिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक देता है तो उसकी ऐसी कोई भी ‘उदघोषणा शून्य और अवैध होगी।’
इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि तीन तलाक से पीड़ित महिला अपने पति से स्वयं और अपनी आश्रित संतानों के लिए निर्वाह भत्ता प्राप्त पाने की हकदार होगी। इस रकम को मजिस्ट्रेट निर्धारित करेगा।
मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति दिलाने के मकसद से मंगलवार को राज्यसभा में पेश विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए विभिन्न दलों के सदस्यों ने इसे अपराध की श्रेणी में डालने के प्रावधान पर आपत्ति जतायी और कहा कि इससे पूरा परिवार प्रभावित होगा। हालांकि सत्ता पक्ष ने इस विधेयक को राजनीति के चश्मे से नहीं देखे जाने की नसीहत देते हुए कहा कि कई इस्लामी देशों ने पहले ही इस प्रथा पर रोक लगा दी है।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 उच्च सदन में चर्चा के लिये पेश किया और कहा कि उच्चतम न्यायालय के एक फैसले में इस प्रथा को अवैध ठहराया गया। लेकिन उसके बाद भी तीन तलाक की प्रथा जारी है। यह विधेयक लोकसभा में पिछले सप्ताह ही पारित हुआ है।
विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस सदस्य अमी याज्ञनिक ने कहा कि महिलाओं को धर्म के आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि सभी महिलाओं के प्रति क्यों नहीं चिंता की जा रही है? उन्होंने कहा कि समाज के सिर्फ एक ही तबके की महिलाओं को समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। उन्होंने कहा कि यह समस्या सिर्फ एक कौम में ही नहीं है।
उन्होंने कहा कि वह विधेयक का समर्थन करती हैं लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में डालना उचित नहीं है। याज्ञनिक ने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय ने पहले ही इसे अवैध ठहरा दिया तो फिर विधेयक लाने की क्या जरूरत थी। उन्होंने कहा कि विधेयक में इसे अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया है। इससे महिलाओं को अपराधियों के साथ मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश होना होगा। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों की सुनवाई पारिवारिक (फैमिली) अदालत में होनी चाहिए न कि मजिस्ट्रेट अदालत में।
उन्होंने कहा कि विधेयक में प्रावधान किया गया है कि पति और पत्नी के अलावा तीसरा व्यक्ति भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। उन्होंने इस प्रावधान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि किसी तीसरे व्यक्ति को पारिवारिक या निजी मामले में हस्तक्षेप की अनुमति कैसे दी जा सकती है? उन्होंने कहा कि कानून का मकसद न्याय और अंतत: गरिमा है लेकिन इसके प्रावधानों के तहत महिला को मजिस्ट्रेट अदालत में अपराधियों के साथ बैठने को बाध्य होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि महिलाओं को कानूनी सहायता का भी कोई प्रावधान नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को तीन तलाक की समस्या से मुक्ति दिलाइए लेकिन ऐसा उनकी गरिमा के साथ होना चाहिए।
चर्चा में भाग लेते हुए जद यू के बशिष्ठ नारायण सिंह ने विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि वह न तो विधेयक के समर्थन में बोलेंगे और न ही इसमें साथ देंगे। उन्होंने कहा कि हर पार्टी की अपनी विचारधारा होती है और उसे पूरी आजादी है कि वह उस पर आगे बढ़े। जद (यू) के सदस्यों ने विधेयक का विरोध करते हुए सदन से बहिर्गमन किया। इससे पूर्व माकपा सदस्य के के रागेश ने 21 फरवरी 2019 को जारी मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अध्यादेश के खिलाफ अपना प्रस्ताव पेश किया।
रविशंकर प्रसाद ने कहा:आपत्तियों का निराकरण कर दिया गया है-
विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज राज्यसभा में कहा कि मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक (तलाक -ए- बिद्दत) कु-प्रथा का निषेध करने से संबंधित मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 लैंगिक समानता, न्याय एवं गरिमा के लिए हैं और इससे लंबे समय चली रही एक कुरीति का खात्मा हो जाएगा।
श्री प्रसाद ने सदन में यह विधेयक चर्चा के लिए पेश करते हुए कहा कि मौजूदा विधेयक में कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों की आपत्तियों का निराकरण कर दिया गया है। इस कानून के तहत दर्ज होने वाले मामले में जमानत हो सकेगी और संबंधित मामला केवल पीड़िता या उसके खून के रिश्तें के परिजन ही दर्ज करा सकेंगे। इसके अलावा अदालतों में दोनों पक्षों के बीच समझौता भी हो सकेगा। लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी है। यह विधेयक मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) द्वितीय अध्यादेश 2019 के स्थान पर लाया गया है।
उन्होेंने कहा कि सरकार इस कानून को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार बना रही है। न्यायालय ने वर्ष 2013 में सायरा बानो मामले में एक साथ तीन तलाक बोलकर विवाह समाप्त करने को गैर इस्लामी और गैर कानूनी करार दिया था और सरकार को इस संबंध में कानून बनाने का कहा था।
उन्होंने कहा कि दुनिया के 26 मुस्लिम देश तीन तलाक कुप्रथा को गैर कानूनी घोषित कर चुके हैं। पड़ोसी देश बंगलादेश में भी यह गैर कानूनी है। सबसे पहले 1936 में मिस्र ने इस तीन तलाक कू-प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया था।
श्री प्रसाद ने कहा कि मामूली शिकायतों के आधार बनाकर तलाक दिये जा रहे हैं जिससे महिलाओं को बेहद दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि यह इंसानियत का मामला है और इससे नारी को न्याय, समानता और गरिमा मिलेगी।
उन्होंने कहा कि यह नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है और इसे राजनीतिक चश्में से नहीं देखा जाना चाहिए और समाज के एक वर्ग को केवल वोट बैंक नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बेटियां आज के समय में ओलंपिक में पदक जीत रही है और लडाकू विमान उड़ा रही है। समाज के एक तबके की बेटियों को फुटपाथ पर नहीं छोडा जा सकता। attacknews.in