नयी दिल्ली, 20 सितंबर । राज्यसभा में रविवार को विपक्ष के भारी हंगामें के बीच कृषि सुधारों के दो विधेयकों ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020’ तथा ‘कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा करार विधेयक 2020’ को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया और इसके साथ इन दोनों विधेयकों पर संसद की मुहर लग गयी।
लोकसभा इन्हें पहले ही पारित कर चुकी हैं। ये दोनोें विधेयक जून में जारी किये गये दो अध्यादेशों का स्थान लेंगे।
इन विधेयकों में किसानों को मंडी से बाहर कहीं भी मनमानी कीमत पर अपनी फसलों की बिक्री की आजादी दी गयी है। इसके साथ ही अनुबंध कृषि का प्रावधान किया गया है । इससे अधिक मूल्य मिलने वाली फसलों की खेती बढ़ेगी और अत्याधुनिक कृषि तकनीक को बढ़ावा मिल सकेगा ।
कृषि एवं किसान मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने चार घंटे की चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को बंद नहीं किया जाएगा और इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी आश्वासन दिया है । इन विधेयकों से किसानों को अपनी उपज बेचने के दो विकल्प उपलब्ध होंगे। इन विधेयकों में किसानों को मंडी से बाहर कहीं भी मनमानी कीमत पर अपनी फसलों की बिक्री की आजादी दी गयी है। इससे अधिक मूल्य मिलने वाली फसलों की खेती बढ़ेगी और अत्याधुनिक कृषि तकनीक को बढ़ावा मिल सकेगा ।
उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाना चाहती है और उन्हें फसलों की बुआई के समय ही उसकी उचित कीमत का आश्वासन दिलाने का प्रयास कर रही है।
विधेयकों को पारित कराने की प्रक्रिया के दौरान सदन में विपक्ष ने भारी हंगामा जिसके सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित भी करनी पड़ी।
कृषि विधेयकों पर राज्यसभा में विपक्ष का हंगामा
विपक्ष ने उस समय हंगामा किया जब सरकार ने कृषि से संबंधित दो विधेयकों को पारित कराने पर जोर दिया। तृणमूल कांग्रेस सदस्यों के नेतृत्व में कुछ विपक्षी सदस्य आसन के बिल्कुल पास आ गए।
हंगामे के कारण बैठक को कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया गया।
तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और वाम सहित विभिन्न दलों के सदस्यों ने उस समय हंगामा किया जब उप-सभापति हरिवंश ने दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में भेजे जाने के प्रस्ताव पर मतविभाजन की उनकी मांग पर गौर नहीं किया।
इससे पहले नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने मांग की कि दोनों विधेयकों पर हुयी चर्चा का जवाब कल के लिए स्थगित कर दिया जाए क्योंकि रविवार को बैठक का निर्धारित समय समाप्त हो गया है।
एक बार के स्थगन के बाद बैठक पुन: शुरू होने पर सदन ने कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। उस समय भी सदन में विपक्ष का हंगामा जारी था।
उप सभापति हरिवंश ने जब दोनों विधेयकों को चर्चा के बाद इन्हें पारित कराने की प्रकिया शुरू की तो आप आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, द्रविड मुनेत्र कषगम और वामदलों के सदस्यों ने इसका विरोध कड़ा विरोध किया और हंगामा करने लगे। हंगागें के दाैरान तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने आसन के समक्ष खड़े मार्शल के हाथ से कुछ दस्तावेज छीन लिये और उन्हें फाड़कर फेंक दिया। उत्तजेना में श्री ब्रायन ने आसन का माइक क्षतिग्रस्त कर दिया जिससे सदन में एक बजकर 14 मिनट पर सदन की ध्वनि प्रणाली (साउंड सिस्टम) खराब हो गयी। इसके बादजूद सदस्यों का हंगामा जारी रहने पर सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी गयी। इस दौरान सदन व्यवस्थित नहीं था और सदस्य सीटों से आगे आकर नारेबाजी कर रहे थे। विपक्ष इन दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में भेजने की मांग कर रहा था।
दौबारा जब सदन की बैठक शुरू हुई तो विधेयक पारित कराने की प्रक्रिया फिर आरंभ की गयी तो विपक्ष दलों के सदस्यों का हंगामा जारी रहा और इस दौरान ध्वनिमत से विधेयक पारित कर दिये।
कांग्रेस के शक्तिसिंह गोहिल ने कहा कि ये विधेयक किसानों को नुकसान पहुंचाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को पता है कि इनके कानून बन जाने पर वे बर्बाद हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार इन विधेयकों को ऐतिहासिक बता रही है जबकि वास्तव में ये काले कानून हैं। उन्होंने विधेयकों पर व्यापक चर्चा कराने की मांग करते हुए इन्हें प्रवर समिति में भेजने की मांग की।
कांग्रेस के अहमद पटेल ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सरकार ‘‘पैकेजिंग, मार्केटिंग और मीडिया को मैनेज’’ करने में माहिर है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इन विधेयकों की चर्चा करते हुए कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का जिक्र किया। लेकिन सरकार ने चुनिंदा रूप से ही कांग्रेस के घोषणा पत्र का अध्ययन किया। उसने किसानों के लिए न्याय योजना सहित प्रस्तावित अन्य कार्यक्रमों पर गौर नहीं किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इन विधेयकों के प्रावधानों से विदेशी निवेशकों को बढ़ावा मिलेगा।
शिरोमणि अकाली दल के नरेश गुजराल ने दोनों विधेयकों को पंजाब के किसानों के खिलाफ बताते हुए उन्हें प्रवर समिति में भेजने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार को पंजाब के किसानों को कमजोर नहीं समझना चाहिए। सरकार को पंजाब और हरियाणा के किसानों के असंतोष पर गौर करना चाहिए तथा वहां जो चिंगारी बन रही है, उसे आग में नहीं बदलने देना चाहिए।
शिअद के ही एसएस ढींढसा ने भी सरकार से इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा करने और दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में भेजने की मांग की।
राकांपा के प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि सरकार को इन विधेयकों को लाने के पहले विभिन्न पक्षों से बातचीत करनी चाहिए थी।
आप के संजय सिंह ने कहा कि दोनों विधेयक पूरी तरह से किसानों के खिलाफ हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार विभिन्न कानूनों के जरिए राज्यों के अधिकार अपने हाथ में लेना चाहती है।
पूर्व प्रधानमंत्री और जद (एस) नेता एचडी देवेगौड़ा ने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि जल्दबाजी में और कोविड-19 के दौरान अध्यादेश क्यों लाए गए। उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं पर गौर करने के लिए एक स्थायी आयोग बनाया जाना चाहिए।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने दोनों विधेयकों को किसानों के हित में बताया और कहा कि इससे उन्हें बेहतर बाजार मिल सकेगा।
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि इन विधेयकों के संबंध में राज्यों से मशविरा नहीं किया गया।
जद (यू) के आरसीपी सिंह ने राम चंद्र प्रसाद सिंह ने विधेयकों का समर्थन करते हुए कहा कि लंबे समय बाद किसानों के लिए कोई नीति आयी है।
राजद सदस्य मनोज झा ने ‘ठेके पर खेती’ को लेकर सवाल उठाया और कहा ऐसी खेती में नकदी फसलों पर ही जोर दिया जाता है। उन्होंने किसानों की समस्याओं पर संपूर्णता से विचार करने की जरूरत पर बल दिया।
बसपा के सतीशचंद्र मिश्रा ने कहा कि किसान देश की रीढ़ की हड्डी हैं। उन्होंने कहा कि किसानों का मौजूदा आंदोलन इस आशंका के कारण हो रहा है कि एमएसपी बंद हो जाएगा। हालांकि सरकार ने कहा है कि यह खत्म नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इसे नियम या कानून में ही शामिल कर लेते तो इसके विरोध की नौबत ही नहीं आती।
शिवेसना के संजय राउत ने सवाल किया कि अगर ये विधेयक सुधार के लिए हैं तो पंजाब, हरियाणा के किसान सड़कों पर क्यों हैं ? उन्होंने कहा कि पूरे देश में इनका विरोध नहीं हो रहा है। इसका मतलब है कि कुछ भ्रम है ?