नयी दिल्ली, 17 जून । सत्रहवीं लोकसभा के पहले सत्र के प्रथम दिन विपक्ष को साधने का प्रयास करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि उन्हें अपनी संख्या को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है और उनका हर शब्द सरकार के लिए ‘‘मूल्यवान’’ है।
मोदी ने सभी सांसदों से आग्रह किया कि वे जब सदन में हों तो निष्पक्ष रहें और राष्ट्र के व्यापक हित से जुड़े मुद्दों का समाधान करें।
उन्होंने कहा, ‘‘संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। विपक्ष को अपनी संख्या को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है। मुझे उम्मीद है कि वे (विपक्ष) सक्रियता से बोलेंगे और सदन की कार्यवाही में भागीदारी करेंगे।’’
प्रधानमंत्री का पूरा भाषण इस प्रकार है:
नमस्कार साथियों!
चुनाव के बाद, नई लोकसभा के गठन के बाद आज प्रथम सत्र प्रारंभ हो रहा है। अनेक नये साथियों के परिचय का एक अवसर है और जब नये साथी जुड़ते हैं,तो उनके साथ नया उमंग, नया उत्साह, नये सपने भी जुड़ते हैं। भारत के लोकतंत्र की विशेषताएं क्या हैं?ताकत क्या है? हर चुनाव में हम उसको अनुभव करते हैं। आजादी के बाद Parliament Election सबसे ज्यादा मतदान, सबसे ज्यादा महिला प्रतिनिधियों का चुनना। पहले की तुलना में बहुत अधिक मात्रा महिला मतदाताओं का मतदान करना, अनेक विशेषताओं से भरा हुआ ये चुनाव रहा।
कई दशकों के बाद एक सरकार को दोबारा पूर्ण बहुमत के साथ और पहले से अधिक सीटों के साथ जनता-जनार्दन ने सेवा करने का अवसर दिया है। गत पांच वर्ष का हमारा अनुभव है कि जब सदन चला है, तंदुरूस्त वातावरण में चला है, तब देशहित के निर्णय भी बहुत अच्छे हुए हैं। उन अनुभवों के आधार पर मैं आशा करता हूं कि सभी दल बहुत ही उत्तम प्रकार की चर्चा, जनहित के फैसले और जनाकांक्षाओं की पूर्ति की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं इसका विश्वास। हमने हमारी यात्रा प्रारंभ की थी ‘सबका साथ सबका विकास’ लेकिन देश की जनता ने ‘सबका साथ सबका विकास’ के अंदर एक अद्भूत विश्वास भर दिया और उस विश्वास को ले करके सामान्य मानव की आशा-आकांक्षाओं को, सपनों को पूरा करने के लिए संकल्प ले करके हम जरूर आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे।
लोकतंत्र में विपक्ष का होना, विपक्ष का सक्रिय होना,विपक्ष सामर्थ्यवान होना यह लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त है और मैं आशा करता हूं कि प्रतिपक्ष के लोग नंबर की चिंता छोड़ दें। देश की जनता ने जो उनको नंबर दिया है,वो दिया है, लेकिन हमारे लिए उनका हर शब्द मूल्यवान है, उनकी हर भावना मूल्यवान है। और सदन जब हम उस chair पर बैठते हैं, MP के रूप में बैठते हैं, तब पक्ष-विपक्ष से ज्यादा निष्पक्ष का spirit बहुत महत्त्व रखता है। और मुझे विश्वास है कि पक्ष और विपक्ष के दायरे में बंटने की बजाय निष्पक्ष भाव से जनकल्याण को प्राथमिकता देते हुए हम आने वाले 5 साल के लिए इस सदन की गरिमा को ऊपर उठाने में प्रयास करेंगे। मुझे विश्वास है कि पहले की तुलना में अधिक परिणामकारी हमारे सदन रहेंगे और जनहित के कामों में अधिक ऊर्जा, अधिक गति और अधिक सामूहिक चिंतन का भाव उसको अवसर मिलेगा।
मेरी आप सबसे भी गुजारिश है कि सदन में कई सदस्य बहुत ही उत्तम विचार रखते हैं, बहस को बहुत प्राणवान बनाते हैं, लेकिन चूंकि ज्यादातर वो रचनात्मक होते हैं और उसका और TRP का मेल नहीं होता है। लेकिन कभी-कभी TRP से ऊपर भी ऐसे सदस्यों को अवसर मिलेगा। अगर सरकार की आलोचना भी बहुत तर्कबद्ध से कोई सदन में सांसद करता है और वो बात पहुंचती है तो उसमें लोकतंत्र को बल मिलता है। इस लोकतंत्र को बल देने में आप सबसे मेरी बहुत अपेक्षाएं हैं। शुरू में तो जरूर उन अपेक्षाओं को पूरा करेंगे, लेकिन 5 साल इस भावना को प्रबल बनाने में आप भी बहुत बड़ी सकारात्मक भूमिका अदा कर सकते हैं। और अगर सकारात्मक भूमिका होगी, सकारात्मक विचारों को बल देंगे तो सदन में भी सकारात्मकता की दिशा में जाने का सबका मन बनेगा। तो मैं आपको भी निमंत्रण करता हूं कि 17वीं लोकसभा में हम उसी नई ऊर्जा, नये विश्वास,नये संकल्प, नये सपनों के साथ, साथ मिल करके आगे चले। देश की सामान्य मानव की आशा-आकांक्षाओं को पूर्ण करने में हम कहीं कमी न रखे।
इसी विश्वास के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रधानमंत्री ने 17वीं लोकसभा के पहले सत्र के शुरू होने से पहले संसद के बाहर मीडिया से कहा, ‘‘जब हम संसद आते हैं तो हमें पक्ष और विपक्ष को भूल जाना चाहिए। हमें निष्पक्ष भावना के साथ मुद्दों के बारे में सोचना चाहिए और राष्ट्र के व्यापक हित में काम करना चाहिए।’’
मोदी के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस ने भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार पर पिछले कार्यकाल में संसद को ‘रबड़ की मोहर’ की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए सोमवार को उम्मीद जतायी कि इस बार यह चलन बदलेगा तथा प्रमुख विधेयकों को बहुमत के दबाव में विधायी समीक्षा के बिना पारित नहीं किया जाएगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा, ‘‘लोकतंत्र में अध्यादेश के जरिये कानून बनाना बहुत अस्वस्थ परंपरा है। इसे केवल उन विरले मामलों में उपयोग करना चाहिए जहां आपात स्थिति हो। वरना सरकार को कानून बनाने की निर्धारित प्रक्रिया का इस्तेमाल करना चाहिए।’’
शर्मा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम इस बारे में प्रधानमंत्री के आश्वासन की प्रतीक्षा नहीं करेंगे। क्या पिछले पांच साल में जो चलन अपनाया गया उसे बदला जाएगा क्योंकि पिछले पांच साल में हमने जो देखा था वह संसद का असम्मान, जहां सरकार विधेयक लाती थी और लोकसभा में उसके भारी बहुमत के कारण, संसद के साथ एक रबड़ की मोहर की तरह व्यवहार किया जाता है।’’
उन्होंने कहा कि अधिकतर विधेयकों को विधायी समीक्षा के लिए स्थायी समिति के पास नहीं भेजा जाता था जो किसी भी कानून को बनाने के लिए महत्वपूर्ण है।
शर्मा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अब इस परंपरा का सम्मान किया जाएगा तथा इस सरकार द्वारा अध्यादेश पर निर्भरता और समीक्षा के बिना विधेयक को पारित करने के चलन को नहीं दोहराया जाएगा।
इससे पहले नवगठित सत्रहवीं लोकसभा के संबंध में मोदी ने कहा कि यह सत्र कई मायनों में ऐतिहासिक है। स्वतंत्रता के बाद से निचले सदन में सर्वाधिक महिला सांसद निर्वाचित हुई हैं।
मोदी ने कहा कि नये सदस्यों के लिए यह पहला सत्र है जो नयी ऊर्जा का संचार करेगा और जन आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सदन में नया उत्साह दिखाई देगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने पहले कार्यकाल में ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत पर काम किया और जनता ने दूसरे कार्यकाल के लिए विश्वास जताया। इसके परिणामस्वरूप कई दशक बाद स्पष्ट बहुमत के साथ कोई सरकार दोबारा चुनी गयी है।
545 सदस्यों वाली लोकसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के 353 सदस्य हैं जबकि भगवा पार्टी के सदस्यों की संख्या 303 है। कांग्रेस के पास 52 सीटें हैं जो सदन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है।
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