नयी दिल्ली, 08 जनवरी । सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों को शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी ऐतिहासिक 124 वें संविधान संशोधन विधेयक 2019 पर आज देर रात संसद की मुहर लग गयी।
राज्यसभा में इस विधेयक पर लगभग आठ घंटे तक चली चर्चा के बाद इसे सात के मुकाबले 165 मतों से पारित कर दिया गया। लोकसभा इसे कल ही पारित कर चुकी है।
सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी और विपक्ष के लगभग सभी दलों ने विधेयक का समर्थन किया लेकिन द्रमुक, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का प्रस्ताव किया जिसे 18 के मुकाबले 155 मतों से खारिज कर दिया गया। इसके साथ इन दलों विधेयक में पेश किये संशोधन के प्रस्ताव भी खारिज कर दिये गये।
कांग्रेस के साथ ही समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने विधेयक का समर्थन किया जबकि अन्नाद्रमुक, राष्ट्रीय जनता दल और आम आदमी पार्टी ने इसका विरोध किया।
चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि सरकार अच्छी मंशा से इस विधेयक को लायी है जिससे सामान्य वर्ग के लोगों को शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।
राज्यसभा अनिश्चित काल के लिए स्थगित:
राज्यसभा का 11 दिसंबर से प्रारंभ हुआ शीतकालीन सत्र बुधवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। उच्च सदन ने अंतिम बैठक में सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के एक ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया।
लोकसभा को कल ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया था। उच्च सदन की बैठक संविधान (124वां संशोधन) विधेयक को चर्चा कर पारित करने के लिए एक दिन के लिए बढ़ायी गयी।
संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के बाद राष्ट्रगीत की धुन बजाये जाने के पश्चात उपसभापति हरिवंश ने सदन की बैठक को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा की। इससे पहले उन्होंने अपने पारंपरिक संबोधन में सदन को बार बार बाधित करने की प्रवृत्ति पर चिंता जतायी। उन्होंने बताया कि हंगामे के कारण सदन के कामकाज में 78 घंटे का नुकसान हुआ। इस दौरान कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो सकी।
उच्च सदन का यह सत्र राफेल सौदे की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग, कावेरी नदी पर प्रस्तावित बांध का विरोध, आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने की मांग सहित विभिन्न मुद्दों पर हुए हंगामे के कारण अधिकतर बैठकों में बाधित रहा। पूरे सत्र के दौरान प्रश्नकाल और शून्यकाल भी एक-दो बैठक को छोड़कर सुचारू रूप से नहीं चल पाया।
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