इस्लामाबाद, 17 दिसंबर । पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ को यहां की एक विशेष अदालत ने संविधान बदलने के लिए देशद्रोह के मामले में मंगलवार को मौत की सजा सुनाई। वह पहले ऐसे सैन्य शासक हैं जिन्हें देश के अब तक के इतिहास में मौत की सजा सुनाई गई है।
पेशावर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वकार अहमद सेठ की अध्यक्षता में विशेष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने 76 वर्षीय मुशर्रफ को लंबे समय से चल रहे देशद्रोह के मामले में मौत की सजा सुनाई।
पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी सैन्य प्रमुख को देशद्रोही करार देकर मौत की सजा सुनाई गई है।
देशद्रोह के मामले में उन्हें दोषी ठहराना उस देश के लिए महत्वपूर्ण क्षण है जहां स्वतंत्र इतिहास में अधिकतर समय तक शक्तिशाली सेना काबिज रही है।
मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को 1999 में रक्तहीन तख्ता पलट में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था। वह 2001 से 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी रहे।
यह मामला 2007 में संविधान को निलंबित करने और देश में आपातकाल लगाने का है जो दंडनीय अपराध है और इस मामले में उनके खिलाफ 2014 में आरोप तय किए गए थे।
अदालत के दो न्यायाधीशों ने मौत की सजा सुनाई जबकि एक अन्य न्यायाधीश की राय अलग थी। इसके ब्योरे अगले 48 घंटों में सुनाए जाएंगे।
फैसला सुनाए जाने से पहले अदालत ने अभियोजकों की एक याचिका खारिज कर दी जिसमें फैसले को टालने की मांग की गई थी।
पूर्व सैन्य प्रमुख मार्च 2016 में इलाज के लिए दुबई गए थे और सुरक्षा एवं सेहत का हवाला देकर तब से वापस नहीं लौटे हैं।
विशेष अदालत में न्यायमूर्ति सेठ, सिंध उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नजर अकबर और लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शाहिद करीम शामिल हैं। अदालत ने 19 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
देशद्रोह कानून, 1973 के मुताबिक देशद्रोह के लिए मौत या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।
इस महीने की शुरुआत में स्वास्थ्य खराब होने के कारण मुशर्रफ को दुबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अपने अस्पताल के बिस्तर से वीडियो के माध्यम से बयान जारी कर उन्होंने देशद्रोह के मामले को ‘‘पूरी तरह निराधार’’ बताया।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने दस वर्षों तक अपने देश की सेवा की है। मैं अपने देश के लिए लड़ा। यह (देशद्रोह) मामला है जिसमें मेरी बात नहीं सुनी गई और मुझे प्रताड़ित किया गया।’’
खबरों में बताया गया है कि उनकी कानूनी टीम उच्चतम न्यायालय में फैसले को चुनौती देगी। अगर शीर्ष अदालत विशेष न्यायालय के फैसले को बरकरार रखती है तो अनुच्छेद 45 के तहत राष्ट्रपति के पास संवैधानिक अधिकार है कि वह मौत की सजा प्राप्त व्यक्ति को माफी दें।
विशेष अदालत का यह आदेश इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व के एक आदेश के बावजूद आया है जिसमें उसे फैसला देने से रोका गया था।
इस्लामाबाद उच्च न्यायालय का आदेश 27 नवंबर को आया था। इसके एक दिन बाद विशेष अदालत अपना फैसला सुनाने वाली थी।
मुशर्रफ ने शनिवार को अपने वकीलों के जरिए दायर आवेदन में लाहौर उच्च न्यायालय से विशेष अदालत में चल रहे मुकदमे पर तब तक रोक लगाने को कहा था जब तक कि उनकी पूर्व याचिका पर उच्च न्यायालय फैसला नहीं ले लेता।
उस याचिका में पूर्व तानाशाह ने इस मामले में मुकदमा चला रही विशेष अदालत के गठन और प्रक्रिया में हुई कानूनी खामियों को चुनौती दी थी।
इस बीच, विशेष अदालत के फैसले से कुछ देर पहले लाहौर उच्च न्यायालय ने मुकदमे पर रोक लगाने की मुशर्रफ की याचिका की सुनवाई पूर्ण पीठ से कराने की अनुशंसा की।