नयी दिल्ली ,23 जुलाई ।भारत ने कुलभूषण जाधव को राजनयिक संपर्क एवं न्यायिक अधिकार दिये जाने को लेकर पाकिस्तान की आनाकानी पर नाराजगी जाहिर की है और कहा है कि यह ना केवल अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है और भारत इसके विरुद्ध अपील के अधिकार का प्रयोग करेगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने यहां नियमित ब्रीफिंग में कहा कि भारत ने एक साल में कुलभूषण जाधव से राजनयिक संपर्क के लिए 12 बार अनुरोध किया और पाकिस्तान अब तक उनसे निर्बाध राजनयिक संपर्क नहीं सुलभ करा पाया है। 16 जुलाई को भारतीय राजनयिकों से जाधव की बैठक को पाकिस्तान सरकार ने बाधित किया और उन्हें जाधव को कोई भी दस्तावेज नहीं सौंपने का निर्देश दिया। इस कारण भारतीय राजनयिक जाधव से मुख्तारनामा (पावर ऑफ अटार्नी) हासिल नहीं कर पाये।
उन्होंने कहा कि भारत ने पाकिस्तान से श्री जाधव के मुकदमे के बारे में प्रासंगिक दस्तावेज मुहैया कराने का बार-बार अनुरोध किया। पाकिस्तान ने भारत से कहा कि दस्तावेज किसी अधिकृत पाकिस्तानी वकील को मुहैया कराये जा सकते हैं। इसलिए भारत ने दस्तावेज हासिल करने के लिए एक पाकिस्तानी वकील को अनुबंधित किया लेकिन हैरानी की बात रही कि पाकिस्तान सरकार ने उस पाकिस्तानी वकील को भी दस्तावेज देने से इन्कार कर दिया। इस सबके बावजूद भारत ने 18 जुलाई को अदालत में याचिका दायर करने की कोशिश की। पर पाकिस्तानी वकील से सूचित किया कि मुख्तारनामे एवं अन्य जरूरी दस्तावेजों के अभाव में पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की जा सकी।
प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान ने याचिका दायर करने की अंतिम तिथि के बारे में भी भ्रम फैलाया। पहले कहा कि मुकदमा दायर करने की आखिरी तारीख 19 जुलाई है। बाद में कहा कि मियाद 20 जुलाई को खत्म हो रही है। अध्यादेश में खामियों को लेकर भारत ने पहले ही जून में अपनी चिंताएं साझा की थीं। पाकिस्तान ने बार बार अनुरोध के बाद भारत को अध्यादेश के बारे में दो सप्ताह बाद जानकारी दी और प्रति साझा की। भारत ने पाकिस्तान को बताया कि उसका अध्यादेश अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के आदेश के अनुरूप नहीं है।
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि पाकिस्तान का रवैया गंभीर नहीं है और वह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के आदेश को क्रियान्वित नहीं करना चाहता है। उसने भारत को उपलब्ध न्याय के सभी रास्ते बंद कर दिये। यह पूरी कवायद पाकिस्तान के फर्जीवाड़े को उजागर करती है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप राहत देने में पूरी तरह से विफल रहा है और भारत इस मामले में न्याय पाने के अपने अधिकारों का प्रयोग करेगा।