नयी दिल्ली ,20 अप्रैल ।पाकिस्तान में कोविड 19 के मामले और मौत के आंकड़े जानबूझ कम करके दिखाये जा रहे हैं ताकि उसके सदाबहार दोस्त और चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की छवि खराब नहीं हो जाे देश में कोरोना संक्रमण के प्रसार का मुख्य स्रोत है।
इस विपदा की घड़ी में पाकिस्तान एक ऐसे समाज की तस्वीर पेश करता है जिसकी कमान एक खुदग़र्ज़ अमीर कौम है, गंवार जनता है और उस पर जिहादी मानसिकता के साथ खुफिया तंत्र का नियंत्रण है तथा इस महामारी के कमजोर पड़ते ही वह देश पर अधिक मजबूत शिकंजा जमा सके।
विगत तीन अप्रैल को प्रकाशित सुश्री मिया ब्लूम के एक लेख में आईएसआईएस के साप्ताहिक प्रकाशन अल नबा के हवाले से बताया गया है कि खूंखार इस्लामिक खिलाफत आंदोलन आईएसआईएस कोविड 19 काे जिहाद आगे बढ़ाने के औज़ार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है।
कोविड 19 से पाकिस्तान की ओर से मुकाबला कर रहे मेडिकल स्टॉफ पर्याप्त पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) किट उपलब्ध नहीं होने के कारण हताश है। कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि पंजाब और बलूचिस्तान में कई डॉक्टर भी इस घातक विषाणु की चपेट में आ गये हैं। सिंध प्रांत में विभिन्न अस्पतालों में लोग इलाज कराने कम और लाशें ज़्यादा आ रहीं हैं। लेकिन इसको जानबूझ कर छिपाया जा रहा है।
बीबीसी के संवाददाता इलियास खान ने पाकिस्तान मेडिकल एसोसिएशन के हवाले से राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों और नौकरशाहाें पर एन95 मास्क की जमाखाेरी करने के लिए आलोचना की और कहा कि स्वास्थ्य अधिकारी मास्क की भारी कमी अनुभव कर रहे हैं। इसके विरोध में प्रदर्शन करने वाले डॉक्टरों पर पुलिस के अत्याचार की खबरें पाकिस्तान के कोने कोने से आ रहीं हैं।
पाकिस्तान की सर्वशक्तिमान सेना भी कोविड 19 को अपने लिये एक अवसर के रूप में देख रही है। बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट के नेता अल्लाह निज़ार बलूच ने बताया कि पाकिस्तानी सेना द्वारा संचालित ताफ्तान क्वारेंटाइन केन्द्र का बलूचिस्तान पर शिकंजा मजबूत करने की साजिश में किस तरह से उपयोग किया जा रहा है। पाकिस्तानी सेना ने केन्द्र एवं प्रांतीय सरकारों के बीच समन्वय का जिम्मा संभालने के नाम पर पाकिस्तान में आने वाले धन पर पकड़ भी सशक्त बना ली है।
इंटर सर्विस इंटेलीजेंस (आईएसआई) के आतंकी एजेंडे का खुलासा गत सप्ताह हुआ जब नियंत्रण रेखा पर जिहादियों को जबरन घुसपैठ कराने के प्रयास सामने आये। बीते कई साल से फैलायी जा रही कट्टरपंथी सोच का परिणाम ये है कि मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने के निषेधाज्ञा का बड़े पैमाने पर उल्लंघन किया जा रहा है।
पाकिस्तान में गैरसरकारी संगठनों के साये में कार्यरत अतिराष्ट्रवादी प्रवृत्तियां भी जिहादियों को प्रोत्साहित कर रहीं हैं। इन सबका परिणाम यह है कि इस मानवीय संकट के दौर में भी पाकिस्तान में गैर इस्लामिक मज़हब वाले अल्पसंख्यकों को क्रूर दमन का शिकार होना पड़ रहा है।
पाकिस्तान के अंदर से उठने वाली इन रिपोर्टों की अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने पुष्टि की है और संकेत दिये हैं कि पाकिस्तानी गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) धर्म एवं जातीय आधार पर भूखे को भोजन की प्राथमिकता तय कर रहे हैं।
अनेक रिपोर्टों में कहा गया है कि हिन्दुओं एवं ईसाइयों काे बलात् धर्मपरिवर्तन और ईशनिंदा कानून का शिकार बनाया जा रहा है और साथ ही उन्हें जिहादी समाज खाना भी नहीं दे रहा है।
पाकिस्तान सरकार और सेना पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) के नागरिकों की ओर देख तक नहीं रही है और एहसास कार्यक्रम के तहत 12 हजार रुपये की सहायता के वादे से पीओके के नागरिकों को महरूम रखा गया है।
गत 12 अप्रैल को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने विश्व समुदाय से गरीब पाकिस्तानी अवाम के लिए आठ अरब डॉलर की वित्तीय सहायता की अपील की थी। प्रधानमंत्री के बेअदब रवैये और पैसे को लेकर मायूसी से संकेत मिलते हैं कि उनकी मानसिक दक्षता कमजोर हुई है और कोविड संकट छंटने के बाद उनकी किस्मत की परीक्षा होगी।
मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलते हैं कि पाकिस्तानी व्यापार समुदाय भी सरकार को आंखें दिखाने लगा है। रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान में 30 अप्रैल तक लॉकडाउन बढ़ाये जाने के बाद तीन बड़े प्रांतों के व्यापारियों ने लॉकडाउन काे तोड़कर अपना कारोबार शुरू करने की घोषणा की है।
इस बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2020 के लिए पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद की दर का अनुमान घटा कर ऋणात्मक डेढ़ प्रतिशत कर दिया है और पाकिस्तान के सदाबहार दोस्त चीन ने अभी तक अपने मित्र को कोई राहत देने की घोषणा नहीं की है।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति अल्वी ने गत माह उनकी चीन की यात्रा के दौरान वित्तीय मदद की मांग की थी लेकिन चीन ने इस पर कोई तवज्जो नहीं दी। बताया गया है कि श्री खान ने चीन को बता दिया है कि पाकिस्तान को उसके कर्ज की अदायगी के लिए 19 खरब रुपये की सालाना किश्त बहुत ज्यादा है और पाकिस्तान केवल छह खरब रुपये ही दे सकता है।
पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा और उनके जिहादी गिरोह कोरोना वायरस के संकट को अपनी साजिशों को अंजाम देने के रूप में देख रहे हैं और वे कोविड पॉज़िटिव रोगी जिहादियों को जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पार करके भारत में भेजने के लिए अवसर तलाश रहे हैं।
पाकिस्तानी उलेमा ने एलान किया था कि 17 अप्रैल को जुमे की नमाज़ पर प्रतिबंधों का कोई असर नहीं होगा। पाकिस्तान में बहुत साफ हो गया है कि पाकिस्तान की सेना, राजनीतिक वर्ग और नौकरशाही ने कोविड संकट पर गंभीरता दिखाई है लेकिन मजहबी चरमपंथियों ने सरकार के प्रयासों में मट्ठा डालने का काम किया है।
गत नौ अप्रैल को लंदन से इस्लामाबाद तक अतिविशिष्ट लोगों को लंदन लाने के लिए एक विशेष विमान परिचालित किया गया। इसी से पाकिस्तान की अभिजात्य मानसिकता का पता चलता है। कोविड संकट से निपटने में पाकिस्तान की विफलता का भारत पर असर पड़ना लाजिमी है लेकिन पाकिस्तान में पर्दे के पीछे विकराल रूप ले रही इस विपदा का समूची मानव जाति पर गहरा प्रभाव पड़ना तय है।