नयी दिल्ली 07 अप्रैल । लजीज व्यंजनों, सकरी गलियों और मुगलकालीन कई राष्ट्रीय धरोहरों को अपने आंचल में संजोये चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र कभी भी किसी राजनीतिक दल का गढ़ नहीं बना हालांकि कांग्रेस ने यहां नौ बार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चार बार अपनी विजय पताका फहरायी।
पहले चांदनी चौक सीट की पहचान सामान्यत: पुरानी दिल्ली के रूप में ही थी। दिल्ली में आबादी बढ़ने के साथ-साथ इसका स्वरूप और आकार बदलता चला गया। सकरी गलियों के लिए मशहूर चांदनी चौक के संसदीय क्षेत्र में अब कई पाॅश कालोनियां भी शामिल हो गई हैं। किराना, कपड़ा, बिजली और दवाइयों के थोक बाजार के लिए पूरे भारत में पहचान रखने वाले इस संसदीय क्षेत्र में पहले मुस्लिम और वैश्य समुदाय का चुनाव परिणामों में खासा प्रभाव रखता था किंतु आबादी बढ़ने के बाद वोटरों की संख्या लाखों में पहुंच जाने से अब वह बात नहीं रही।
इस संसदीय सीट ने कई केंद्रीय मंत्री भी दिए जिनमें केंद्र की वर्तमान मोदी सरकार में हर्षवर्धन के अलावा कांग्रेस के कपिल सिब्बल, लोकदल के सिकंदर बख्त और भाजपा के विजय गोयल शामिल हैं। वर्ष 1991 और 1999 के आम चुनाव में यहां हार जीत का अंतर बहुत कम रहा था ।
वर्ष 1956 में अस्तित्व में आने के बाद 1957 से 2014 के बीच हुए आम चुनाव में यहां नौ बार कांग्रेस, चार बार भाजपा, एक- एक बार भारतीय जनसंघ और भारतीय लोकदल का प्रतिनिधि इस सीट से लोकसभा में पहुंचा।
वर्ष 1957 में पहले आम चुनाव में कांग्रेस के राधा मोहन ने भारतीय जनसंघ के बंसत राव को हराया था। इस चुनाव से लेकर 1967 तक लोकसभा चुनाव में विजयी उम्मीदवार को मिले कुल मतों की संख्या हजारों में ही रहती थी किंतु बाद में मतदाताओं की संख्या बढ़ने से जीत हार का अंतर लाखों में होने लगा।
दिल्ली में पहले विधानसभा नहीं थी। वर्ष 1966 से 1993 तक हुए आम चुनाव में महानगर परिषद के सिविल लाइन, चांदनी चौक, बल्लीमरान, अजमेरी गेट, कूचा पाती राम, मटिया महल , पहाड़गंज और कसाबपुरा इस संसदीय सीट के दायरे में आते थे। वर्ष 1993 में दिल्ली में विधानसभा बनी और 2008 तक इस संसदीय सीट के चुनाव में पहाड़गंज, मटिया महल, बल्लीमरान, चांदनी चौक, मिंटो रोड और राम नगर विधानसभा क्षेत्र के मतदाता लोकसभा के लिए अपना सांसद चुनते थे।
वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद 2009 के आम चुनाव में इस संसदीय सीट के दायरे में दस विधानसभा आदर्श नगर, शालीमार बाग, शकूर बस्ती, त्रिनगर, वजीरपुर, माडल टाउन , सदर बाजार , चांदनी चौक, मटिया महल और बल्लीमरान आ गए।
वर्ष 2009 तक हुए आम चुनाव में इस संसदीय सीट पर मुख्य रुप से कांग्रेस और भाजपा में जोर आजमाइश होती थी लेकिन आम आदमी पार्टी(आप) के पार्दुभाव के बाद 2014 के चुनाव में भाजपा को जीत मिली तो कांग्रेस तीसरे स्थान खिसक गई।
सत्रहवीं लोकसभा के लिए 12 मई को होने वाले मतदान के लिए अभी दोनों बड़े राष्ट्रीय राजनीतिक दलों कांग्रेस और भाजपा ने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है, किंत आप ने पंकज गुप्ता को मैदान में उतार कर चुनाव प्रचार शुरु कर दिया है।
इस संसदीय सीट के इतिहास पर नजर डालें तो 1957 के चुनाव में कांग्रेस के राधा मोहन ने 50758 मत हासिल कर भारतीय जनसंघ उम्मीदवार बंसत राव (40560) को पटखनी दी। वर्ष 1962 में कांग्रेस ने फिर बाजी मारी और इस बार शामनाथ (69508) ने जनसंघ के अमृतलाल जिंदल (40560) को हराया। वर्ष 1967 के चुनाव में शामनाथ अपनी सीट बचा नहीं पाये और भारतीय जनसंघ के रामगोपाल शालवाले (58928) से हार गये। शामनाथ को 41778 वोट मिले। रामगोपाल शाल वाले 1971 के चुनाव में कांग्रेस की सुभद्रा जोशी से हार गए ।
देश में आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में भारतीय लोक दल के सिकंदर बख्त ने सुभद्रा जोशी को एक लाख 15 हजार 589 मतों के बड़े अंतर से हराया। श्री बख्त को इस चुनाव में एक लाख 85 हजार 850 मत हासिल किए और सुश्री जोशी केवल 69 हजार 861 मत ही हासिल कर पाई। वर्ष 1980 के आम चुनाव कांग्रेस में विभाजन के बाद हुआ। भीखूराम जैन ने कांग्रेस(इंदिरा) के टिकट पर चुनाव लड़ा और सिकंदर बख्त (जेएनपी) को पटकनी दी। वर्ष 1984 के आम चुनाव में श्री बख्त एक बार फिर मैदान में थे और भाजपा के टिकट पर लड़े किंतु कांग्रेस के जयप्रकाश अग्रवाल के हाथों पराजय झेलनी पड़ी।
श्री अग्रवाल ने 1989 में अपनी सीट बचाते हुए भाजपा के सतीश चंद्र खंडेलवाल को हराया लेकिन 1991 के चुनाव में भाजपा के ताराचंद खंडेलवाल ने उन्हें पराजित कर दिया । वर्ष 1996 के चुनाव में जय प्रकाश अग्रवाल फिर कांग्रेस के टिकट पर विजयी हुए और भाजपा के जे के जैन को हराया । इसके बाद हुए दो चुनाव में जयप्रकाश अग्रवाल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और उन्हें भाजपा के विजय गोयल से शिकस्त झेलनी पड़ी। श्री गोयल ने 1998 और 1999 के चुनाव में भाजपा की झोली में यह सीट डाली ।
कांग्रेस ने 2004 और 2009 के चुनाव में यहां तेज तर्रार वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को मैदान में उतारा । वर्ष 2004 के चुनाव श्री सिब्बल ने भाजपा के टिकट पर लड़ी स्मृति ईरानी को हराया तो 2009 में भाजपा के विजेंद्र गुप्ता को शिकस्त दी किंतु 2014 के चुनाव में उन्हें क्षेत्र के मतदाताओं ने पसंद नहीं किया। भाजपा ने इस सीट से हर्षवर्धन को उतारा। पहली बार दिल्ली में हुए त्रिकोणीय चुनाव में कांग्रेस को बड़ा धक्का लगा। डा. हर्षवर्धन ने 437938 मत हासिल कर विजयी हुये । दूसरे स्थान पर रहे आप के आशुतोष (301618) को एक लाख 36 हजार 320 मतों से पराजित किया। श्री सिब्बल एक लाख 76 हजार 206 मत हासिल कर तीसरे स्थान पर बुरी हार का सामना करना पड़ा ।
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