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नेपाल बिना प्रमाण दिये,ऐतिहासिक तथ्यों को छुपाकर चीन के इशारों पर भारत की जमीन हड़पने की चली चाल में खुद ही उलझा attacknews.in

नयी दिल्ली, 15 जून ।भारत का कहना है कि उसके पास उत्तराखंड में लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख के क्षेत्र पर भारतीय अधिकार के ऐतिहासिक एवं पुख्ता प्रमाण हैं और उसे लगता है कि नेपाल की वर्तमान सरकार किसी राजनीतिक मंशा के मद्देनज़र अजीबोगरीब ढंग से व्यवहार कर रही है।

नेपाल में संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में उक्त क्षेत्र को नेपाली भूभाग के रूप में दर्शाने वाले नये मानचित्र को अंगीकार करने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद स्थिति के बारे में पूछे जाने पर सूत्रों ने कहा कि भारत और नेपाल के बीच करीब 1750 किलोमीटर की सीमा पर 98 प्रतिशत सीमा का आपसी सहमति से सीमांकन हो चुका है। बिहार में सुस्ता क्षेत्र और उत्तराखंड में कालापानी क्षेत्र को लेकर करीब दो प्रतिशत यानी लगभग 35-36 किलोमीटर की सीमा को सुलझाना बाकी है। इसे लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है।

सूत्रों ने कहा कि 1997-98 में और फिर 2014 में दोनों देशों के बीच इस बारे में बातचीत हुई थी। वर्ष 2019 में भारत सरकार ने नेपाल को इस बारे में बातचीत करने का प्रस्ताव किया था लेकिन काठमांडू से कोई जवाब नहीं आया। अभी भी इस विषय पर भारत की ओर से बात करने की मंशा व्यक्त की गयी लेकिन काठमांडू से उत्तर नहीं मिला।

सूत्रों ने जोर देकर कहा कि भारत ने नेपाल से सीमा अथवा किसी भी अन्य मसले पर बातचीत से कभी इन्कार नहीं किया। सूत्रों ने हैरानी जतायी कि नेपाली प्रतिनिधि सभा में वहां की वर्तमान सरकार ने भारत की ओर से बातचीत का प्रस्ताव आने की जानकारी क्यों नहीं दी गयी।

सूत्रों ने कहा कि नेपाल सरकार 1816 में तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल की सरकार और नेपाल के राजशाही सरकार के बीच हुई सुगौली संधि की बात तो कह रही है लेकिन यह नहीं बता रही है कि 1817 में ब्रिटिश गवर्नर जनरल के समक्ष चार गांवों -कुथी, नाबी, पिंगर और चांगरू के नेपाली भूभाग होने का दावा किया गया था जिस पर गवर्नर जनरल ने नाबी और कुथी को काली नदी के पश्चिम में होने के कारण भारत का हिस्सा बताया था और इन दो गांवों पर नेपाल के दावे काे खारिज कर दिया था। बाकी दो गांव नेपाल को दे दिये थे। इस प्रकार से सीमा के सुगौली संधि के कारण किसी भी भ्रम को उसी समय दूर कर दिया गया था।

सूत्रों ने अनुसार इसके बाद 1817 और 1818 में हिमायलन गजेटियर में ब्रिटिश भारतीय शासन ने इस बारे में आधिकारिक घोषणा भी कर दी थी। काली नदी के उद्गम के बारे में भी हिमालयन गजेटियर में स्पष्ट कर दिया गया था। बाद में प्रकाशित कुमाऊं के मानचित्र में भी यह स्पष्ट किया गया। बाद में नेपाल चीन के बीच 1961 की सीमा संधि हुई तथा 1963 और 1979 के सीमा प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये गये। जब 1979 के प्रोटोकॉल में नेपाल चीन के बीच सीमा को टिंकर लिपु से बदलकर लिपुलेख के पास लाये जाने का उल्लेख किया गया तो भारत ने उस पर कड़ा विरोध जताया था। आज भी टिंकर लिपु पर नेपाल एवं चीन की सीमा स्तंभ संख्या एक लगा हुआ है। यानी स्पष्ट है कि नेपाल एवं चीन की सीमा की शुरुआत लिपुलेख से नहीं बल्कि टिंकर लिपु से होती है तथा लिंपियाधुरा या लिपुलेख उसकी सीमा में नहीं आते हैं।

सूत्रों ने कहा कि लिपुलेख कैलास मानसरोवर यात्रा का मार्ग सदियों से रहा है। नेपाल की ओर से इससे पहले कभी कोई आपत्ति नहीं जतायी गयी। लिंपियाधुरा पर नेपाल ने 200 साल में पहली बार दावा किया है। नेपाल की सरकार द्वारा जताये जा रहे ऐतराज के बिन्दुओं के बारे में सूत्रों ने कहा कि पिछले वर्ष जम्मू कश्मीर के विभाजन के बाद प्रकाशित मानचित्र में नेपाल की सीमा पर ज़रा भी बदलाव नहीं किया था। लिपुलेख दर्रे तक यात्रियों की सुविधा के लिए सड़क बहुत वर्षों से बन रही थी। जब उसका उद्घाटन होता है तो अचानक नेपाल की तीखी प्रतिक्रिया आती है। नेपाल के मंत्रिमंडल से नये मानचित्र को मंजूर कराके संसद के निचले सदन में संविधान संशोधन पारित करा लिया। पर नेपाल सरकार ने भारत सरकार से बात करने की जरूरत नहीं समझी और भारत की पेशकश का जवाब तक नहीं दिया गया।

सूत्रों ने कहा कि इस कदम के पीछे नेपाल की वर्तमान सरकार के राजनीतिक स्वार्थ हैं और इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि संसद के निचले सदन से संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने के साथ नेपाल सरकार ने एक नौ सदस्यीय समिति गठित की है जो लिंपियाधुरा, कालापानी एवं लिपुलेख पर नेपाल के दावे के समर्थन में साक्ष्य जुटाएगी।

सूत्रों ने कहा कि नेपाल के कई हलकों में सरकार के इस निर्णय पर हैरानी व्यक्त की गयी है। सरकार की मंशा पर लोग सवाल उठा रहे हैं। नेपाल के अजीबोगरीब व्यवहार से सभी हैरान हैं।

नेपाल द्वारा सीमा विवाद उठाये जाने के पीछे चीन की शह होने संबंधी सवाल पर सूत्रों ने सीधा जवाब नहीं दिया। नेपाल के अगले कदम के बारे में सवालों पर उन्होंने कहा कि यह नेपाल की सरकार को ही तय करना है कि वह कैसे आगे बढ़ेगी।

सूत्रों ने कहा कि भारत एवं नेपाल के बीच अद्वितीय संबंध हैं। दोनों देशों के लाेगों के बीच सांस्कृतिक एवं सामाजिक संबंध इसे खास बनाते हैं। नेपाल में भारत अनेक विकास परियोजनाओं में योगदान दे रहा है। ये परियोजनाएं अनवरत चल रहीं हैं। कोविड-19 के संकट के समय भी भारत ने दवायें, टेस्ट किट आदि के रूप में करोड़ाें रुपए की मदद दी है। विदेशों में फंसे नेपाली नागरिकों को स्वदेश पहुंचाने में मदद दी है। ऐसी मदद आगे भी जारी रहेगी।

एक सवाल के जवाब में सूत्रों ने बताया कि काठमांडू से रक्सौल के बीच रेलवे लाइन बिछाने के लिए प्रारंभिक सर्वेक्षण पूरा हो चुका है और अब इंजीनियरिंग सर्वेक्षण चल रहा है और इसके बाद विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यह काम अपनी समय सीमा के अनुसार ही सामान्य गति से चल रहा है।

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