भोपाल 29 अक्टूबर । भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल अपनी मनमानी कार्यप्रणाली से विगत कई वर्षों से सुर्खियों में बने रहने वाला प्रदेश का प्रमुख विश्वविद्यालय बन गया है। नियमित कुलपति की नियुक्ति नहीं होने से वर्तमान में यह विश्वविद्यालय मनमानी और तानाशाह कार्यप्रणाली के कारण चर्चित हो गया है।
इसकी कार्यप्रणाली से परेशान होकर प्रदेश सरकार ने भोज विश्वविद्यालय में 18 मार्च 2017 को धारा 33 को प्रभावशील करते हुये तत्कालीन कुलपति डॉ तारिक जफर पर आर्थिक अनियमितता एवं प्रशासनिक विफलता का आरोप लगाते हुए हटा दिया।
धारा 33 लागू होने के बाद डॉ रविन्द्र आर.कान्हेरे, परीक्षा नियंत्रक म.प्र. लोक सेवा आयोग, इंदौर को भोज विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया।
माना जाता है कि सहायक प्राध्यापक डॉ कान्हेरे आरएसएस के काफी करीबी है और इसी कारण से विगत कई वर्षों से परीक्षा नियंत्रक कार्य सम्हालते रहे है।
18 मार्च 2017 ने डॉ रविन्द्र आर कान्हेरे भोज विश्वविद्यालय के कुलपति कार्यभार देख रहे है किंतु इनकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगना शुरू हो गए है क्योंकि इन्होंने अपने मनमाने रवैये से नियमो को ताक में रखकर कार्यों को अपनी शैली से करना शुरू कर दिया है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार है-
1 – विश्वविद्यालय में निदेशकों के रिक्त पदों पर अपने मन पसंद सहायक प्राध्यापकों की प्रतिनियुक्तिया उच्च शिक्षा विभाग से करवाई गई। जबकि निदेशक के पदों पर आचार्य या प्राध्यापक की प्रतिनियुक्तिया होनी थी।
2 डॉ शरद भदौरिया, सहायक प्राध्यापक को आई.टी.विभाग का निदेशक नियुक्त कर विश्वविद्यालय की प्रत्येक समिति में सम्मिलित किया जाता है।
डॉ भदौरिया अपने तीखे तेवरों और उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया के करीबी होने के कारण अध्ययन केंद्रों, कर्मचारियों एवं अधिकारियों को धौंस डपट कर रहे हैं और अब इनके ऊपर लेनदेन के आरोप लगना भी शुरू हो गए है।
3 डॉ अनिल भार्गव, उपक्षेत्रीय केंद्राध्यक्ष, भोपाल के विरुद्ध लोकायुक्त प्रकरण दर्ज होने के बाद उच्च शिक्षा विभाग एवं राजभवन द्वारा कार्यवाही के सीधे निर्देश दिए जाने के बाद भी कार्यवाही न करते हुवे ताजपोशी की जा रही है।
4 अशासकीय शालाओं एवं संस्थाओ में भोज के नवीन अध्ययन केंद्रों की स्थापना की जा कर खुला भ्रष्टाचार किये जाने की बातें आ रही है। जबकि पूर्व कुलपतियों द्वारा अशासकीय शालाओ एवं संस्थाओ में फर्जीवाड़े को लेकर अध्ययन केंद्र बन्द करने एवं नवीन प्रारंभ नही किये जाने के निर्देश दिए थे।
5 सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में अध्ययन प्रारंभ करने के नाम पर विश्वविद्यालय द्वारा 1 लाख रुपये की राशि सांसद/विधायक निधि से ली गई किन्तु विगत 25 वर्षो में एक भी अध्ययन केंद्र को सुविधाओं से सम्पन्न नही किया गया।
6. विगत 8 माह से परीक्षा समिति में रखे गए सेकड़ो प्रकरणों का निराकरण नही किया गया। साथ ही डॉ भदौरिया समिति सदस्य द्वारा मूल्यांकनकर्ता के विरुद्ध प्रकरण दर्ज करने एवं आपत्तिजनक शब्दो का उपयोग करते हुवे धमकाया जा रहा है।
7. शिकायत, सी एम हेल्पलाइन, सूचना का अधिकार एवं लोकसेवा गारंटी जैसी शासन की सेवाओं का कार्य तय समय सीमा में पूर्ण नही किया जा रहा है।
8. शासकीय राजीव गांधी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मंदसौर द्वारा विगत 10 वर्षों से भोज के छात्रों से लाखों रुपये वसूली कि जा रही है जिसकी शिकायत विगत 3 माह से पेंडिग पड़ी है। उल्टा मन्दसौर महाविद्यालय को क्षेत्रीय केंद्र बना दिया गया ।