मुंबई 23 दिसंबर । आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी को पार्श्वगायन करने की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी।
पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार मे जन्मे रफी एक फकीर के गीतों को सुना करते थे जिससे उनके दिल में संगीत के प्रति एक अटूट लगाव पैदा हो गया। रफी के बड़े
भाई हमीद ने मोहम्मद रफी के मन मे संगीत के प्रति बढ़ते रूझान को पहचान लिया था और उन्हें इस राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
लाहौर में रफी संगीत की शिक्षा उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से लेने लगे और साथ हीं उन्होंने गुलाम अलीखान से भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीखना शुरू कर दिया। एक बार हमीद रफी को लेकर के.एल.सहगल के संगीत कार्यक्रम में गये लेकिन बिजली नहीं रहने के कारण के.एल.सहगल ने गाने से इंकार कर दिया। हमीद ने कार्यक्रम के संचालक से गुजारिश की वह उनके भाई रफी को गाने का मौका दें। संचालक के राजी होने पर रफी ने पहली बार 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत स्टेज पर दर्शकों के बीच पेश किया । दर्शकों के बीच बैठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना अच्छा लगा और उन्होंने रफी को मुंबई आने के लिये न्योता दिया।श्याम सुदंर के संगीत निर्देशन में रफी ने अपना पहला गाना ..सोनिये नी हिरीये नी..पार्श्वगायिका जीनत बेगम के साथ एक पंजाबी फिल्म ..गुल बलोच ..के लिये गाया। वर्ष 1944 में नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्हें अपना पहला हिन्दी गाना हिन्दुस्तान के हम है ..पहले आप ..के लिये गाया ।
वर्ष 1949 में नौशाद के संगीत निर्देशन में दुलारी फिल्म में गाये गीत ..सुहानी रात ढल चुकी .. के जरिये वह सफलता की उंचाईयों पर पहुंच गये और इसके बाद उन्होनें पीछे मुड़कर नही देखा। दिलीप कुमार देवानंद .शम्मी कपूर.राजेन्द्र कुमार .शशि कपूर.राजकुमार जैसे नामचीन नायकों की आवाज कहे जाने वाले रफी अपने संपूर्ण सिने कैरियर मे लगभग 700 फिल्मों के लिये 26000 से भी ज्यादा गीत गाये।
मोहम्मद रफी फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वाभाव के कारण जाने जाते थे लेकिन एक बार उनकी कोकिल कंठ लता मंगेश्कर के साथ अनबन हो गयी थी। मोहम्मद रफी ने लता मंगेशकर के साथ सैकड़ों गीत गाये थे लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब रफी ने लता से बातचीत तक करनी बंद कर दी थी । लता मंगेशकर गानों पर रॉयल्टी की पक्षधर थीं जबकि रफी ने कभी भी रॉयल्टी की मांग नहीं की।
रफी साहब मानते थे कि एक बार जब निर्माताओं ने गाने के पैसे दे दिए तो फिर रॉयल्टी किस बात की मांगी जाए। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनों ने एक साथ गीत गाने से इंकार कर दिया हालांकि चार वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रयास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में .दिल पुकारे . गीत गाया। मोहम्मद रफी ने हिन्दी फिल्मों के अलावा मराठी और तेलगू फिल्मों के लिये भी गाने गाये। मोहम्मद रफी अपने करियर में छह बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किये गये। वर्ष 1965 में रफी पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये।
मोहम्मद रफी बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े प्रशंसक थे। वह फिल्म देखने के शौकीन नहीं थे लेकिन कभी-कभी वह फिल्म देख लिया करते थे। एक बार रफी ने अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार देखी थी। दीवार देखने के बाद रफी .अमिताभ के बहुत बड़े प्रशंसक बन गये। वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म नसीब में रफी को अमिताभ के साथ युगल गीत..चल चल मेरे भाई..गाने का अवसर मिला। अमिताभ के साथ इस गीत को गाने के बाद रफी बेहद खुश हुये थे। जब रफी साहब अपने घर पहुंचे तो उन्होंने अपने परिवार के लोगों को अपने पसंदीदा अभिनेता अमिताभ के साथ गाने की बात को खुश होते हुये बताया था। अमिताभ के अलावा रफी को शम्मी कपूर और धर्मेन्द्र की फिल्में भी बेहद पसंद आती थी। मोहम्मद रफी को अमिताभ-धर्मेन्द्र की फिल्म शोले बेहद पंसद थी और उन्होंने इसे तीन बार देखा था।
30 जुलाई 1980 को ..आस पास ..फिल्म के गाने ..शाम क्यू उदास है दोस्त ..गाने के पूरा करने के बाद जब रफी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से कहा ..शुड आई लीव.. जिसे सुनकर लक्ष्मीकांत प्यारे लाल अचंभित हो गये क्योंकि इसके पहले रफी ने उनसे कभी इस तरह की बात नहीं की थी। अगले दिन 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया से चल बसे ।
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