नयी दिल्ली, 26 सितंबर । घोटालों के आरोप झेल रही मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया(एमसीआई) के संचालन के लिए प्रतिष्ठित पेशेवरों की एक समिति के गठन के संबंध में एक अध्यादेश बुधवार को लाया गया। यह व्यवस्था तब तक के लिए है जब तक इस इकाई के स्थान पर नए आयोग के गठन को मंजूरी देने वाला विधेयक संसद से पारित नहीं हो जाता।
एमसीआई के स्थान पर राष्ट्रीय मेडिकल आयोग का गठन संबंधी विधेयक संसद में लंबित है।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने संवाददाताओं से कहा कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने आज सुबह अध्यादेश को मंजूरी दी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसे मंजूरी दे दी है।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार अध्यादेश एमसीआई का स्थान लेगा और परिषद की शक्तियां बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) में निहित होंगी।
बीओजी परिषद का गठन होने तक काम करेगा। इससे पहले 2010 में भी बोर्ड ऑफ गवर्नर्स नियुक्त किए गए थे।
गौरतलब है कि एमसीआई के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप और मेडिकल कॉलेजों को अपारदर्शी तरीके से मान्यता देने के मामले की जांच के बीच उच्चतम न्यायालय ने मई 2016 में सरकार को एक निगरानी समिति बनाने के निर्देश दिए थे, जिसके पास नए विधेयक के पारित होने तक एमसीआई का कामकाज देखने का अधिकार होगा।
एमआईएसी के अनेक सदस्यों पर रिश्वत लेने के आरोप हैं।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पहले पैनल का एक वर्ष का समय पूरा होने पर उच्चतम न्यायालय की अनुमति से 2017 में दूसरी निगरानी समिति का गठन किया गया था।
दूसरी समिति की अध्यक्षता डॉ वीके पॉल ने की थी और इसमें एम्स (दिल्ली),पीजीआई चंडीगढ़ और निमहांस के प्रमुख चिकित्सक शामिल थे।
इस वर्ष जुलाई में इस समिति ने ‘‘एमसीआई द्वारा उनके निर्देशों का पालन नहीं किए जाने ’’का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया था। समिति ने यह भी कहा कि एमसीआई ने उसके अधिकार को भी चुनौती दी है।
सूत्रों ने बताया कि ऐसे परिदृष्य में जहां उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित पैनल काम नहीं कर पा रहा है और एमसीआई का स्थान लेने वाला विधेयक लंबित है ऐसे में खास ‘‘त्वरित कदम’’ उठाने की जरूरत है।
इस बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में नीति आयोग के सदस्य डॉ वी के पॉल, एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया सहित अनेक अस्पतालों के चिकित्सक शामिल होंगे।
ये सभी दूसरी निगरानी समिति के सदस्य थे।attacknews.in