मुम्बई, 14 जून । बंबई उच्च न्यायालय ने 2006 के मालेगांव धमाके मामले के चार आरोपियों को शुक्रवार को जमानत दे दी।
अदालत ने कहा कि मामले में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा नौ अन्य लोगों के खिलाफ एकत्रित किए गए दोष सिद्धी साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए जमानत याचिकाओं पर फैसला लिया गया।
न्यायमूर्ति आई.ए. महंती और न्यायमूर्ति ए. एम. बदर की एक खंडपीठ ने धन सिंह, लोकेश शर्मा, मनोहर नरवारिया और राजेन्द्र चौधरी को जमानत दे दी।
पीठ ने कहा, ‘‘ याचिकाएं मंजूर की जाती हैं। याचिकाकर्ताओं को 50,000 रुपए नकद पर जमानत दी जाती है। सुनवाई के दौरान उन्हें हर दिन विशेष अदालत में पेश होना होगा और वे सबूतों से छेड़छाड़ या चश्मदीदों से कोई सम्पर्क ना करें।’’
गिरफ्तारी के बाद 2013 से जेल में बंद चारों आरोपियों ने विशेष अदालत के जून 2016 में उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद उसी साल उच्च न्यायालय का रुख किया था।
नासिक के नजदीक मालेगांव में हमीदिया मस्जिद के पास स्थित कब्रिस्तान के बाहर आठ सितम्बर 2006 को सिलसिलेवार धमाके हुए थे। इसमें 37 लोगों की जान चली गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।
अदालत ने कहा, ‘‘ मौजूद साक्ष्यों के आधार पर, प्रथम दृष्टया इन नतीजों पर पहुंचने का उचित आधार नहीं है कि याचिकार्ताओं के खिलाफ लगे आरोप सत्य हैं। इसलिए वे जमानत के हकदार हैं।’’
इन चार आरोपियों की जमानत याचिका को खारिज करते हुए विशेष एनआईए अदालत ने माना था कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि आरोप सही थे।
वहीं उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को हालांकि इस बात पर गौर किया कि सुरक्षा एजेंसी (एटीएस और सीबीआई) द्वारा दायर रिपोर्टों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा, ‘‘ विशेष अदालत का कर्तव्य है कि वह आतंकवाद विरोधी दस्ते, सीबीआई के साथ ही एनआईए द्वारा दायर सभी रिकॉर्ड और दस्तावेजों पर गौर करे।’’
पीठ ने उल्लेख किया कि एटीएस द्वारा दायर आरोप पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिन लोगों को शुरू में अभियुक्त बनाया गया था, उन्होंने मुस्लिमों को उकसाने और दंगा भड़काने के लिए मालेगांव में आतंकवादी और विध्वंसक गतिविधियों की साजिश रचने के लिए कई बैठकें की थीं।
इसमें आगे कहा गया है कि एटीएस ने अदालत को फॉरेंसिक साक्ष्य यह दिखाने के लिए प्रस्तुत किए थे कि धमाकों में आरडीएक्स का उपयोग किया गया और पहले आरोपी बनाए गए लोगों के घरों से एकत्र किए गए नमूनों में आरडीएक्स के निशान मिले थे।
अदालत ने पाया कि सीबीआई ने भी नौ आरोपियों के खिलाफ ऐसे ही सबूत पेश किए थे।
अदालत ने कहा “उन नौ अभियुक्तों के खिलाफ उपलब्ध साक्ष्यों को वर्तमान आवेदकों द्वारा दायर अपील (जमानत की मांग) पर सुनवाई के समय ध्यान में रखना होगा, जिन्हें तीसरी जांच एजेंसी (एनआईए) ने आरोपी बताया है।’’
महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने शुरुआती जांच में अल्संख्यक समुदाय के लोगों को गिरफ्तार किया था। इसके बाद जांच सीबीआई को सौंप दी गई और उसने भी इस आधार पर ही जांच की।
इसके बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जांच को अपने हाथ में लिया और वह इस नतीजे पर पहुंचा की हमलों को बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों ने अंजाम दिया था।
एनआईए ने नौ लोगों के खिलाफ आरोप वापस लेने का फैसला किया और सिंह, शर्मा, नवरिया और चौधरी के खिलाफ मामला दर्ज किया।
विशेष सनुवाई अदालत ने 2016 एनआईए के इस रुख को स्वीकार करते हुए नौ आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया।
इन चारों आरोपियों ने जमानत की मांग करते हुए इन नौ लोगों को रिहा किए जाने के फैसले को भी चुनौती दी थी। उन्होंने उन्हें आरोपमुक्त करने से इनकार करने के विशेष अदालत के फैसले को भी चुनौती दी है।
उच्च न्यायालय इस पर बाद में सुनवाई करेगा।
इन चार लोगों के अलावा एनआईए ने चार अन्य लोगों पर आरोप लगाया है, जो फरार है। attacknews.in
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