मुंबई 27 अप्रेल। महाराष्ट्र सरकार ने पिछले छह दशकों से रह रहे रिफ्यूजियों को जमीन का मालिकाना हक देने का फैसला किया है.
इस फैसले के बाद ये लोग अब अपनी प्रॉपर्टी को बेच सकेंगे, गिरवी रख सकेंगे और उसका पुनर्निर्माण भी कर सकेंगे.
साल 1947 में जब भारत का बंटवारा हो रहा था तब शायद लोगों को अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि जमीनी हक के लिए एक लंबी लड़ाई उनका इंतजार कर रही है. लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार का नया फैसला उन लोगों के लिए राहत भरा हो सकता है, जो पाकिस्तान में चले गए प्रांतों से अपना सब कुछ छोड़ कर भारत आए थे.
अधिकारियों के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार ने इन लोगों को अब जमीन का मालिकाना हक देने का फैसला दिया है.
अब तक महाराष्ट्र में रह रहे रिफ्यूजियों (बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से आए) के पास जमीन को बेचने और घरों के पुनर्निर्माण को लेकर बेहद ही सीमित अधिकार थे. यहां ये लोग 30 सरकारी कॉलोनियों और कैंप में रहते आए हैं. लेकिन इस फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि देश भर में रिफ्यूजियों के अधिकारों से जुड़े फैसले लिए जा सकते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांत से करीब 30 लाख लोग भागकर भारत आए थे. इनके पास अब तक बहुत ही सीमित अधिकार थे. लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के कुछ जिलों में रिफ्यूजियों को जमीन का मालिकाना हक दे दिया है.
एक अधिकारी के मुताबिक सभी रिफ्यूजियों को मालिकाना हक देने की तैयारी चल रही है. इसके साथ ही हजारों घरों के पुनर्निर्माण की योजना पर भी विचार किया जा रहा है.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “छह दशकों से रह रहे ये लोग अब अपनी प्रॉपर्टी को बेच सकते हैं, गिरवी रख सकते हैं और चाहे तो उस पर पुनर्निर्माण भी करा सकते हैं.” हालांकि इनमें से कई प्रॉपर्टी बेहद ही जर्जर हालत में हैं.
पंजाब और सिंध प्रांत से आए करीब पांच हजार परिवार मुंबई की पांच कॉलोनियों में रहते हैं. इनमें विकास की खासी जरुरत है.
भारत ने साल 1951 के रिफ्यूजी कनवेंशन पर दस्तखत नहीं किए हैं. यह कनवेंशन रिफ्यूजियों की सुरक्षा और जिम्मेदारी सुनिश्चित कराता है. लेकिन इसके बावजूद देश में तिब्बत, श्रीलंका, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार से आए करीब दो लाख से अधिक रिफ्यूजी रह रहे हैं.
रिफ्यूजी बनें नागरिक
बीते कुछ सालों में सरकार ने इन रिफ्यूजी समूहों को कुछ अधिकार भी दिए हैं.
साल 2016 के नागरिकता (संशोधन) विधेयक में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश से हिंदू, सिक्ख, बौद्ध, ईसाई समुदाय के अवैध प्रवासियों को नागरिकता देने की बात कही गई है.
पिछले साल भारत के गृह मंत्रालय ने कहा था कि वह 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए फैसले को लागू करने जा रहा है. इस फैसले के तहत 54,000 चकमा और हजोंग शरणार्थियों को नागरिकता दी जानी थी. ये सभी शरणार्थी बौद्ध और हिंदू धर्म से ताल्लुक रखते हैं.
अधिकारियों के मुताबिक इन्हें जमीन या आदिवासियों के अधिकार नहीं दिए जा सकते हैं क्योंकि इससे टकराव की स्थिति बन सकती है.
महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय पर मुंबई के थिंक टैंक गेटवे हाउस से जुड़ी सिफरा लेंटिन कहती हैं, “सिंधी कैंपों में बने अधिकतर घर जर्जर हालत में हैं. इनमें रहना कतई सुरक्षित नहीं है. और रियल एस्टेट इतना महंगा है कि ये लोग इसे छोड़कर कहीं रहने भी नहीं जा सकते. लेकिन अब इस फैसले के बाद वे अपनी प्रॉपर्टी में पुनर्निर्माण का काम करा सकते हैं.”attacknews.in