नागपुर 30 दिसंबर । महाराष्ट्र भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक परमबीर सिंह ने पिछले सप्ताह सिंचाई घोटाले में दायर अपने हलफनामे में त्रुटि के लिए माफी मांगते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में एक नया हलफनामा दायर किया और जिसके बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता अजीत पवार को क्लिन चिट दे दी गयी ।इसका ही परिणाम यह सामने आया कि , वह वापस महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे मंत्रिमंडल में फिर से उप मुख्यमंत्री बना दिया गया है ।
हलफनामा सिंचाई घोटाले को लेकर था जिसमें राकांपा नेता अजीत पवार पहले आरोपी बनाये गये थे। इससे पहले 19 दिसंबर को दायर अपने अंतिम हलफनामे में श्री सिंह ने कहा था कि पहले के महानिदेशक संजय बारे ने ‘अजीत पवार की भूमिका के बारे में एक विशेष रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दी थी’ जब उन्होंने पिछले साल इसी मुद्दे के बारे में एक हलफनामा दायर किया था।
शुक्रवार को विदर्भ सिंचाई घोटाला के 12 मामले में क्लीन चिट दी गई थी-
इससे पहले शुक्रवार को महाराष्ट्र भ्रष्टचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी)ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को विदर्भ सिंचाई घोटाला मामले में सभी 12 परियोजनाओं में क्लीन चिट दे दी थी और एसीबी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के समक्ष दाखिल अपने हलफनामे में विदर्भ क्षेत्र में सिंचाई परियोजनाओं में कथित अनियमितता के मामलों में पवार की संलिप्तता से इनकार कर दिया था ।
घोटाले की कहानी-
महाराष्ट्र का 70 हजार करोड़ का सिंचाई घोटाला
70 हजार करोड़ रुपये के घपले-घोटालों के आरोप के बाद भी अजित पवार बन गये उप मुख्यमंत्री-
बात 2012 की है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस विधानसभा में विपक्ष की बेंच पर बैठ, अजित पवार (जिन्होंने अभी हाल ही में फडणवीस के साथ उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण ली थी) को तकरीबन 70 हज़ार करोड़ के सिंचाई विभाग घोटाले का जिम्मेदार बताकर अपना राजनीतिक करियर चमकाना चाह रहे थे।
महाराष्ट्र के इस बड़े घोटाले के लिए अजित पवार को पानी पी-पीकर कोसने वाले देवेंद्र बाद में अजित (यदि सरकार सलामत रहती तो) साथ-साथ सत्ता के सुख का उपभोग करते दिखाई दिए । आखिर ऐसा क्या हुआ, जो अजित पर उनका प्यार उमड़ आया था ?
समझते हैं घोटाला है क्या? और वाकई इसके तार अजित पवार के उप मुख्यमंत्री बनने से जुड़े हैं?
1982 मेंं विदर्भ के विकास के लिए समर्पित मधुकर उपाख्य मामा किंमतकर नाम के एक मंत्री हुआ करते थे, इसी महकमे के। उन्होंने अपनी स्टडी में पाया कि विदर्भ में किसानों की आत्महत्याओं का बढ़ता ग्राफ लिंक कहीं-न-कहीं सिंचाई परियोजना में हो रही विलंब से जुड़ा है।
इस परियोजना मेंं हो रही देरी और बढ़ता बजट कहीं-न-कहीं किसी बड़े घपले की ओर इशारा कर रही थी।
मुद्दे की इंटेंसिटी को समझते हुए फडणवीस ने इसेे तकरीबन सात हज़ार करोड़ का बड़ा घोटाला बताते हुए इस मामले की जाँच की माँग की थी। उन्होंने तत्कालीन सरकार से इस मामले पर व्हाइट पेपर जारी करने की भी माँग की थी।
सिंचाई घोटाले में मुख्य रूप से अजित पवार, जो उस वक्त भी उप मुख्यमंत्री थे और सुनील तटकरे को जिम्मेदार ठहराया गया था ।
2011 में एडवोकेट श्रीकांत खंडालकर ने मामले की जाँच सीबीआई से करवाने की माँग की। 2012 की फाइनेंशियल रिपोर्ट के अनुसार, 1999 से 2009 के बीच महाराष्ट्र में सिंचाई परियोजनाओं में लगभग 35000 करोड़ व अन्य गैर-व्यवहार की बातों का खुलासा हुआ।
फरवरी 2012 में गवर्नर और मुख्यमंत्री को प्रस्तुत रिपोर्ट में इस बाबत जानकारी दी गई। 2012 में ही ‘जनमंच’ नामक एनजीओ ने हाई कोर्ट के नागपुर खंडपीठ में एक जनहित याचिका दायर कर सिंचाई परियोजनाओं में 70 हज़ार करोड़ के घोटाले का आरोप लगाते हुए मामले की जाँच सीबीआई द्वारा कराने की माँग की।
महाराष्ट्र में सिंचाई परियोजनाओं के घोटाले और भ्रष्टाचार को लेकर तत्कालीन सरकार के खिलाफ ऐसी लहर चली कि महाराष्ट्र की सत्ता ही बदल गयी।
अक्टूबर, 2014 भाजपा-शिवसेना की सरकार बनी। दिसंबर के महीने में नागपुर में चल रहे नयी सरकार के पहले अधिवेशन में जनमंच की याचिका पर हाई कोर्ट में सरकार को अपनी भूमिका स्पष्ट करने का आदेश दिया।
12 दिसंबर को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, जो गृह मंत्रालय भी सँभाल रहे थे; ने सिंचाई घोटाले की जाँच एंटी करप्शन ब्यूरो से करवाने का आश्वासन दिया।
राज्य सरकार ने हाई कोर्ट को बताया कि इस जाँच में पूर्व उप मुख्यमंत्री अजित पवार, सुनील तटकरे, छगन भुजबल के साथ ऑफिसर्स व ठेकेदारों की भूमिका की भी जाँच की जाएगी।
एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा सिंचाई घोटाले की जाँच शुरू हुई, उस वक्त विदर्भ में 38 सिंचाई परियोजनाओं पर काम चल रहा था; जनमंच में एंटी करप्शन ब्यूरो को हज़ारों दस्तावेज़ सौंप दिये। समय बीत गया और जनमंच को लगा कि सरकार इस मामले में ढिलाई बरत रही है। 2015 में एक बार फिर हाईकोर्ट के पास अपनी फरियाद लेकर पहुँची। जाँच में ढिलाई के मद्देनज़र कोर्ट ने सरकार व एंटी करप्शन ब्यूरो को आड़े हाथ लिया।
हाई कोर्ट के रुख को देखते हुए एंटी करप्शन ब्यूरो ने अपनी ओर से सफाई देते हुए बताया कि मामले की जाँच में ढिलाई नहीं बरती जा रही है। 23 फरवरी, 2016 को सिंचाई घोटाले के सम्बन्ध में राज्य में पहला मामला मुम्बई के ऐसे कंस्ट्रक्शन कम्पनी के खिलाफ रिपोर्ट नागपुर के पुलिस स्टेशन में दर्ज की गयी है। यह मामला गोसीखुर्द के घोड़ाजारीमे हुए घपले को लेकर किया गया।
इस पहली आपराधिक रिपोर्ट दर्ज करने के बाद राज्य-भर में एक के बाद एक कई अपराधिक मामले दर्ज किये जाने लगे।
इस बीच कोर्ट को लगा कि सारे आपराधिक मामले सरकारी अधिकारियों और ठेकेदारों, कम्पनियों और उनके मालिकों के खिलाफ किये जा रहे हैं। राजनीति से जुड़े लोगों को लेकर गम्भीरता नहीं बरती जा रही है।
एसीबी के महानिदेशक संजय बर्वे ने नागपुर हाई कोर्ट में एक हलफनामा देकर कहा था कि सिंचाई घोटाले के लिए अजित पवार जिम्मेदार हैं। यह हलफनामा जनहित मंच की याचिका पर दाखिल किया गया।
इस मामले में न्यायिक लड़ाई लड़ रही ऐक्टिविस्ट अंजली दमनिया ने दावा किया था कि हलफनामे से हमारे वे सभी आरोप सही साबित होते हैं; जो हम पवार और अन्य पर लगा रहे हैं। मुम्बई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया था कि सिंचाई घोटाले में एनसीपी लीडर और पूर्व उप सीएम अजित पवार की भूमिका स्पष्ट करेंं।
3 सितंबर, 2016 को नागपुर बेंच में इस घोटाले से सम्बन्धित 6450 पन्नों की चार्जशीट पेश की गयी। इसमें भाजपा के कई मंत्री के खास अधिकारियों के नाम भी थे। 22 दिसंबर, 2017 को भाजपा नेताओं की कुछ कम्पनियों के खिलाफ भी आपराधिक मामला दर्ज हुआ।
एक बार फिर जाँच की गति धीमी देखते हुए कोर्ट ने एनसीबी को जवाब तलब किया। इस बार एनसीबी की ओर से कहा गया कि उनके पास जाँच करने के लिए ज़रूरत के हिसाब से मैन पॉवर नहीं है। कोर्ट के आदेश के बाद 4 अप्रैल, 2018 को सिंचाई घोटाले की जाँच के लिए नागपुर और अमरावती में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का गठन किया गया।
अमरावती के जीगाँव, निम्नपेढ़ी वाघरी और रायगढ़ सिंचाई परियोजनाओं में हुई गड़बडिय़ों की जाँच के लिए एक सोशल एक्टिविस्ट अतुल जगताप ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की।
इस जनहित याचिका की सुनवाई से एक बात सामने आयी कि अजित पवार और बाजोरिया कंस्ट्रक्शन के मालिक संदीप बाजोरिया के बीच अच्छे सम्बन्धों के चलते, बाजोरिया कंस्ट्रक्शन कम्पनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया; जो कि इस लायक नहीं थी।
सिंचाई परियोजना में हुए घपले को लेकर कोर्ट इतनी गंभीर थी कि उसने इस मामले की जाँच के लिए रिटायर्ड जस्टिस के तहत एक समिति गठित करने की अनुशंसा भी की थी।
10 अक्टूबर, 2018 को हाई कोर्ट ने एक बार फिर अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए कठोर शब्दों में राज्य सरकार से सिंचाई घोटाले में अजित पवार की भूमिका स्पष्ट करने की बात कही।
लम्बा समय बीत जाने के बाद भी इस बाबत कोई जवाब न आने के चलते एक बार फिर कोर्ट ने इस घोटाले में अजित पवार की भूमिका को लेकर सरकार से स्पष्ट तौर पर जवाब माँगा।
अब पवार को बचाना राज्य सरकार को दुरूह लगने लगा और उसने 27 अक्टूबर, 2018 को 40 पन्नों का हलफनामा पेश करके सिंचाई घोटाले में अजित पवार को जिम्मेदार ठहराया। महाराष्ट्र गवर्नमेंट रूल्स ऑफ बिजनेस एंड इंस्ट्रक्शन 10(1) के मुताबिक, हर महकमे के कामकाज के लिए उस महकमे का मिनिस्टर जवाबदेह होता है।
सरकार द्वारा पेश किये गये हलफनामे में सरकार ने अजित पवार को इस घोटाले के जिम्मेदार ठहराते हुए इसका जिक्र किया है।
दस्तावेज़ बताते हैं कि अजित पवार ने विदर्भ में इन सिंचाई परियोजना को लेटलतीफी से बचाने के लिए ऐसी व्यवस्था बनाई थी, ताकि परियोजनाओं से जुड़ी फाइलें सीधे उन तक पहुँच जाएँ। इसी व्यवस्था के चलते घोटाले होते चले गये विदर्भ सिंचाई परियोजनाओं के बजट बढ़ते चले गये और तीन दशक बीत जाने के बावजूद योजनाएँ पूर्ण नहीं हो सकीं।
बात बड़ी रोचक है कि सरकार ने सिंचाई घोटाले की जवाबदेही अजित पवार पर डाली है, लेकिन उनके खिलाफ एक भी मामला दर्ज नहीं दिखाई देता।
अजित पवार के खिलाफ मामला दर्ज न होने को लेकर जो कयास लगाये जा रहे हैं, वह तो यही है कि यह सरकार सरकार की प्रेशर टेक्टिस थी कि समय आने पर अजित पवार का इस्तेमाल किया जा सके। फिलहाल एसआईटी 17 फरवरी तक चुनाव के 302 मामलों की जाँच कर रही थी।और अब परिणाम क्लीनचिट के रूप मे सामने आया ।