चेन्नई, 04 नवंबर । मद्रास उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से साेमवार को पूछा कि एमबीबीएस दाखिले के लिए ली जाने वाली राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा (नीट) को आखिरकार क्योंं समाप्त नहीं किया जा सकता है।
न्यायालय के समक्ष जब नीट परीक्षा में किसी और के स्थान पर दूसरे अभ्यर्थी द्वारा परीक्षा में बैठने(इम्पर्सनैशन) के मामलों की सुनवाई सबंधी याचिका आई तो न्यायाधीश एन. किरूबाकरन और न्यायाधीश पी. वेलुमुरूगन की पीठ ने कहा कि केन्द्र सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की सभी योजनाओं को बदल रही है तो वह क्यों नहीं नीट परीक्षा को भी समाप्त कर देती क्योंकि इसका सुझाव भी पूर्ववर्ती सरकार ने ही दिया था। पीठ ने कहा जिन लोगों के पास पैसे हैं उनके बच्चे इस परीक्षा को पास कर सकते हैं और गरीब छात्राें के लिए मेडिकल कालेजों के दरवाजे बंद हो गए हैं।
पीठ ने यह भी कहा कि नीट परीक्षा की प्राइवेट कोचिंग किए बिना मेडिकल सीट पर दाखिला होना असंभव होगा और जिन लोगों के पास नीट परीक्षा पास करने के लिए पैसे हैं वे ही इसे पास कर सकते हैं और गरीब छात्रों में ऐसी मंहगी कोचिंग को वहन करना बहुत ही मुश्किल काम है।
पीठ ने यह भी कहा कि गरीब छात्रों के लिए मेडिकल कालेजों के दरवाजे कभी भी नहीं खुले थे और नीट परीक्षा में अनेक प्रयासों की अनुमति देकर असमान छात्रों को समान छात्रों के बराबर मान लिया गया।
न्यायाधीशों ने निजी नीट कोचिंग सेंटरों द्वारा एकत्र की जा रही बेतहाशा फीस पर प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि यह कहा गया था कि मेडिकल काॅलेजों में धन के प्रसार को रोकने के लिए नीट को लाया गया था लेकिन अब यह धनराशि ऐसे कोचिंग सेंटरों के जरिए दूसरों तरीकों से दी जा रही है।
पीठ ने तमिलनाडु में सरकारी चिकित्सकों की हड़ताल का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य सरकार चिकित्सकों को बहुत ही कम धनराशि देकर उनके साथ अन्याय कर रही है।
न्यायाधीशों ने कहा “चिकित्सक दैवीय काम का रहे हैं और उन्हें इसी के आधार पर भुगतान किया जाए।”