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मध्यप्रदेश शासन द्वारा मंदिरों और देव स्थानों में पुजारियों को नियुक्ति देने और पद से हटाने के नियम लागू attacknews.in

भोपाल : 5 फरवरी । अध्यात्म विभाग द्वारा शासन संधारित देव स्थानों के पुजारियों की नियुक्ति और पदमुक्ति संबंधी प्रक्रिया निर्धारित कर दी गई है। पद रिक्त होने पर निर्धारित प्रक्रिया और नियमों का पालन किया जाकर नियुक्तियाँ प्रदान की जायेंगी। पुजारियों की नियुक्ति में वंश परम्परा और गुरू-शिष्य परम्परा को प्राथमिकता दी जायेगी। पुजारियों के नाम की प्रविष्टियाँ खसरे में भी की जायेगी। तहसील एवं पटवारी स्तर पर पुजारी पंजी संधारित होगी।
उल्लेखनीय है कि पहली बार प्रदेश सरकार द्वारा पुजारियों की नियुक्तियों के संबंध में नियम और प्रक्रिया निर्धारित की गई है। शासन द्वारा संधारित देव स्थानों के पुजारियों की नियुक्ति हेतु 9 अर्हताएँ तय की गई हैं। नियुक्ति की प्रक्रिया भी निर्धारित की गई है। पुजारियों के कर्त्तव्य और दायित्वों के साथ ही पुजारियों की पदमुक्ति तथा पद रिक्त होने पर व्यवस्था के नियम भी बनाये गये हैं। यह नियम नवीन पुजारी की नियुक्ति के लिए ही प्रभावी होंगे। पूर्व से कार्यरत पुजारी के लिए यह नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावी नहीं होगी।
नियुक्ति की अर्हताएँ
पिता पुजारी होने की दशा में उसी वंश के आवेदक को अन्य सभी अर्हता पूर्ण करने पर प्राथमिकता दी जायेगी। पुजारी पद के लिये आठवीं तक शिक्षित होकर न्यूनतम उम्र 18 वर्ष एवं स्वस्थ चित्त होना आवश्यक है। पूजा विधि का प्रमाण-पत्र परीक्षा उत्तीर्ण होकर पूजा विधि का ज्ञान और शुद्ध शाकाहारी होना जरूरी है। पुजारी मद्यपान न करने वाला और अपराधिक चरित्र का नहीं होना चाहिए। देव स्थान की भूमि पर अतिक्रमण अथवा देव स्थान की अन्य सम्पत्ति खुर्द-बुर्द करने का दोषी नहीं होना चाहिए।
यदि कोई मंदिर मठ की श्रेणी में आता है और उस मंदिर पर किसी सम्प्रदाय विशेष अथवा अखाड़ा विशेष के पुजारी होने की परम्परा होने पर गुरू-शिष्य परम्परा के आधार पर पुजारी की नियुक्ति प्राथमिकता से की जायेगी। किसी दरगाह, खानकाह या तकिया पर सज्जादानशीन/मुजाविर आदि की नियुक्ति में वंश परम्परा की प्रथा है, तो नियुक्ति के समय उसका ध्यान रखा जायेगा।
नियुक्ति की प्रक्रिया
किसी देव-स्थान पर पुजारी का पद रिक्त होने की दशा में आवेदन निर्धारित प्रारूप पर ऐसे अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) को प्रस्तुत किया जावेगा, जिसकी स्थानीय अधिकारिता में देव-स्थान स्थित हो। आवेदन पत्र के साथ शपथ पत्र पर अण्डरटेकिंग भी प्रस्तुत करनी पड़ेगी जिसमें स्पष्ट उल्लेख होगा कि वह संबंधित देवस्थान की चल-अचल सम्पत्ति पर किसी स्वत्व आधिपत्य संबंधी दावा नहीं करेगा।
आवेदन प्राप्त होने पर 15 दिवस की उदघोषणा जारी कर आपत्ति आमंत्रित की जायेगी। इसी अवधि में यदि अपेक्षित हो तो पटवारी/तहसीलदार आदि का प्रतिवेदन बुला सकेगा। अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) उदघोषणा अवधि पूर्ण होने पर कोई आपत्ति प्राप्त न होने पर आगामी कार्यवाही करेगा। साक्ष्य ले सकेगा। दस्तावेज आदि प्राप्त कर सकेगा। आवश्यक होने पर स्थानीय जाँच स्वयं कर सकेगा अथवा तहसीलदार/नायब तहसीलदार से करा सकेगा।
जाँच पूर्ण होने पर स्पीकिंग आर्डर जारी करेगा, जिसकी एक-एक प्रति तहसीलदार, कलेक्टर, औकाफ बोर्ड तथा संचालक धर्मस्व को भेजी जायेगी। एक प्रति नियुक्त पुजारी को भी दी जावेगी। नियुक्ति आदेश के बाद अनुविभागीय अधिकारी तहसीलदार के माध्यम से संबंधित देवस्थान का आधिपत्य पुजारी को देगा।
आधिपत्य देते समय चल-अचल सम्पत्ति की सूची 3 प्रति में तैयार की जायेगी। एक प्रति पुजारी के पास एक तहसील कार्यालय में तथा एक प्रति पुजारी नियुक्ति की नस्ती में सुरक्षित रखी जायेगी। मंदिर का आधिपत्य देने के बाद ही नियुक्ति की प्रक्रिया पूर्ण मानी जायेगी।
तहसील और पटवारी स्तर पर पुजारी पंजी संधारित होगी और खसरे में नाम अंकित होगा
तहसील में पटवारी स्तर पर पुजारी पंजी संधारित की जायेगी। पंजी में पुजारी नियुक्ति आदेश अनुसार प्रविष्टि की जाएगी। यदि देवी स्थान की सेवा पूजा के लिए कृषि भूमि देव स्थान के नाम है तो ऐसी भूमि पर खसरे के कॉलम नंबर 12 में भी नियुक्ति आदेश की केवल सांकेतिक प्रविष्टि की जाएगी। इसके आधार पर स्वत्व/आधिपत्य संबंधी हित सृजित नहीं होंगे। पुजारी नियुक्ति की प्रक्रिया स्वप्रेरणा से बगैर किसी आवेदन के भी आरंभ की जा सकेगी। प्रतिमाह होने वाली पटवारियों की बैठक में तहसीलदार रिक्त पुजारी पद की जानकारी लेंगे, तथा रिक्त पद होने पर प्रतिवेदन अनुविभागीय अधिकारी को प्रस्तुत करेंगे। प्रतिवेदन प्राप्त होने पर अनुविभागीय अधिकारी सूची स्वयं से नियुक्ति हेतु प्रकरण पंजीबद्ध करेंगे। उद्घोषणा जारी कर आवेदन पत्र आमंत्रित कर उपरोक्त प्रक्रिया का पालन करते हुए नियुक्ति की कार्यवाही करेंगे।
अधिकतम तीन माह की अवधि में पुजारी की नियुक्ति होगी
किसी भी हालत में देवस्थान अपूज्य नहीं रहना चाहिए। यदि पुजारी की नियुक्ति में समय लग रहा है तो पुजारी नियुक्ति की अंतिम कार्यवाही पूर्ण होने तक पूजा करने के योग्य व्यक्ति से अस्थाई पुजारी के रूप में काम लिया जा सकेगा। ऐसे अस्थाई पुजारी को केवल पूजा करने की अवधि का मानदेय ही प्राप्त होगा। पुजारी पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया अधिकतम तीन माह में अनिवार्य रूप से पूर्ण कर ली जायेगी। अधिक समय लगने की दशा में कलेक्टर से अनुमति प्राप्त करनी होगी। ऐसी अनुमति प्राप्त होने की तिथि से आगामी 3 माह में नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण करना अनिवार्य होगा।
अनुविभागीय अधिकारी के अंतिम आदेश की प्रथम अपील 30 दिन में कलेक्टर को की जा सकेगी। कलेक्टर के आदेश की अपील 30 दिन के अवधि में आयुक्त को तथा आयुक्त के आदेश की अपील एक माह में राज्य शासन को की जा सकेगी। राज्य शासन का आदेश अंतिम होगा। पुजारी नियुक्ति की प्रक्रिया में सिविल न्यायालय की अधिकारिता वर्जित होगी।
पुजारी के कर्त्तव्य व दायित्व
पुजारी विधि-विधान से परंपरा अनुसार देवस्थान की सेवा पूजा करेगा। देव स्थान की साफ रखेगा। मंदिर में श्रद्धालुओं की श्रद्धा अनुरूप वातावरण बनाए रखेगा। मंदिर की चल-अचल संपत्ति की सुरक्षा उसी प्रकार करेगा जैसे खुद की संपत्ति की जाती है। देवस्थान की संपत्तियों में अपने किसी प्रकार के हित सृजित नहीं करेगा। साथ ही पुजारी शासन की जन-कल्याणकारी योजना में उत्प्रेरक का कार्य भी करेगा।
पदच्युति
पुजारी की पदच्युति स्वस्थ चित्त न रहने, देवस्थान की चल-अचल संपत्ति में हित का दावा करने, चारित्रिक दोष पैदा होने, देव स्थान की सेवा-पूजा एवं संपत्ति की सुरक्षा में लापरवाही प्रदर्शित होने और शासन के आदेशों की अवहेलना करने पर हो सकेगी।
पुजारी का पद रिक्त होने पर व्यवस्था
देवस्थान अपूज्य न रहे यह सुनिश्चित करना जिला प्रशासन का दायित्व होगा। अतः पुजारी की मृत्यु होने अथवा पद से पृथक किए जाने की दशा में अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) पुजारी की स्थाई नियुक्ति होने तक किसी योग्य व्यक्ति से अस्थाई पुजारी के रूप में काम ले सकेंगे। पुजारी पद पर विधिवत नियुक्ति होने पर ऐसा व्यक्ति स्वत: पूजा के दायित्व से मुक्त माना जाएगा। जिस अवधि में अस्थाई पुजारी द्वारा पूजा की गई है उस अवधि का मानदेय उसे प्राप्त करने की पात्रता  होगी ।
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