गुना, 24 मार्च । आजादी के पहले सिंधिया रियासत का हिस्सा रहा गुना देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम होने के बाद सिंधिया परिवार से जुड़ा रहा है और चुनाव दर चुनाव इस परिवार के सदस्य काे अपना प्रतिनिधि चुनता रहा है।
अशोकनगर, गुना, शिवपुरी तीन जिलों की आठ विधानसभाओं से मिलकर बने इस संसदीय क्षेत्र में किसी राजनीतिक दल की नहीं बल्कि सिंधिया परिवार की चलती है तथा कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों काे यहां जीत हासिल करने के लिये सिंधिया परिवार का ही सहारा लेना पड़ता है।
इस परिवार की तीन पीढ़ियां यहां से 14 बार चुनाव जीत चुकी हैं। जनता में ‘महाराज’ और ‘श्रीमंत’ जैसी उपाधियों से प्रसिद्ध ज्योतिरादित्य सिंधिया 2014 में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर यहां से चौथी बार सांसद चुने गए। इसके पहले उनकी दादी विजयराजे सिंधिया छह बार और उनके पिता माधवराव सिंधिया चार बार यहां से सांसद रह चुके हैं।
इस सीट पर सिंधिया परिवार के वर्चस्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि माधवराव सिंधिया ने यहां एक बार निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराकर जीत हासिल की। वर्ष 1998 में विजयाराजे सिंधिया अपना नामांकन दर्ज करने के बाद बेहद बीमार हो गई, जिससे वह प्रचार करने क्षेत्र में पहुंची ही नहीं और बिस्तर से ही चुनाव जीत गईं ।
यहां 1951 में हुआ पहला चुनाव ही ऐसा था जिसमें सिंधिया परिवार की सीधी दखलांदाजी नहीं रही। उस चुनाव में हिंदू महासभा के विष्णुगोपाल पांडे ने कांग्रेस के गोपीकृष्ण विजयवर्गीय को हराया। उसके बाद 1956 में मध्यप्रदेश का गठन हुआ। इसी दौरान राजमाता के नाम से मशहूर विजयराजे सिंधिया कांग्रेस में शामिल हो गईं । उन्होंने 1957 के चुनाव में हिंदू महासभा के विष्णु गोपाल पांडे को करीब 50 हजार वोटों के अंतर से हराया। वर्ष 1962 में सीट बदलते हुए विजयराजे सिंधिया ने ग्वालियर से चुनाव लड़कर जीत हासिल की। वहीं गुना से कांग्रेस प्रत्याशी बनाए गए रामसहाय शिवप्रसाद पांडे ने हिंदू महासभा के विष्णुगोपाल देशपांडे को एक बार फिर शिकस्त दी।
वर्ष 1967 का चुनाव आते-आते राजनैतिक परिस्थितियां बदलीं और विजयराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गईं और इस चुनाव में उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी के रुप में कांग्रेस के डीके जाधव को हराया। बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया जिसके बाद हुए उपचुनाव में स्वतंत्र पार्टी के जेबी कृपलानी ने कांग्रेस प्रत्याशी को हराया। इसके बाद 1971 में हुए चुनाव में विजय राजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया ने भारतीय जनसंघ के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा और बड़े अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी को हराया। अगले चुनाव (1977) में वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में गुना से सांसद चुने गए। वर्ष 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया ने यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। इसी वर्ष से सिंधिया परिवार कांग्रेस और भाजपा जैसे दो राजनैतिक ध्रुवों में बंट गया।
श्री सिंधिया ने 1984 के चुनाव ग्वालियर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वहीं गुना से उनके सबसे करीबी और विश्वस्त सहयोगी महेन्द्र सिंह ‘कालूखेड़ा’ ने भाजपा के महेन्द्र सिंह को हराते हुए जीत हासिल की। वर्ष 1989 में कांग्रेस ने एक बार फिर महेन्द्र सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया, दूसरी ओर गुना में जीत हासिल करने के लिए भाजपा ने विशेष रणनीति के तहत अपनी कद्दावर नेता विजयराजे सिंधिया को चुनाव लड़ाया। उस चुनाव में विजयाराजे सिंधिया ने महेंद्र सिंह को हराया। उसके बाद विजयाराजे सिंधिया ने लगातार 1991, 1996, 1998 में लगातार चुनाव जीतीं।
उनके निधन के बाद कांग्रेस ने 1999 में यहां से माधराव सिंधिया को लोकसभा चुनाव लड़ाया, जिसमें उन्होंने जीत दर्ज की। सितंबर 2001 में एक विमान हादसे में माधवराव सिंधिया की मृत्यु के बाद कांग्रेस ने 2002 में हुए उपचुनाव में उन के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रत्याशी बनाया और वह बहुत ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीते। उसके बाद से वह लगातार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
इस संसदीय क्षेत्र में अशोकनगर की अशोकनगर, चंदेरी, मुंगावली, गुना जिले की गुना, बामोरी एवं शिवपुरी जिले की शिवपुरी, पिछोर, कोलारस विधानसभा सीट शामिल है। इनमें से पांच पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा काबिज है। भौगोलिक दृष्टि से गुना लोकसभा क्षेत्र चंबल, मालवा और बुंदेलखंड की मुहाने पर है। गुना लोकसभा के शिवपुरी जिले के हिस्से पर चंबल की संस्कृति का प्रभाव है, वहीं गुना को मालवा का प्रवेश द्वार कहा जाता है। अशोकनगर जिले मुंगावली और चंदेरी बुंदेलखंड की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।
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