नयी दिल्ली, 18 मार्च । उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश विधानसभा में बहुमत परीक्षण 26 मार्च तक टाले जाने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई गुरुवार तक के लिए टाल दी है, जबकि कांग्रेस के बागी विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष पेश होने से इन्कार किया है।
कांग्रेस के 16 बागी विधायकों ने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को दलील दी कि वे सुरक्षा कारणों से विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष पेश होना नहीं चाहते।
मप्र : कांग्रेस विधायक के भाई की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इंकार
उधर उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश मामले में कांग्रेस के 16 बागी विधायकों में से एक विधायक के भाई की याचिका पर बुधवार को सुनवाई से इंकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को उचित फोरम में जाने की इजाजत दी।
कांग्रेस विधायक मनोज चौधरी के भाई बलराम चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल कर मनोज को पेश करने और रिहा करने की मांग की है।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं नौ अन्य विधायकों की याचिका पर एक अन्य खंडपीठ में सुनवाई हो रही है।
विधानसभा अध्यक्ष को बागी विधायकों के इस्तीफे सौंपे जाने के मामले की जांच जरूरी: मप्र कांग्रेस
मध्य प्रदेश कांग्रेस ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि भाजपा नेताओं द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को बागी विधायकों के इस्तीफे सौंपे जाने के मामले की जांच की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ के समक्ष कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया कि उसके बागी विधायकों से बलपूर्वक और धमका कर ये इस्तीफे लिये गये हैं। कांग्रेस ने दावा किया कि उसके विधायकों ने अपनी मर्जी से इस्तीफे नहीं दिये हैं।
कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि उसके बागी विधायकों को चार्टर्ड उड़ान से ले जाया गया है और इस समय वे भाजपा द्वारा की गयी व्यवस्था के तहत एक रिजार्ट में हैं तथा उनसे संपर्क नहीं हो सकता है।
कांग्रेस के बागी विधायकों के इस्तीफों के मामले में भाजपा की भूमिका की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित करते हुये दवे ने कहा कि होली के दिन भाजपा नेता विधानसभा अध्यक्ष के आवास पर पहुंचे और उन्हें 19 विधायकों के पत्र सौंपे।
दवे ने यह भी दलील दी कि राज्यपाल को सदन में शक्ति परीक्षण कराने के लिये रात में मुख्यमंत्री या अध्यक्ष को संदेश देने का कोई अधिकार नहीं है।
दवे ने कहा, ‘‘अध्यक्ष सर्वेसर्वा है और मध्य प्रदेश के राज्यपाल उन्हें दरकिनार कर रहे हैं।