भोपाल, 13 सितंबर । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सरदार सरोवर परियोजना में प्रदेश से संबंधित मुद्दों को तत्काल मैत्री पूर्वक हल करने के लिए नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की बैठक बुलाने का आग्रह किया है। उन्होने केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को लिखे पत्र में विस्तार से जानकारी दी है कि कैसे मध्यप्रदेश के हितों की अनदेखी हुई है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए लिखा कि भारत सरकार ने 1969 में नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया था। इस ट्रिब्यूनल ने सात दिसंबर 1979 को एक अंतरिम आदेश पारित किया था। ट्रिब्यूनल ने भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के अधीन नर्मदा नियंत्रण अथॉरिटी नाम की एजेंसी का भी गठन इस उद्देश्य से किया था कि जो आदेश पारित किया गया उसका ठीक से अमल करवाना।
नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी ने ट्रिब्यूनल के आदेश के उल्लंघन की अनदेखी की। सरदार सरोवर प्रोजेक्ट के डाउनस्ट्रीम में पानी रोकने की मेड बनाने ताकि रिवर बेड पावर हाउस के संचालन में मदद मिले । इसे बन जाने दिया गया। ट्रिब्यूनल द्वारा गुजरात सरकार के रिवर बेड पावर हाउस के पंपिंग संचालन के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया। पंपिंग ऑपरेशन के कारण यूनिट 3 (पावर) में मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी की लागत ट्रिब्यूनल द्वारा तय लागत से काफी कम होती।
मुख्यमंत्री ने लिखा कि मध्यप्रदेश द्वारा नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी के समक्ष कई बार आग्रह किया गया कि इस मुद्दे को नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी की बैठक में रखा जाए, पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया।
मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा कि ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट के आदेश 18 अक्टूबर 2000 के अनुसार गुजरात सरकार को राहत एवं पुनर्वास का पूरा खर्च देना होगा। हालांकि गुजरात को अभी खर्च देना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी 2017 के आदेश में कहा कि परियोजना प्रभावित परिवारों को 60 लाख रुपए उन्हें देना है। उन्होंने राहत एवं पुनर्वास पैकेज नही लिया था। उन्होंने विशेष पुनर्वास अनुदान की केवल पहली किश्त ली थी। निर्णय के समय करीब 681 प्रकरण ऐसे थे। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अनुमानत: शब्द का उपयोग किया। शिकायत निवारण प्राधिकरण के समक्ष कई प्रकरण लंबित हैं जिनका उस समय संज्ञान नहीं लिया गया। आज की तारीख में 897 ऐसे प्रकरण हैं जिन्हें गुजरात सरकार को 69 करोड़ रुपए देना है। जब तक ये दावे निराकृत नहीं हो जाते राहत एवं पुनर्वास काम को पूर्ण नहीं माना जा सकता।
उल्लेखनीय है कि सरदार सरोवर परियोजना के कई प्रकरण सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है यह प्रकरण 15/3/2005 और 8/2/2017 की स्थिति में निराकृत हुए है। इनमें विस्थापितों की परिभाषा और उनके अधिकार बदल गए, इस परिवर्तन के कारण भौतिक रूप से पुनर्वास का काम चुनौती बन गया है।