उज्जैन 26 सितम्बर । माधव महाविद्यालय और कालिदास कन्या महाविद्यालय अदला बदली का गर्मा गर्म मुद्दा ठंडे बस्ते से निकल कर कोमा में पहुंच गया है। कहा जाता है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है। ऐसा ही मामला तुगलक वंश की सत्ता के समय हुआ था जब राजधानी दिल्ली से दौलताबाद शिफ्ट हो गई थी। यह इतिहास डॉ एस एल वरे सहित एक दर्जन से अधिक प्रोफेसर माधव कालेज में पढ़ाते रहे हैं। अनुमान यह लगाया जा रहा है कि माधव कालेज अदला बदली करने का निर्णय लेने वाले या तो कामर्स से स्नातक हैं या फिर साइंस से। माधव कालेज को जंगल में भेजना, दिल्ली से दौलताबाद ले जाने से कम नहीं है।
माधव कालेज “को एजुकेशन” का बेहतरीन केन्द्र है। यहां अध्ययन करने वाली “कन्या” प्रशासनिक क्षेत्र में नाम रोशन कर रही हैं वहीं राजनैतिक क्षेत्र में भी सफलता का परचम फहरा रही हैं तथा यहां पढने वाले मर्द वाकई मर्द हैं। परीक्षा के वक्त ऐसी घुड़ पुलिस की सुरक्षा के बिना परीक्षा नहीं देते हैं जो पुलिस इसी कालेज में पढ़कर पास हुई है। अब प्रश्न यह है कि माधव कालेज को जंगल में भेजकर मर्दों को मर्दानगी की सजा देने की तैयारी है ? लेखक का यह लिखने का आशय महिलाओं का विरोधी नहीं है। महिलाएं सदा पुज्यनीय है। भारतीय परम्परा में महिला ने शेर की सवारी की है और शेर जंगल में ही पाए जाते हैं।
जंगल में क्यों बनाया कालिदास कन्या महाविद्यालय
उज्जैन कालिदास की नगरी है लिहाजा कभी कभी कालीदासी फैसले भी थोप दिए जाते हैं। प्रश्न यह भी है कि विनोद मिल, हीरा मिल और सुखदेव काटन प्रेस में स्थान रिक्त होने के बाद उस जंगल में कालिदास कन्या महाविद्यालय का निर्माण क्यों किया जिस जंगल में निर्माण पर पूरी तरह रोक है।
ईओडब्ल्यू /लोकायुक्त मौन
सरकार के लाभ हानि के गणित को हल किए बिना करोड़ों रुपए का कालेज भवन जंगल में बनाने और कन्याओं के लिए अनुपयोगी हो जाने जैसा संगीन आर्थिक जुर्म हो जाने के बाद भी वाच डॉग ऐजेंसियों में सन्नाटा है।
बताया जाता है कि कालेज भवन निर्माण के मामले में नौकरशाहों की भूमिका कम और जन प्रतिनिधियों की भूमिका अधिक है तब ऐजेसिंया ऐसे मामले में हाथ कैसे डाल सकती है जब ऐजेंसी में बैठे नौकरशाहों को एक दिन वर्दी पहनकर मैदान में ही तैनात होना हो ।ऐसे में ऐजेंसियों के लिए गंदे पानी में रहकर मादा एनोफिलीज से पंगा मोल लेने बराबर सिरदर्द है।attacknews.in