नयी दिल्ली, 24 जुलाई । भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने तथा ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने के साथ-साथ रिश्वत देने के दोषियों को अधिकतम सात साल की सजा के प्रावधान वाले भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक 2018 को आज संसद की मंजूरी मिल गई।
लोकसभा ने आज भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। राज्यसभा में यह पिछले सप्ताह पारित हुआ था। इस विधेयक में 1988 के मूल कानून को संशोधित करने का प्रावधान है।
विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि 2014 में वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शासन का मूलभूत मंत्र दिया था, ‘‘न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन’’। पिछले चार वर्षो में हमारी सरकार ने इस दिशा में प्रतिबद्ध पहल की है। इसका उदाहण है कि देश की जनता का मोदी सरकार पर भरोसा रहा है और उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण चुनाव से पहले नोटबंदी जैसी पहल पर जनता ने तकलीफ सहते हुए भी हमारा समर्थन किया ।
उन्होंने कहा कि इसी बात को देखते हुए वर्तमान विधेयक में ध्यान दिया गया है कि ईमानदार अधिकारियों के कोई भी अच्छे प्रयास बाधित नहीं हों।
सिंह ने कहा कि इस सरकार के शासन में आने के बाद जनता का विश्वास भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई करने वालों पर बहाल हुआ है। चर्चा के दौरान कई सदस्यों द्वारा लोकपाल की नियुक्ति के मुद्दे को उठाने पर जितेन्द्र सिंह ने कहा कि देश में अभी तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हुई है। इस संबंध में प्रक्रिया चल रही है। इस विषय पर सर्च कमेटी गठित करने के संबंध में 19 जुलाई को बैठक हुई । यह सही है कि लोकपाल की नियुक्ति में विलंब हुआ है।
उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन इस देरी का कारण सत्तारूढ़ दल नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी है। सदन में विपक्ष के नेता के लिए जरूरी संख्या में सीटें उसके पास नहीं हैं ।’’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ‘‘देश की जनता ने कांग्रेस पार्टी को 44 सीटें ही दीं, इसमें मैं क्या कर सकता हूं । ’’ विधेयक को ऐतिहासिक करार देते हुए सिंह ने कहा कि राज्यसभा में इसे 43 संशोधनों के साथ पारित किया गया और इसमें रिश्वत देने वाले को भी परिभाषित किया गया है।
उन्होंने कहा कि जो रिश्वत देगा, उसे भी रिश्वत लेने वाले के समान ही जिम्मेदार ठहराया जायेगा ।
उन्होंने कहा कि इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी को बेवजह परेशान नहीं किया जाए ।
उल्लेखनीय है कि यह संशोधन विधेयक स्थायी समिति के साथ साथ प्रवर समिति में भी भेजा गया था। साथ ही समीक्षा के लिए इसे विधि आयोग के पास भी भेजा गया था।attacknews.in