नयी दिल्ली 09 दिसंबर ।लोकसभा ने नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी दे दी । विधेयक के पक्ष में 311 मत और विरोध में 80 मत पड़े । लोकसभा ने आज रात पाकिस्तान, बंगलादेश तथा अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई संप्रदाय के लोगों को भारत की नागरिकता देने वाला विधेयक पारित कर दिया।
गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को विधेयक पर करीब छह घंटे चली चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक 1950 के नेहरू लियाकत समझौते की गलती को सुधारने के लिए लाया गया है। उन्होंने साफ किया कि इस विधेयक का भारत में रहने वाले मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है। भारत में पहले भी मुसलमान बराबरी के अधिकार से रहते रहे हैं, वे आगे भी ऐसे ही बराबरी के हक से रहते रहेंगे।
नागरिकता विधेयक: 2015 से पहले से भारत में रहने वालों को मिलेगी नागरिकता
सरकार द्वारा संसद में सोमवार को पेश नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 में वर्ष 2015 से पहले से अवैध रूप से देश में रह रहे पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई संप्रदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव किया गया है।
गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को लोकसभा में यह विधेयक पेश किया। इसके उद्देश्यों एवं कारणों में बताया गया है कि विधेयक के जरिये नागरिकता अधिनियम की अनुसूचि तीन में संशोधन कर इन तीनों देशों के उपरोक्त छह संप्रदायों के लोगों के लिए स्थायी नागरिकता के आवेदन की शर्तों को आसान बनाया गया है। पहले कम से कम 11 साल देश में रहने के बाद इन्हें नागरिकता के लिए आवेदन का अधिकार था। अब इस समय सीमा को घटाकर पाँच साल किया जा रहा है।
इसमें कहा गया है कि 31 दिसंबर 2014 तक बिना वैध दस्तावेजों के इन तीन देशों से भारत में प्रवेश करने वाले या इस तिथि से पहले वैध रूप से देश में प्रवेश करने और दस्तावेजों की अवधि चूक जाने के बाद भी अवैध रूप से यहीं रहने वाले छह संप्रदायों के लोग नागरिकता के आवेदन के पात्र होंगे।
साथ ही यह भी व्यवस्था की गयी है कि उनके विस्थापन या देश में अवैध निवास को लेकर उन पर पहले से चल रही कोई भी कानूनी कार्रवाई स्थायी नागरिकता के लिए उनकी पात्रता को प्रभावित नहीं करेगी तथा नागरिकता आवेदन पर विचार करने वाले अधिकारी इन मामलों पर ध्यान दिये बिना आवेदन पर विचार करेंगे।
इस विधेयक के जरिये ‘ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया’ (ओसीआई) कार्डधारकों द्वारा अधिनियम की शर्तों या किसी अन्य भारतीय नियम का उल्लंघन करने की स्थिति में उनका कार्ड रद्द करने का अधिकार केंद्र सरकार को मिल जायेगा। साथ ही कार्ड रद्द करने से पहले कार्डधारक को उसकी बात रखने का मौका देने का भी प्रस्ताव विधेयक में किया गया है।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में राष्ट्रीय धर्म है जिसे वहाँ के संविधान द्वारा मान्यता दी गयी है। इन देशों में हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी एवं ईसाई धर्म के लोगों पर अत्याचार किया जाता है। इनमें से कई लोगों ने भारत आकर शरण ली है और लंबे समय से अवैध रूप से यहीं रह रहे हैं तथा उन्हें अवैध प्रवासी माना जाता है। अब उन्हें भारतीय नागरिकता के योग्य बनाने के लिए यह विधेयक लाया गया है।
ओवैसी ने लोकसभा में फाड़ी नागरिकता विधेयक की प्रति
आल इंडिया मजलिस ए इतिहादुल मुसिलमीन (एआईएमआईएम) के असदुद्दीन ओवैसी ने ‘नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019’ का विरोध करते हुए लोकसभा में सोमवार को विधेयक की प्रति को फाड़ दिया।
श्री ओवैसी ने विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए इसे भारतीय संविधान की आत्मा के विरुद्ध बताया और कहा कि यह कानून मजहब की बुनियाद पर तैयार किया गया है और मुसलमानों के खिलाफ है। उन्होंने सरकार से पूछा कि वह बताए कि उसे मुसलमानों से किस बात की नफरत है।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाक से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता का पात्र बनाने वाले विधेयक में यह हैं प्रावधान –
लोकसभा में सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक पेश किया गया जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का पात्र बनाने का प्रावधान हे ।
निचले सदन में विपक्षी सदस्यों के भारी विरोध के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने यह विधेयक पेश किया । विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि ऐसे अवैध प्रवासियों को जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया है, उन्हें अपनी नागरिकता संबंधी विषयों के लिए एक विशेष शासन व्यवस्था की जरूरत है । विधेयक में हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के प्रवासियों को भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन करने से नहीं वंचित करने की बात कही गई है । इसमें कहा गया है कि यदि कोई ऐसा व्यक्ति नागरिकता प्रदान करने की सभी शर्तो को पूरा करता है तब अधिनियम के अधीन निर्धारित किये जाने वाला सक्षम प्राधिकारी, अधिनियम की धारा 5 या धारा 6 के अधीन ऐसे व्यक्तियों के आवेदन पर विचार करते समय उनके विरूद्ध अवैध प्रवासी के रूप में उनकी परिस्थिति या उनकी नागरिकता संबंधी विषय पर विचार नहीं करेगा ।
भारतीय मूल के बहुत से व्यक्ति जिनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान के उक्त अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्ति भी शामिल हैं, वे नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के अधीन नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं। किंतु यदि वे अपने भारतीय मूल का सबूत देने में असमर्थ है, तो उन्हें उक्त अधिनियम की धारा 6 के तहत ‘‘देशीयकरण’’ द्वारा नागरिकता के लिये आवेदन करने को कहा जाता है । यह उनको बहुत से अवसरों एवं लाभों से वंचित करता है ।
इसमें कहा गया कि इसलिए अधिनियम की तीसरी अनुसूची का संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है जिसमें इन देशों के उक्त समुदायों के आवेदकों को ‘‘देशीयकरण द्वारा नागरिकता के लिये पात्र बनाया जा सके’’। इसके लिए ऐसे लोगों मौजूदा 11 वर्ष के स्थान पर पांच वर्षो के लिए अपनी निवास की अवधि को प्रमाणित करना होगा ।
इसमें वर्तमान में भारत के कार्डधारक विदेशी नागरिक के कार्ड को रद्दे करने से पूर्व उन्हें सुनवाई का अवसर प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है ।
विधेयक में संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले पूर्वोत्तर राज्यों की स्थानीय आबादी को प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी की संरक्षा करने और बंगाल पूर्वी सीमांत विनियम 1973 की ‘‘आंतरिक रेखा’’ प्रणाली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को प्रदान किये गए कानूनी संरक्षण को बरकरार रखने के मकसद से है ।
इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से सीमापार लोगों का आना निरंतर होता रहा है । वर्ष 1947 में भारत का विभाजन होने के समय विभिन्न धर्मो से संबंध रखने वाले अविभाजित भारत के लाखों नागरिक पाकिस्तान सहित इन क्षेत्रों में ठहरे हुए थे । पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के संविधान में राज्य धर्म का उपबंध किया गया है । इसके परिणामस्वरूप हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के बहुत से व्यक्तियों ने इन देशों में धर्म के आधार पर अत्याचार का सामना किया । बहुत से ऐसे व्यक्ति भारत में शरण के लिये घुसे और ठहरे हुए हैं, भले ही उनके यात्रा दस्तावेज समाप्त हो गए हों।
ऐसे लोगों को अवैध प्रवासी समझा जाता है और वे अधिनियम की धारा 5 और 6 के अधीन भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन करने के लिये अपात्र हैं ।